Suicide at Dawn: Victor Brauner |
मौसम वैसा ही है जैसा कल था
उतनी ही गरमी है
मानसून की भविष्यवाणी भी नहीं बदली
शामें अब भी कुछ ठंडी हो जाती हैं पहले जैसी
औरतें अब भी सब्ज़ी लेने जाती हैं हर शाम
और बच्चे अलग-अलग आकार की पीली बसों में
अब भी रवाना हो रहे हैं स्कूल हर सुबह
दफ्तर भी चल ही रहे होंगे
पत्नी के रोज़ छह बजे उठने से जान पाता हूं मैं
और दूधवाला अब भी उसी वक्त आता है
जब कामवाली जाने को होती है।
सब कुछ वैसा ही तो है
मैं भी तो सोचता रहता हूं कुछ सार्थक करने की
पहले भी ऐसे ही कटते थे दिन
रीफ्रेश करते जीमेल और फेसबुक की विन्डो
आखिर क्या बदला है 16 मई के बाद?
ये आना भी कोई आना हुआ?
धत्त…
कुछ लोग ज़रूर ले रहे हैं उसका नाम
पान की दुकानों पर, चाय की अडि़यों पर
पहले भी लेते थे
और चल देते थे चूना चाट कर
काम पर।
अब भी कोई रुकता नहीं ज्यादा देर
उतनी ही देर, जितने में छुट्टे पैसे वापस हों
और सामने वाले के साथ सहमति बन जाए
कि वो आ गया है
अगर आना ही बदा था बस
तो ये भी कोई आना हुआ?
धत्त…
उसका आना
उसके न आने से खास अलग नहीं है
यह समय ही ऐसा है
जो किसी की कद्र नहीं करता
नहीं जोहता बाट किसी की
आ गया तो जय-जय
वरना अपनी बला से।
समय के दो समानांतर पहियों के बीच
कुचलने से बच जाने का सुख
ही अगर आना है
तो ये भी कोई आना हुआ?
धत्त…
वे कह रहे हैं
अच्छे दिन आने वाले हैं
मेरे मोहल्ले की पंसारी की दुकान पर भी लिखा है
आज नगद कल उधार
जो आने वाला है
जो कल है
वो किसने देखा है
आज तो रुका हुआ है
बरसों से इस देश में
और कल
खिंचता जा रहा है
अनंत के असीम वितान में
पंसारी की दुकान का हिसाब नहीं है
अनंत की पैमाइश
सवा अरब ग्राहकों का हिसाब
कौन सा गणित निपटा पाएगा?
और फिर वक्त ही कितना बचा है?
चार दिन तो गुज़र गए इन्हें आए
न खोज न ख़बर
जाने कौन सा फॉर्मूला रच रहे हैं
गुजरात भवन के भीतर
उधर, पंजाब में एक आदमी
खंबे से कूद गया
मोदी हटाओ कहकर
जाना हो तो ऐसा हो
कि जाए, तो मौका न दे
और वो, जिसके आने की चर्चा है
ऐसे आया है, कि बस उसके आने भर से
आ जाएंगे अच्छे दिन
उसका आना
और आकर गायब हो जाना
भला कोई आना हुआ?
धत्त…
ख़ैर सुनो,
आए हो तो ठीक ही है
लेकिन जल्दी करो
हमें सब्र नहीं है
हम जानते हैं
कि आना और जाना तो लगा ही रहता है
इस अनंत जगत में
किसी के बिना नहीं रुकता कोई काम
यहां
अभी एक गया है
और जाएंगे
अच्छे दिन के भुलावे में
फिर लोग नहीं आएंगे
जो करना है, अभी करो
इस रुके हुए समय में
पिक्चर पोर्ट्रेट सी जमी जिंदगी
मांगती है हरक़त
देर की
तो लोग छलांग लगाएंगे
तुम्हारे कंधे पर चढ़कर
अनंत के पार चले जाएंगे।
जल्दी करो
वरना
राष्ट्रवाद की आलमारी में बंद
तुम्हारे मंसूबों की फाइलें
खुलने से पहले ही
उन्हें बग़ावतों के दीमक चाट जाएंगे।
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