काकोरी कांड का मतवाला शहीद शायर अशफाक़ उर्फ़ वारसी उर्फ़ हसरत

आर्य समाज के एक सक्रिय सदस्य और समर्पित हिंदू राम प्रसाद बिस्मिल अन्य धर्मों के लोगों को भी बराबर सम्मान देते थे। वहीं दूसरी ओर एक कट्टर मुसलमान परिवार से संबंधित अशफ़ाक उल्ला खान भी ऐसे ही स्वभाव वाले थे। धर्मों में भिन्नता होने के बावजूद दोनों का मकसद सिर्फ देश को स्वराज दिलवाना था।

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चुनावीबिहार-6: बिहारी ‘जुवा’ मने ई बा का बा, थोड़ी सी कमाई और गुटखे पर चर्चा

सबसे पढ़ी-लिखी और स्वघोषित स्वयंभू मुख्यमंत्री पुष्पम प्रिया की पार्टी के 50 फीसदी से अधिक नामांकन पहले ही प्रयास में रद्द हो गए, जबकि उनकी पार्टी की तथाकथित प्रवक्ता की धांसू अंग्रेजी वाला वीडियो लोगों को हंसाने के काम आ रहा है।

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चुनावीबिहार-5: भाजपा के धुरंधरों को नहीं पता कि उनके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक चुकी है!

जिस तरह प्रधानसेवक नरेंद्र मोदी ने सारे पड़ोसियों से संबंध एक समान स्तर पर बिगाड़े हैं, भाजपा ने मिथिलांचल से लेकर भोजपुर तक अपने कैडर्स को एक जैसा नाराज़ किया है।

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हाथरस पर दलित समाज के नेताओं की दबी जुबान चौंकाने वाली है

दलित समाज के लोग दलित राजनेताओं को सामाजिक न्याय की लडाई को बुलंद करने के लिए वोट देते हैं। इस घटना पर दलित समाज से आने वाले नेताओं का मद्धम स्वर निश्चित तौर पर चकित करता है। उन्हें जिस तरह से पीडिता और परिवार को न्याय दिलाने की पैरोकारी करनी चाहिए थी, अभी तक वह दिखाई नहीं दी है।

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आधे घंटे की प्रेस वार्ता में 14 बार नीतीश कुमार का नाम! ये ‘राष्ट्रऋषि’ का प्रेम है या…?

कहा जाता है कि चोर की दाढ़ी में तिनका। यदि गठबंधन इतना ही फेविकोल के जोड़ टाइप अटूट था, तो उसे इतनी बार सफाई देने की क्या जरूरत थी?

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चुनावीबिहार-4: कॉमरेड चंदू की बेचैन आत्मा और भाजपा के विश्वात्मा

अंदरखाने की ख़बर यह है कि इस बार सुशासन बाबू को पूरी तरह निपटा देने की योजना बन चुकी है। इसीलिए एक तरफ तो चिराग पासवान को भड़का कर अलग कर दिया गया, दूसरी तरफ वीआइपी के मुकेश सहनी से गठबंधन के मंच पर ही नाटक करवा दिया गया, ताकि अगले दिन के अखबारों में सुर्खियां वही बनें।

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“गाँधी वध क्यों?” गोडसे के अदालती बयान के 70 साल बाद अशोक पांडेय की ताज़ा पड़ताल

गांधी जयंती की पूर्व संध्या पर पाठकों के लिए उपलब्ध राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित अशोक कुमार पांडेय की नयी किताब ‘उसने गांधी को क्यों मारा’ कई ज्वलंत तथ्यों को सामने लाती है। यह किताब गांधी जयंती के अवसर पर देश के सभी पाठकों के लिए एक उपहार है, जो यह जानना चाहते हैं कि वो क्या कारण थे जिसने हिन्दुस्तान की आज़ादी के कर्णधार को एक साल भी आज़ाद भारत में जीवित नहीं रहने दिया।

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क्रांतिकारी सेनाएँ अब भी गांवों और कारखानों में हैं! भगत सिंह को याद करते हुए…

छोटी उम्र से ही उन्होंने आज़ादी के लिए संघर्ष किया और स्थापित ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिलाकर हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गये। शहीद हो गये, लेकिन अपने पीछे क्रांति और निडरता की वह विचारधारा छोड़ गये जो आज तक युवाओं को प्रभावित करती है।

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चुनावीबिहार-3: ज्यादा दिमाग मत लगाइए, बस महीने भर की बात है…!

भाजपा में कम्युनिकेशन-गैप इतना बढ़ गया है कि अब सरेआम-सरेशाम जूतमपैजार हो रही है, लट्ठ बरस रहे हैं। परसों भाजपाइयों ने पप्पू यादव की जाप (जन अधिकार पार्टी) के कार्यकर्ताओं की तुड़ाई की, तो आज अपने ही मंत्री विजय कुमार सिन्हा के मुर्दाबाद के नारे बुलंद कर दिये।

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20/9/20: “अख़बार नहीं, आंदोलन” करने वाले एक संपादक की मौत का दिन

आज जब कृषि विधेयक पर ध्वनि मत से मतदान हो रहा था तो हरिवंश जी की निगाहें बिल के पन्ने पर थींं। आज एक जो अजब सी बात हुई वह यह थी कि मतदान कराते वक्त उन्होंने सदन की ओर आँख उठाकर नहीं देखा कि किसने बिल के समर्थन में हाँ कहा और किसने नहीं?

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