बाल दिवस पर बच्चों के ‘चाचा’ की एक याद


जवाहरलाल नेहरू का नाम सुनते ही आम तौर पर हमारे जेहन में क्या छवि उभरती है? शायद गुलाब लगा जवाहर कोट और टोपी (जिसे गांधी टोपी भी कहा जाता है) में एक लम्बा हंसमुख व्यक्ति, जो शायद हमारे दादा या परदादा के जमाने में इसी देश में रहा करते थे पर बच्चों के लिए वे चाचा नेहरू ही रहे हैं हमेशा.

दुनिया में नेहरू जैसी शायद ही किसी राजनेता की ऐसी छवि हो जो बच्चों के साथ इस तरह का रिश्ता कायम करने में सफल हुआ हो. आज भी बच्चे किसी अवसर पर चाचा नेहरू बनना चाहते हैं, गोडसे या सावरकर नहीं. क्यों? इसका जवाब हम सभी जानते हैं.

हमने स्कूल में पढ़ा था नेहरू का पत्र बेटी इंदु के नाम, यानी कालान्तर में इंदिरा गांधी और भारत की प्रथम महिला प्रधानमंत्री, जिन्होंने 1971 में पाकिस्तान का मानचित्र बदल दिया और एक नये देश बांग्लादेश को भारतीय उपमहाद्वीप में पहचान दी.

नेहरू जी ने अपने पत्र में बेटी इंदु को एक पत्थर के छोटे टुकड़े की कहानी लिखी थी. कैसे एक बड़ा चट्टान अपनी यात्रा में घिसते हुए नदी में बहते हुए छोटा रूप पाया था. दरअसल, छोटा होने पर ही कोई चट्टान हथेली पर आ सकता है.

जवाहरलाल नेहरू जानते थे कि बच्चों को क्या पढ़ाना चाहिए. आज वे होते तो ग्लोबल वार्मिंग के किसी सवाल पर यह नहीं कहते कि वैज्ञानिकों का दावा झूठा है और ग्लोबल वार्मिंग कुछ नहीं बल्कि बूढ़े लोगों को कमजोर प्रतिरोधक क्षमता के कारण जादा सर्दी-गर्मी लगती है.

वे नहीं बताते कि सिकंदर गंगा पार कर बिहार तक आये थे और न ही वे यह कहते कि भगत सिंह जेल में भगवत गीता पढ़ा करते थे क्योंकि नेहरू भगत सिंह से मिलने गये थे.

नेहरू अब तक की दुनिया में इकलौते नेता हैं जिनके जन्मदिन को बाल दिवस यानी बच्चों के दिन के रूप में मनाया जाता है.

नेहरू स्‍वतंत्रता सेनानी थे और जीवन के कई वर्ष जेल में काटे थे. उन्होंने किसी अंग्रेज को कभी पत्र लिख कर माफ़ी नहीं मांगी अपनी सज़ा कम करवाने के लिए.

पंडित जवाहर लाल नेहरू को पता था आज़ादी और लोकतंत्र का सही अर्थ. वे इतिहास के कितने बड़े  ज्ञाता थे इसका प्रमाण उनकी चर्चित किताब ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ यानी भारत एक खोज में मिलता है.

चाचा लोगों में अपने और लोकतंत्र के प्रति सोचने की आदत पैदा कर देना चाहते थे. उनकी इच्छा थी कि महिलाएं देश में समान नागरिक के रूप में अपनी भूमिका का निर्वाह करें और इसीलिए विकसित और आधुनिक पश्चिम देशों के विपरीत, भारत में महिलाओं को पुरुषों के साथ ही मताधिकार प्राप्त हुआ. ये आजादी से काफी पहले यानी सन 1928 में ही कांग्रेस द्वारा उद्घोषित लक्ष्य भी था.

भाखड़ा नांगल बांध को आधुनिक भारत का तीर्थ कहने वाले नेहरू आधुनिक और वैज्ञानिक सोच के मिसाल थे. नेहरू तारामंडल जा कर देखिए, उनकी दूरदर्शिता और वैज्ञानिक दृष्टि‍ का अंदाजा हो जाएगा आपको.

बेशक मनुष्य होने के नाते उनमें वे तमाम कमियां भी थीं जो एक मनुष्य में कम ज्यादा होती ही हैं किन्तु नेहरू कभी किसी के बाथरूम में झांक कर नहीं बताते कि कौन रेनकोट पहन कर नहाता है.

गुटनिरपेक्ष देशों के संगठन का गठन नेहरू की विदेश नीति और एक महान राजनीतिक सोच वाले नेता के होने का साक्ष्य है.

नेहरू जैकेट पहन कर एकतरफा मन की बात करने से कोई इतिहास में महान दर्ज़ नहीं हो जाएगा. मोर को दाना कोई भी डाल सकता है आज, वीडियो बना सकता है, गुफा में चश्मा पहनकर ध्यान करते हुए और नेहरू की स्टाइल में कपड़े पहन कर आतंकवादियों की पहचान कपड़ों से करने की सीख देने वाला कोई भी व्यक्ति महान नहीं बन सकता है.

नेहरू तीन का ही नहीं वे तीन सौ का पहाड़ा भी सुना सकते थे जबकि उन्हें कभी यह बताना नहीं पड़ा कि वे ‘एन्टायर पॉलिटिक्स’ के ज्ञाता हैं.

आज जिस संविधान के दम पर हम सभी जिंदा है, यह नेहरू की ही देन है. यदि वे चाहते तो आजीवन देश पर शासन कर सकते थे बिना संविधान बनाए.

दोस्ती और भरोसे में चीन से धोखा खाकर जिस व्यक्ति ने प्राण त्याग दिए वे नेहरू ही थे. आज तो तमाम प्रमाण और वीडियो उपलब्ध होने के बाद भी लोग देश को झूठ बोल देते हैं कि चीन ने न तो हमारी किसी पोस्ट पर कब्ज़ा किया न ही कोई घुसपैठ की है.

नेहरू की अस्थियां लोटे में बंद कर नदियों में नहीं बहाई गयीं. उनकी चिता की राख इस देश की मिट्टी में मिलायी गयी थी. वे देश के कण कण में समाहित हो गये मर कर भी.


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