‘संकट की इस घड़ी में हम आपके साथ हैं’ – फ़लस्तीनी लोगों के प्रति एकजुटता का इज़हार
इज़राएल और अमेरिका द्वारा किये जा रहे जनसंहार को तत्काल समाप्त करने की माँग
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इज़राएल और अमेरिका द्वारा किये जा रहे जनसंहार को तत्काल समाप्त करने की माँग
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अनेक संगठनों व व्यक्तियों के द्वारा गठित यह राष्ट्रीय मंच इस पहल के माध्यम से समस्त न्यायपालिका से न्यायिक जवाबदेही को लेकर एक दीर्घकालिक अभियान की शुरुआत कर रहा है।
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दशकों से लैंगिक न्यायशास्त्र विकसित करने में न्यायविदों, महिलाओं और महिला संगठनों द्वारा की गई प्रगति को यह फैसला अदृश्य बना देता है
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हम दोनों पक्षों से अपील करते हैं कि वे हर प्रकार की हिंसा को तत्काल प्रभाव से रोकने के लिए युद्धविराम को स्वीकार करें और इसकी औपचारिक घोषणा करें। अब किसी भी पक्ष की ओर से कोई शत्रुतापूर्ण कार्रवाई नहीं होनी चाहिए—चाहे वह सैन्य अभियान, गैर-न्यायिक हत्याएं और मुठभेड़ हों, आईईडी विस्फोट और नागरिकों की हत्या हो या किसी भी प्रकार की हिंसा।
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आज़मगढ़ नागरिक समाज ने राहुल सांकृत्यायन के ननिहाल पन्दहा जहां उनके नाम से प्राथमिक और पूर्व माध्यमिक विद्यालय है वहां की खस्ताहाल सड़क बनवाने की मांग की। जिससे राहुल को खोजते हुए देश दुनिया के लोग आसानी से पहुंच सकें।
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मारुति सुजुकी के अस्थायी श्रमिकों ने पिछले तीन दिनों में मानेसर और गुरुग्राम में पुलिस कार्रवाई के बावजूद असाधारण साहस और संकल्प दिखाया और पीछे हटने से साफ इनकार कर दिया। प्रबंधन और पुलिस-प्रशासन लंबे समय से चल रही इस कार्रवाई के बावजूद श्रमिकों को डराने और उनके संघर्ष को रोकने में सफल नहीं हो पा रहे हैं।
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मसौदा नीति में न्यायसंगत, टिकाऊ और समावेशी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली का विस्तार से उल्लेख किया गया है, जिससे परिवहन सभी के लिए अधिक किफायती और सुलभ बन सके। इसमें “क्लाइमेट टिकट्स” जैसे प्रमुख सुझाव शामिल हैं, जो मुफ्त या रियायती सार्वजनिक परिवहन विकल्प प्रदान करते हैं।
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मांगपत्र 9 जनवरी, 2025 को कंपनी प्रबंधन को भी सौंपा गया। श्रम विभाग ने 31 जनवरी, 2025 को कंपनी प्रबंधन और संघ के साथ त्रिपक्षीय बैठक निर्धारित की है। प्रदर्शन में हरियाणा के मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन भी सौंपा गया और 30 जनवरी को आईएमटी मानेसर में बड़े पैमाने पर लामबंदी और मज़दूर मार्च की घोषणा की। विभिन्न राज्यों के अस्थाई मज़दूरों और मारुति से निकाले गए मज़दूरों के प्रतिनिधियों की एक कार्यसमिति इस आंदोलन का नेतृत्व कर रही है।
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पैराग्राफ 185-188 में की गई टिप्पणियां कानूनी सहायता दिलवाने, तथ्यान्वेषी दौरों और आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाने के मानवाधिकार संगठनों के काम को अवैध ठहराने का प्रयास करतो हैं। उपरोक्त सभी महत्वपूर्ण संवैधानिक उपकरण हैं जिनका उपयोग स्वतंत्र संगठन सही तथ्यों की जांच करने, जवाबदेही तय करने और सांप्रदायिक दंगों के पीड़ितों के लिए सहायता सुनिश्चित करने के लिए करते आए हैं। संगठनों पर आक्षेप लगाकर माननीय न्यायालय राज्य के खिलाफ काम करने वाले “राष्ट्र-विरोधी” हितों के निराधार आख्यान का सहारा ले रहा है।
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पीयूसीएल ये मांग करता है कि ऐसे गलत ढंग से गिरफ्तार करने और कानून के दुरुपयोग पर माननीय इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्वतः संज्ञान ले और जांच एजेंसियों पर ज़रूरी अंकुश लगाए और साथ ही कुछ कड़े दिशानिर्देश जारी करे जिससे इस प्रकार से मानवाधिकारों का हनन ना हो।
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