सबसे अच्‍छा होता है मौन से निकला सवाल…


अविनाश ने मोहल्‍ले में मेरे सुबह के पत्र को जगह दे ही दी, कम से कम टिप्‍पणी में ही सही। उसका जवाब भी दिया है…जवाब क्‍या सवाल है बाकायदा। अब इतनी लंबी चिट्ठियों के बाद भी भाई अविनाश को मेरी असहमति के ठोस बिंदु समझ में नहीं आएं तो यह लाजवाब करने वाली बात है। भइया, तखल्‍लुस तो बनारसी सांड मैंने रखा है, लेकिन लगता है हकीकत कुछ और ही है…बलिहारी जाऊं मौन से निकले ऐसे सवाल पर…

कहते हैं अविनाश…

एक ठे भटकल बनारसी सांड को अब मैं क्‍या जवाब दूं। असहमति के ठोस बिंदु उनके क्‍या हैं, यही मैं नहीं समझ पा रहा हूं। इसलिए जब ये साफ साफ कहेंगे बनारसी सांड, तभी कोई ठीक ठीक जवाब भी दिया जा सकेगा।

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2 Comments on “सबसे अच्‍छा होता है मौन से निकला सवाल…”

  1. सही कहे पर्दीप भइया , ई दूनो बस ऐसे ही लडत लडत मर जहीए , कुच्चौ नाही हो सकत है.
    बजार के ठेकेदार.

  2. आप लोगो के आत्म मुग्धता पर हमे तरस आ रही है .मोहल्ला के लोग जनपथ से बहुत दूर है .जनपथ मोहल्ले की तरफ़ नही जाता है आज के हिंदुस्तान की नग्न सच्चाई यही है . आख़िर यह बहस कुयओ हो रही है . क्या बहस के लिए ही बहस होगी या सूरत भी बदलने की कुछ कोसिस होगी .यह दो घमंड मे पागल हुए लोगो के प्रलाप से ज़्यादा कुछ नज़र नही आता है .पिछले काफ़ी दिनो से एक बनारसी साण्ढ और कुछ नम्चीं लोग मे बहस हो रही है जिसका कोई मतलब नही है यह जगह उन लोगो के लिए नही है जिसको कही जगह नही है .सस्ती लोकप्रियता का इससे सस्ता साधन और नही हो सकता है .आप लोग आपनी ऊर्जा जो जनहित मे या स्वहित मे लगा सकते है ऊसका दुरूपयोग का यह सबसे आसा तरीक़ा है .आप लोग कमेंट के लिए यह नाटक कर रहे है . प्रदीप सिंह,बजार वाला

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