अभिषेक श्रीवास्तव
मेरी पत्नी जब सोती है चैन से
बिलकुल बच्चे की तरह निर्दोष
तब याद आते हैं पिता…
क्योंकि तब,
मेरी मां
ले रही होती है करवटें अपने कमरे में
सुबह का इंतजार करते।
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मेरे मन में मां को लेकर कोई आदर्श छवि नहीं है
कि उसे ऐसा होना चाहिए या वैसा
पिता को लेकर जरूर है।
इसीलिए मुझे अपने पिता से ज्यादा प्रेम है
और मां
बगैर यह जाने
दुखी रहती है सनातन।
मैं नहीं चाहता कभी वह जाने
मेरे दिल की बात।
3
लोग कहते हैं मुझसे
मां ने तुम्हारे लिए जिंदगी लगा दी,
उसे मत देना कभी दुख।
मैं
पूछ भी नहीं पाता मां से
कि उसे दुख किससे है
मुझसे
या पिता के नहीं होने से।
अब भी मनाता हूं
कि उसे हो जाए किसी से प्रेम
भाग जाए वह घर से
किसी के साथ
आलोक धन्वा की लड़कियों की तरह
और कटे मेरा पाप
उसका दुख
एक साथ।
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