हम तब भी कहते थे कि बेगुनाह हैं, और आज अदालत भी यही कह रही…

देश को समझना होगा कि ये नौजवान जिन्हें सालों बाद छोड़ा जा रहा ये इस देश के मानव संसाधन हैं. जेल में कैद कर सियासत कामयाब हो सकती है पर मुल्क नहीं.

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‘यूपी की सत्ता में बहुजन राजनीति का किला दोबारा खड़ा करना ही नेताजी को सच्ची श्रद्धांजलि’!

बाबरी मस्जिद के विध्वंस ने विध्वंसक राजनीति को उकसाया। उस दौर में कांशीराम-मुलायम सिंह के गठजोड़ ने इसे थोड़े वक़्त के लिए ही सही मुकाबला किया। तब नारे लगते थे ‘लोहा कटे लोहरे से सोना कटे सोनारे से, जब मुलायमा हाथ मिलाए कांशीराम से’।

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गौतम नवलखा और आनंद तेलतुंबडे को जेल गए आज एक साल हो गया…

हम अपने समय के सबसे मुश्किल दौर में जी रहे हैं जब हमारे बुद्धिजीवियों को कैद किया जा रहा है और हम शायद ही उनके लिए लड़ पा रहे हैं. हम तो लड़ नहीं पा रहे हैं. शुक्र है किसान आंदोलन का जो उनके पक्ष में खुलकर खड़ा हुआ.

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दिल्ली दंगा: अपराधियों को बचाने और पीड़ितों को फँसाने की अँधेरगर्दी

रिपोर्ट में मानवाधिकार आयोग समेत पूरे न्यायतंत्र को भी उसकी भूमिका के लिए कटघरे में खड़ा किया गया है जो संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करने में विफल रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और अधिवक्ताओं पर हमलों, प्रताड़नाओं और फर्जी मुकदमों का ज़िक्र करते हुए न्याय और देशहित में आठ सूत्रीय मांग भी की गई है।

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