डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं प्रवासी मज़दूर- रिहाई मंच


आजमगढ़ 12 अप्रैल 2020। बहुजन नायक, महान चिंतक और समाज सुधारक ज्योतिबा फुले की जयंती पर कल उनको याद करते हुए जरूरतमंदों तक रिहाई मंच के साथी पहुँचे। पूरा फुले परिवार समानता और शिक्षा के लिए जीवन भर संघर्षरत रहा। खतरे उठाए, पीड़ा झेली लेकिन कभी निराशा को करीब भी फटकने नहीं दिया। इसके विपरीत अंधविश्वास के खिलाफ लड़ते हुए दबे–कुचले समाज में साहस और उत्साह का संचार करते रहे। सावित्री बाई फुले ने महामारी के दौरान लोगों की सेवा किया। उस संघर्ष और त्याग को याद करते हुए आज के संदर्भ में खासकर प्रवासी मजदूर भाइयों को संघर्ष की वही अलख जलाए रखनी होगी।

रिहाई मंच संयोजक मसीहुद्दीन संजरी ने कहा कि लॉक डाऊन के बीच देश के कई राज्यों में फंसे प्रवासी मज़दूरों के फोन लगातार आते रहे हैं। कोई रास्ते में फंसा था, किसी पास राशन नहीं था, किसी के पास रहने की उचित व्यवस्था नहीं थी। कई संगठनों से सम्पर्क कर उनकी सहायता भी करवाई गई। स्वभाविक रूप से उनमें से सभी घर वापस जाना चाहते थे। लॉक डाऊन हो गया। जो जहां था वहीं फंसकर रह गया। लॉक डाऊन खत्म होते ही उन्हें उम्मीद थी कि घर जाने का मौका मिलेगा लेकिन उसमें विस्तार के संकेत से अब उनका सब्र टूटता दिखाई पड़ रहा है।

वे कहते हैं कि आज एक फोन कॉल ने व्यथित कर दिया। कॉल पंजाब से थी। हमारे साथी तारिक शफीक से सुमित ने किसी प्रकार घर पहुंचने के उपाय पूछे। लॉक डाऊन की मजबूरी सुनते ही उसने कहा कि अब आत्महत्या कर लेगा। इसके अलावा कोई चारा नहीं है। उसे समझाने का प्रयास किया गया। कितना असर होगा यह तो शायद ही पता चले इसलिए कि मज़दूरों के दुख खबर कम ही बन पाते हैं। अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं कि भूख–प्यास की तकलीफ और महामारी के जोखिम के साथ डिपरेशन का खतरा भी बढ़ता जा रहा है। उम्मीद है कि बेइंतेहा पीड़ा झेल रहे सुमित जैसे दिहाड़ी मज़दूरों को विपरीत परिस्थितियों में ज्योतिबा फुले के संघर्षों से दुखों को पराजित करने का मार्गदर्शन प्राप्त होगा।

मसीहुद्दीन संजरी
रिहाई मंच
80906 96449


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

View all posts by जनपथ →