आने वाली तानाशाही सत्ताओं की एक आहट थी 1965 में आधी रात डॉ. लोहिया की गिरफ्तारी
समाज जब-जब अपनी विभूतियों को भूलता है, तब-तब वह भटकाव का शिकार होता है। क्या इस डरावनी वैचारिक शून्यता में हम डॉ. राममनोहर लोहिया के विचारों को फिर से समझने की कोशिश करेंगे?
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