रंगकर्मी बहेलिये और एक गरीब का सपना: संदर्भ NSD, मकर संक्रान्ति


राजेश चंद्र 
15वें भारत रंग महोत्सव के दौरान विगत 14 जनवरी 2013 को राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय परिसर में भारतीय रंगमंच पर केन्द्रित त्रैमासिक पत्रिका “समकालीन रंगमंच” के लोकार्पण समारोह में देश के जाने माने रंगकर्मियों ने पत्रिका का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया और इस मौके पर रंगमंच की समकालीन प्रवृत्तियों एवं चुनौतियों पर अनुभवी वक्ताओं ने महत्वपूर्ण विचार रखे। उन्होंने एक स्वर से यह माना कि रंगमंच अपने आप में एक जोखिम का काम है और इस पर पत्रिका निकालना उससे भी बड़ा जोखिम का काम है। नाटक अपने समाज के प्रति बहुत व्यापक दृष्टिकोण की मांग करता है, खास कर उन लोगों से जो इससे जुड़े हैं। अपने संबोधन में प्रसिद्ध रंगकर्मी, निर्देशक एवं पत्रिका के लोकार्पणकर्ता श्री भानु भारती ने सर्वेश्वर की इन पंक्तियों को याद करते हुए कि -“बंद रास्ते की यातना जानते हुए भी दौड़ो “- कहा- “हम सब जानते हैं कि दौड़ बहुत मुश्किल है। यह अवसर, जब एक मुश्किल दौर में एक आदमी जोखिम उठाने के लिए सामने आया है और उसने पत्रिका के प्रकाशन का हौसला दिखाया है- मेरे लिए एक उत्सव का अवसर है। राजेश चन्द्र पत्रकारिता में हैं और रंगमंच की स्थितियों से बाकायदा वाकिफ हैं। यह सब जानते हुए भी अगर वे कोशिश कर रहे हैं तो यह अद्भुत है। यह सेलिब्रेट करने की बात है कि इस दौर में भी ऐसे लोग मौजूद हैं जो इस तरह के खतरे उठा सकते हैं।”

”समारोह में सर्वश्री देवेन्द्र राज अंकुर, दिनेश खन्ना, अरविन्द गौड़, संजय उपाध्याय जैसे वरिष्ठ रंगकर्मियों-निर्देशकों, प्रख्यात कवि गिरधर राठी, जाने माने पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा, लेखक प्रेमपाल शर्मा, चर्चित युवा अभिनेता यशपाल और विनीत कुमार, युवा पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव एवं अविनाश के अलावा बड़ी संख्या में रंगकर्मी एवं साहित्यकार उपस्थित थे। एक इतने महत्वपूर्ण आयोजन को कवर करने आये हमारे कुछ पत्रकार बंधुओं को ऐसी कोई काम की बात नज़र नहीं आई जिसे तवज्जो दी जाये। कहीं भी इस पत्रिका के लोकार्पण पर चर्चा नहीं हुई। कार्यक्रम में कुछ विन्दुओं पर जो तीखे मतभेद उभर कर आये उनसे भी हमारे पत्रकार बंधुओं ने कोई सरोकार नहीं दिखाया। उनके लिए शायद इसमें कोई “न्यूज वैल्यू” नहीं रही होगी। इसलिए आयोजन के समूचे सन्दर्भ और विमर्श को नज़रंदाज़ कर पत्रकार बंधुओं ने जिस किस्म की रिपोर्टिंग की, उसने उनकी समझ और सरोकार को ही कठघरे में खड़ा किया। आयोजक की विनम्रता और सदाशयता का बेजा इस्तेमाल करते हुए आदरणीय अरविन्द गौड़ जी ने जिस प्रकार समारोह को नष्ट करने और अपनी तथाकथित राजनीति को चमकाने का प्रयास किया, वह एक संवेदनहीन, कुंठित, कायरतापूर्ण और हिंसक कार्रवाई थी, जिसकी कहीं कोई चर्चा नहीं हो रही। अन्ना हजारे, जो स्वयं को गांधीवादी कहते हैं- की कोर कमेटी के एक महत्वपूर्ण सदस्य अरविन्द गौड़ ने जहाँ एक तरफ अपनी भाषा और भंगिमा से एक हिंसक वातावरण निर्मित किया वही समारोह में उपस्थित कुछ अन्य रंगकर्मियों ने भी इस बात की परवाह न करते हुए कि वे एक पत्रिका के लोकार्पण के लिए आये थे, बदले की कार्रवाई की और इसे खुद को प्रचारित करने एवं प्रकाश में लाने के एक दुर्लभ मौके के तौर पर लपक लिया। स्थिति इससे हास्यास्पद और क्या हो सकती है कि दोनों ही पक्ष इस अनावश्यक उत्पात का ठीकरा दोषपूर्ण मंच संचालन के सर फोड़ने और अपनी चादर को मैली न दिखने का निरीह उपक्रम करते नज़र आ रहे हैं। चुप्पी, सहमति, दिशाहीनता और आत्ममुग्धता के इस रंगमंचीय दौर में आलोचना की एकमात्र संभावना के तौर पर जन्म लेने वाली पत्रिका के खिलाफ जैसा माहौल तैयार किया जा रहा है, उसमें किसी गहरी साज़िश की बू आती है।

इस वीडियो में देखें कि पत्रिका के विमोचन के दौरान हंगामा कैसे शुरू हुआ था 
(साभार: फॉरवर्ड प्रेस) 

मैं चाहता हूँ कि इस टिप्पणी के साथ अब उस पत्र को भी सार्वजनिक किया जाना चाहिए जो समारोह के अगले दिन राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की निदेशक को ईमेल के जरिये मैंने भेजा था और इसकी एक-एक प्रति श्री भानु भारती एवं श्री अरविन्द गौड़ को भी उपलब्ध कराई थी। शायद इस पत्र से समारोह के आयोजक के पक्ष को समझा जा सके और अटकलबाजियों पर विराम लग सके इसी अभिप्राय से इसे सार्वजनिक किया जा रहा है।” (राजेश चन्द्र, रंग समीक्षक एवं संपादक, समकालीन रंगमंच, दिल्ली) 

‘समकालीन रंगमंच’ का लोकार्पण करते हुए संजय उपाध्‍याय, देवेंद्रराज अंकुर, भानु भारती, अरविन्‍द गौड़ और दिनेश खन्‍ना 


आदरणीय अनुराधा जी,
नमस्कार।

कल 14 जनवरी 2013 को शाम 5 बजे राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के परिसर में भारतीय रंगमंच पर केन्द्रित पत्रिका “समकालीन रंगमंच” के लोकार्पण समारोह में जिस तरह की अनपेक्षित, दुर्भाग्यपूर्ण और अशोभनीय घटना हुई तथा आमंत्रित रंगकर्मियों में से कुछ ने जिस प्रकार मंच, समारोह के प्रयोजन और अवसर को दरकिनार कर अपनी राजनीतिक कुत्सा की निर्लज्ज अभिव्यक्ति की,  उसने इस समारोह के आयोजनकर्ता और एक रंगकर्मी होने के नाते मुझे काफी व्यथित, लज्जित और हतप्रभ किया है और इस प्रकरण के बाद भिन्न-भिन्न प्रकार की जैसी प्रतिक्रियाएं सुनने में आ रही हैं उसके बाद मेरे लिए यह अति आवश्यक हो गया है कि इस असहज परिस्थिति में अपनी भूमिका का निर्वहन करते हुए अपना पक्ष स्पष्ट करूँ। इस क्रम में मैं कहना चाहता हूँ कि

कल के आयोजन में जो कुछ हुआ, उसके पीछे न तो एक व्यवस्था का विरोध करने की कोई क्रांतिकारिता थी, और न ही यह विचारों अथवा पक्षधरता के बीच कोई टकराहट ही थी। साफ तौर पर यह एक रचना और रचनाकार पर दुर्भावनापूर्ण व्यक्तिगत हमला था और एक गरीब के कोमल सपने को कुचलने की नीयत थी। बहेलिये ने उस निरीह पक्षी को मार गिराने के लिए, जो उड़ कर किसी बड़े खेत में बैठ गया था, पूरी फसल को ही आग लगाने की कोशिश की।

समकालीन रंगमंच ” पत्रिका के प्रकाशन का निर्णय हर प्रकार से मेरा नितांत वैयक्तिक निर्णय है और मैंने अपनी रचनात्मक ज़रूरतों और जिम्मेदारियों का निर्वहन करने के ख्याल से ही यथासामर्थ्य इसे निकलने की पहल की है। मेरी इस आकांक्षा और प्रयोजन की सिद्धि में जिन रंगकर्मी मित्रों का जैसा भी सहयोग मिला है, मैं उनका इसलिए भी हृदय से सम्मान करता हूँ कि उन्होंने एक बेहतर पत्रिका निकालने की मेरी काबिलियत और जज्बे पर भरोसा किया और किसी भी शर्त की कोई पेशकश नहीं की।

मैं उन सभी रंगकर्मी मित्रों एवं विद्वज्जनों का आभारी हूँ जिन्होंने जोखिम से भरे मेरे इस निर्णय को प्रोत्साहित किया और सहर्ष अपनी रचनाएँ छापने को दीं। मैं उन सभी रंगकर्मियों, साहित्यकारों एवं पत्रकारों का आभारी हूँ जो समय निकाल कर इस लोकार्पण समारोह में शामिल हुए और उन्होंने इस नयी पत्रिका का स्वागत किया।


मैं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और उसकी निदेशक महोदया का आभारी हूँ जिन्होंने मेरे आग्रह पर प्रतिष्ठित भारत रंग महोत्सव के तयशुदा और अतिव्यस्त कार्यक्रम के बीच पत्रिका के लोकार्पण हेतु मंच, संसाधन और अवसर उपलब्ध करने में ज़रा भी विलम्ब नहीं किया और निश्चित रूप से इसके पीछे उनके मन में यही भावना थी की एक वैयक्तिक पत्रिका होते हुए भी यह प्रयास समकालीन रंग परिदृश्य में सकारात्मक हस्तक्षेप की संभावनाओं से युक्त है अतः देश के एकमात्र नाट्य विद्यालय को ऐसे किसी भी प्रयास को संरक्षण और जगह देनी चाहिए।

यह समारोह और मंच राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय या भारत रंग महोत्सव का नहीं बल्कि “समकालीन रंगमंच” पत्रिका का था और इसमें जो भी लोग आमंत्रित थे या शरीक हुए वे पत्रिका के संपादक के आमंत्रण पर एक लोकार्पण समारोह में शामिल होने आये थे। यह एक सामान्य तथा बेहद अनौपचारिक किस्म का लोकार्पण कार्यक्रम था। कार्यक्रम से पहले और मंच से भी यह बात रखी गयी थी कि हम किसी संगोष्ठी या सेमिनार के लिए नहीं बल्कि एक उद्घाटन के साक्षी बनाने के लिए इकट्ठा हुए हैं।

एक आयोजक, रंगकर्मी और संपादक होने के नाते आमंत्रित वरिष्ठ, अनुभवी और सम्माननीय रंगकर्मियों से यह आशा रखना कि वे मंच और अवसर की गरिमा का निर्वाह करेंगे- कोई अपराध नहीं था, और इस बात की तो कतई उम्मीद नहीं की जा सकती थी कि बार-बार अनुनय-विनय करने पर भी वे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को थोड़ी देर के लिए विराम नहीं देंगे।

पत्रिका के मंच से अपेक्षित गरिमा का निर्वाह न करते हुए तथा विषयांतर करते हुए आदरणीय श्री अरविन्द गौड़ जी ने अपने अतिथि संबोधन में जिस प्रकार की तल्खी के साथ गैरज़रूरी और बेमौके की राजनीतिक टिप्पणियां कीं, उसके बाद विवाद को रोकना और समारोह को जारी रखना संभव नहीं रह गया। उनसे अपेक्षा थी कि वे समकालीन परिदृश्य में रंगमंच में संवाद और समीक्षा की जगह और ज़रुरत पर विचार रखते और कुछ ऐसे उपाय सुझाते जिनसे एक नवजात पत्रिका के दीर्घ जीवन की कोई राह निकलती। परन्तु एक शिशु के जन्मोत्सव में भी आत्म-प्रचार की लालसा को संयमित करने का उन्होंने कोई इरादा नहीं जताया। एक आयोजक के नाते इस घटना की नैतिक ज़िम्मेदारी लेते हुए मैं समारोह में उपस्थित सभी रंगकर्मियों, साहित्यकारों एवं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय प्रशासन के समक्ष क्षमाप्रार्थी हूँ कि इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति को रोक पाने में सफल नहीं हुआ और आप सबकी भावनाएं आहत हुईं।
(अरविंद गौड़ का विवादास्‍पद भाषण यहां से सुनें)
मैं वरिष्ठ रंगकर्मी और निर्देशक श्री भानु भारती जी से क्षमा मांगता हूँ कि वे मुझ अकिंचन के आमंत्रण को स्वीकार कर समारोह में उपस्थित हुए और पत्रिका का लोकार्पण भी किया परन्तु उन्हें अपने विचार, अनुभव तथा सुझाव रखने का उपयुक्त अवसर उपलब्ध कराने के दायित्व का मुझसे निर्वहन नहीं हो सका। यहाँ तक कि मैं मंच से उनके प्रति कृतज्ञता भी नहीं ज्ञापित कर सका।

आदरणीय अरविन्द गौड़ जी से मैं अब भी यह आशा रखता हूँ कि वे कल के अपने आचरण पर पुनर्विचार करेंगे और सार्वजनिक तौर पर अफ़सोस प्रकट करेंगे। वे इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के नहीं बल्कि अपने एक रंगकर्मी मित्र के आमंत्रण पर उसका उत्साह बढ़ाने आये थे, पर उन्हें यह बात याद नहीं रही। अगर उनका विचार बदल गया था और वे मुझे या मेरे इस अकिंचन प्रयास को क्षति पहुँचाना चाहते थे तो ऐसा वे बहुत शांत और संयत तरीके से करने में भी सक्षम थे। एक छोटे से कस्बे से निकल कर न मालूम किस किस तरह की मुश्किलों की खाई को पार करते हुए यहाँ तक पहुंचे मेरे जैसे बेहद मामूली रंगकर्मी और समीक्षक पर इतनी ताक़त और तैयारी से हमला कर उन्होंने अपनी ऊर्जा और शक्ति क्यों ज़ाया की, यह बात मेरी समझ से परे है।

राजेश चन्द्र
संपादक
समकालीन रंगमंच, दिल्ली


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4 Comments on “रंगकर्मी बहेलिये और एक गरीब का सपना: संदर्भ NSD, मकर संक्रान्ति”

  1. arvind gaud ke awasarwaadi wyaktitwa se sabhi parichit hain…..unhe apni pulicity ke liye iss tarah ke awasar ka faayadaa uthaana bakhoobi aata hai…..raajesh ji aap itna pareshaan na hon….janataa bade badon ko bhool jaati hai….iss doyam darze ki ghatiyaape ko bhi bhool jaayegi,,,yaad rahegaa to sirf ye ki aap apni patrikaa me kyaa chhapte hain….lage rahiye…achha likhiye aur logon ko achha likhane ka awasar pradaan kijiye,,,,,,maine wo video bhi dekhaa….kyaa log andhe ho gayein hain jo vinit bhayiyaa ke baare me likha rahein hain ki unhone wandanaa ko dhakka diyaa…..koyi andhaa bhi saaf saaf dekh saktaa hai ki vinit bhayiyaa wandanaa ke kandhe pe haath rakh ke adhikaar ke saath use samjhaane ki koshish kar rahein hai……kyaa ptrakaaritaa ke liye mudde ko ek ghatiyaa raajneetik mod dekar itnaa galat likhaa jaata hai..ki saaf saaf dikh rahe video ke baare me hi galat likhaa hai…..aur yahaan vinit bhayi agr wandanaa ko bolne se rok rahein hain to uskaa matlab ye nahin ki wo arwind gaud ke paksh me hain……vinit bhayi ko log jaante hain….wo iss video me naa to vandana ke paksh me hain naa hi arvind gaud ke…..unka aakhiree samwaad suniye…wo sirf ek uttpann hone waale jhagde ko roknaa chaah rahein hai…kyonki unko iss baat ka ahsaas hai ki ye kaaryakram aur ye manch iss ladayi ki jagah nahin hai……aur rahi arvind gaud ki baat to dilli me kise nahin maaloom ki wo ek bahut hi saadharan soch waali awasarwaadi kism ke raajnitigya hai….aur raajesh ji shaayad aapko achha nahin lagegaa ye padhkar ki yaar iss tarah ke logon ko bulaate hi kyun ho aap….aur iss ghatnaa ke peechhe shaayad aapko samajh nahin aayegaa…kuchh bahut puraani bhadaas bhi nikaalee gayi hogi…aap kaa kaaryakram to ek achha bahaana ban gayaa……vinit bhayi ek nishpakha vichaar rakhte hain jinse sabhi waakif hai…..kripayaa unhe arvind gaud ka pakshdhar naa samjhaa jaaye,,,,balki iss video me wo mujhe raajesh chandra ki patrikaa ko bachaate huye dikh rahein hai,,,jo shaayad bahut kam logon ko samajh me aayaa ho……khair…..jo huaa yaa iske baad jo hogaa….us se aap ki patrikaa pe koyi fark naa padegaa…aap to bindaas hokar,,,befikra hokar apni patrikaa pe dhyaan dijiye,,,,meri shubh kaamnaayein aapke saath hai,,,,,

  2. पूरा प्रकरण दुखद है और अरविन्द गौड़ के व्यवहार के एक ऐसे पहलू की और संकेत करता है जो उनके प्रति न केवल शोकिंग है बल्कि बल्कि उनके प्रति निराशा पैदा करता है . वे एक महत्वपूर्ण रंगकर्मी हैं और उनका अपना एक कद है इसीलिए उनसे मर्यादित व्यवहार की अपेक्षा की जाती है . अरविन्द जी के कार्य से उनके तमाम मित्र और शुभेच्छु दुखी हुए होंगे कि इतना बड़ा रंगकर्मी इतने ओछेपन पर भी उतर सकता है कि यह भी भूल जाय कि यह उसका अपना मंच नहीं है बल्कि अन्य अतिथियों की तरह वह भी वहां सम्मानित अतिथि हैं और किसी भी तरह की नकारात्मक कार्रवाई और गाली-गलौज उनका अनधिकृत और आपत्तिजनक कृत्य है . किसी पत्रिका के लोकार्पण के मौके पर सायास इतर प्रसंग पैदा करना उनकी नीयत पर संदेह पैदा करता है कि वे संभवतः किसी मुद्दे को सही जगह पर सुलटाने के योग्य नहीं हैं . ऐसा आदमी क्या भारत को भ्रष्टाचारमुक्त कराएगा ? बल्कि बात तो इतनी बढ़ी चली जाती है कि लगता है जैसे अन्ना हजारे और अरविन्द केजरीवाल समझ-बुद्धि के ऐसे लौंडे-लपाड़ों से घिरे सूरमा हैं जो किसी भी नयी शुरुआत को बड़ी बेरहमी से रौंद सकते हैं क्योंकि उससे उनका कोई न कोई स्वार्थ पूरा होता है . कितनी बड़ी त्रासदी है कि देश कि जनता को ऐसे लोगों पर भरोसा करने के लिए मिडिया दिन-रात कार्यरत है . सोचने की बात है कि अगर अरविन्द गौड़ राजेश चन्द्र की एक निजी और साधनहीन परन्तु महत्वपूर्ण पहलकदमी को इतनी बेरहमी से कुचल सकते हैं क्या वे कल को ऐसे जनलोकपाल की नियुक्ति के लिए जोर नहीं देने लगेंगे जो उनके हिसाब से काम करे !अरविंद जी ने कई तरह के सवाल छोड़े हैं और उनके जवाब लोगों के लिए इतना हतप्रभ करने वाले हैं कि वे दरअसल एक घटिया मनोवृत्ति के मनुष्य हैं और अपने स्वार्थ को नितांत कायराना तरीके से भी अंजाम देते हैं . क्या पता कल को वे इसके इतने आदी हो जाएँ कि मंडी हाउस से गुजरने वाले अपने किसी विरोधी के ऊपर ईंट-पत्थर ही चलाने लगें . क्योंकि तर्क तो उनके पास अब हैं नहीं . अगर वे पानीदार व्यक्ति हैं तो उन्हें अपने कृत्य पर शर्मिंदा होने से ही मानसिक शांति मिलेगी .

  3. राजेशजी, आपने जिन्हें अपने चूल्हे की रोटी खिलाने के लिए बुलाया था, वे अपनी रोटियाँ सेंकने के लिए आपके चूल्हे में ही पानी डालने लगे… ऐसों को आपने बुलाने में गलती कर दी… अपनी पत्रिका को सँभालिए… एक-आध बहेलिया क्या आखेट करेगा आपकी जिजीविषा का, आपके परिश्रम का? उन्हें छोड़ दीजिए… ज़माना तो उन्हें छोड़ ही चुका है… तो तमीज़ भुलाने वालों के लिए आप कहाँ तक और किस-किसको सफ़ाई देते रहेंगे…वैसे भी ठूठों में रस कहाँ होता? उन्होंने आपका कार्यक्रम बिगाड़ा, किंतु आपकी पत्रिका को तो नहीं बिगाड़ पाएँगे…

  4. यह घटना जैसी भी रही हो, (मैंने भरसक पूरा प्रसंग देखा) …मैं अरविंद गौड़ के पक्ष में हूँ। शायद 1986-87 से उन्हें जानता हूँ, निकट से। पी टी आई में वे मेरे सहयोगी भी थे। उनके संघर्षों और उपलब्धियों को मैं ही नहीं , हर वह रंगकर्मी जानता है, जो सरकारी संस्थानों पर नहीं, अपनी मेहनत , प्रतिभा, लगन और जागरूकता की वजह से अपनी जगह बनाता है। वे रंगमंच के बाबा नागार्जुन हैं और मेरे साथी हैं। भले ही उनके 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' आन्दोलन में अन्ना हजारे या अरविन्द केजरीवाल की टीम में उनके सम्मिलित होने से मेरा इत्तिफ़ाक न हो। अरविन्द का रंगकर्म एन एस डी के बिना है।

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