“हम सच में जीने वाले लोग हैं, हम उसका ख्वाब देखते हैं”!

क्यूबा से जाने से पहले चे ने अपने संघर्ष के साथी क्यूबा के राष्‍ट्रपति फिदेल कास्त्रो को जो पत्र लिखा, वो उन लोगों के लिए धरोहर है जो इन्सानियत के हक में खड़े हैं या फिर खड़े होने का हौसला बांध रहे हैं।

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लालू यादव से मोहब्बत के लिए चाहिए वो नजर जिसमें सामाजिक न्याय की आस हो!

वे ऐसी शख्सियत हैं जिसने करोड़ों लोगों की जिंदगी को कई तरह से प्रभावित किया है- सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से। बहुसंख्य अल्पसंख्यकों, पिछड़ों व दलितों में उनकी छवि मसीहा की है तो सवर्णों, थिंक टैंक, मीडिया, इंटेलीजेंसिया में वह आंबेडकर के बाद भारतीय समाज के सबसे बड़े खलनायक हैं। आज उसी लालू यादव की 74वीं वर्षगांठ है।

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आदिवासियों के लिए बिरसा भगवान क्यों हैं?

जिस समय महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका में रंगभेदी सरकार के खिलाफ लोगों को एकजुट कर रहे थे, लगभग उसी समय भारत में बिरसा मुंडा अंगग्रेजों-शोषकों के खिलाफ एक महत्वपूर्ण लड़ाई लड़ चुके थे। गांधी से लगभग छह साल छोटे बिरसा मुंडा का जीवन सिर्फ 25 साल का रहा।

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महाभारत महामारी-कालीन: एक कविता

नेत्रहीन नहीं धृतराष्ट्रहैं वे दृष्टिहीन एक विकराल युद्ध केबन गए तमाशबीन भरी सभा में हुईएक अस्मिता वस्त्रहीन महामात्य रहे अचलभावशून्य मर्म-विहीन युद्ध छिड़ा सर्वत्रप्रचंड संगीन अनगिनत लाशों सेरणभूमि रंगीन लाखों …

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स्मृतिशेष: लगता है जैसे हिमालय की कोई चट्टान टूट कर गंगा में समा गई हो!

उनके खाने-पीने में हमेशा यही कोशिश होती थी कि वे ऐसे ही अनाज खाएं जो कम पानी में पैदा हों। मैंने उनको चावल खाते हुए नहीं देखा। पहाड़ में होने वाले पारंपरिक अनाज जैसे झंगोरा व कोदा ही उनके मुख्य भोजन होते थे।

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जिन्हें दफना दिया गया, वे कौन से हिन्दू थे?

राम की विशालता और करूणा को इससे समझा जा सकता है कि राम ने एक गिद्ध को भी पिता का दर्जा दिया लेकिन बेहिसाब संपत्ति के मालिक मंदिर और मठों में बैठे धर्माधिकारी अपने ही धर्मावलम्बि‍यों के मरने और फिर उन्हें दफनाते हुए देखकर भी बहरे और अंधे बने रहे।

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‘जंगल हमारे मैत हैं’ कहने वाली चिपको आंदोलन की प्रणेता गौरा देवी को लोगों ने भुला दिया!

सीमित ग्रामीण दायरे में जीवनयापन करने के बावजूद वह दूर की समझ रखती थीं। उनके विचार जनहितकारी थे जिसमें पर्यावरण की रक्षा का भाव निहित था, नारी उत्थान और सामाजिक जागरण के प्रति उनकी विशेष रुचि थी। गौरा देवी जंगलों से अपना रिश्ता बताते हुए कहतीं थीं कि “जंगल हमारे मैत (मायका) हैं”।

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सामाजिक परिवर्तन के लिए सांस्कृतिक आंदोलन की जरूरत पर हमेशा जोर देते थे लालबहादुर वर्मा

जब वर्मा सर इलाहाबाद से दिल्ली आये, थोड़े समय बाद ही उन्हें डेंगू हो गया। उस समय मैं दिल्ली में उनके घर पर ही था। उन्होंने मुझे भी अस्पताल में बुला लिया मिलने पर सबसे पहला वाक्य यह कहा- यह भी एक दुनिया है।

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हो चि मिन्ह: वियतनामी राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष के अभिन्न प्रतीक

हो चि मिन्ह की हिंदचीन से विश्वसाम्राज्यवादियों की जड़ें उखाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका रही। 2 सितम्बर 1969 को उनकी मृत्यु हुई। उनके जीवन की प्रत्येक दृष्टि साम्यवादियों के लिए सर्वहारा क्रांति तथा राष्ट्रवादियों के लिए विश्व की प्रबलतम साम्राज्यवादी शक्तियों, फ्रांस और अमेरिका के विरुद्ध संघर्ष की लंबी शिक्षाप्रद कहानी है।

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यह महज एक तस्वीर नहीं, राष्ट्र के रूप में शुरू हुए हमारे सफर का एक एहसास है…

ये तस्वीर साफ तौर पर ये भी संदेश देती है कि भारत अपने बुनियादी उसूलों स्वतंत्रता, समता,बन्धुता और इंसाफ के रास्ते का अडिग हमराही है। आजादी की लड़ाई के दौरान ये मूल्य परवान चढ़े और संविधान सभा मे ये तय हुआ कि भारतीय राष्ट्र न केवल इसे बनाये रखेगा बल्कि इसे इसमें बाधा पहुंचाने वाली ताकतों से सख्ती से निपटेगा भी।

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