जैंजि़बार के दिन और रातें: पांचवीं किस्‍त


प्रो. विद्यार्थी चटर्जी
जैंजि़बार का समाज परंपरा और आधुनिकता के दो स्तंभों पर टिका है। ये दोनों एक-दूसरे से संघर्ष में नहीं, बल्कि परस्पर पूरक हैं। कभी-कभार ऐसा रहस्यमय और अजीबोगरीब तरीकों से होता है। सबसे पहले मैं आपको उन चीज़ों के बारे में बताना चाहूंगा जिन्हें न करने की हिदायत यहां का प्रशासन उन सैलानियों को देता है, जिन्हें यहां की स्थानीय परंपरा और आचार-व्यवहार का पता नहीं होता।
एक साल पहले यहां कोई अंतरराष्ट्रीय संगीत महोत्सव हुआ था जिसका कैटलॉग मेरे हाथ लग गया। उसमें दी गई हिदायतों को मैं गिनवाता हूं: ‘‘स्टोन टाउन (मुख्य रिहायशी इलाका) और जैंजि़बार के अन्य शहरों व गांवों में बिकिनी, मिनि स्कर्ट या ऐसे ही कपड़े पहन कर न घूमें। जज़ीरे के अधिकतर रहवासियों की इस्लामिक आस्था के मद्देनज़र सैलानियों से शालीन कपड़े पहनने की दरख्वास्त की जाती है। महिलाएं अपना कंधा ढंक कर रखें और घुटने से नीचे के ट्राउज़र या स्कर्ट पहनें। पुरुष बिना टी-शर्ट के न घूमें… जैंजि़बार के तटों पर टॉपलेस न जाएं। सैलानी तटों पर बिकिनी और स्विमवियर स्वीकार्य हैं, बशर्ते वहां मछुआरे या खेतिहर न मौजूद हों। याद रखें कि रमज़ान के महीने में सार्वजनिक स्थलों पर खाना-पीना बहुत बुरा माना जाता है। लोगों या घरों की तस्वीरें उतारने से पहले अनुमति लेना न भूलें…मत भूलें कि जैंजि़बार मुस्लिम समाज है। यहां शराब आसानी से मिलती है लेकिन नशे की हालत में की गई किसी भी गतिविधि के प्रति अधिकांश लोग सहिष्णु नहीं हैं, बल्कि वे इसे अपमानजनक मानते हैं..।’’
स्‍टोन टाउन की एक गली और इस्‍लामिक तहज़ीब
पीने की बात से मुझे अचानक जैंजि़बार का सबसे मशहूर नाइट क्लब याद आ गया जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध 93 वर्षीय गायिका बी फातिमा बिन्ती बराका की प्रस्तुति देखने का मुझे सौभाग्य मिला था। उन्हें प्यार से बी किडूडे कहते हैं। जैंजि़बार में बी किडूडे अपने आप में एक संस्थान हैं। वे पूर्वी अफ्रीका की महानतम जीवित सांगीतिक विरासत हैं। मैं अब भी इस उम्मीद में हूं कि यह महान शख्सियत जि़ंदा हो, इसीलिए ऐसे लिख रहा हूं। यदि वे जि़ंदा होंगी, तो आज 99 बरस की होंगी। (बी किडूडे 99 बरस की उम्र में जि़ंदा हैं। उनका साक्षात्‍कार देखने के लिए यहां क्लिक करें: मॉडरेटर)
बी किडूडे मेरे मस्तिष्क की शिराओं में अपनी कई छवियों के साथ कैद हैं। वे अतीत और वर्तमान, परंपरा और आधुनिकता का ऐसा संगम हैं जो आपके भीतर सिहरन पैदा करती हैं। मैं जब उस नाइट क्लब में घुसा, और आश्चर्यजनक रूप से मुझसे प्रवेश शुल्क नहीं मांगा गया, तो मैंने देखा कि एक माइक के सामने रोशनी के एक टुकड़े के बीच वे धीरे-धीरे हिल रही थीं। उनका सिर ढंका था और देह पर एक रंगीन कपड़ा लिपटा था। बाएं हाथ में उनके एक सिगरेट थी और दाएं हाथ में बियर का छोटा ग्लास। जैंजि़बार के विशिष्ट संगीत तारब का प्रतिनिधित्व करने वाली किडूडे गा रही थीं, नाच रही थीं और बीच-बीच में सिगरेट का एक कश खींच ले रही थीं या बियर गटक ले रही थीं। एक मौके पर तो वे मंच से नीचे दर्शकों के बीच उतर आईं और भीड़ में शामिल हो गईं। उनका आत्मविश्वास और उनकी कला का जादू ऐसा मंत्रमुग्ध करने वाला था कि वे वहां मौजूद किसी को भी कुछ भी करने को सहर्ष तैयार कर सकती थीं। आधी रात के बाद मैं वहां से निकला अपने होटल के लिए, मुझे बाद मे पता चला कि भोर की पहली किरण के साथ बी किडूडे ने अपना गीत खत्म किया था। सुबह होने तक उनके चाहनों वालों से क्लब भरा हुआ था।
बी किडूडे की सही जन्मतिथि अज्ञात है लेकिन उनकी जिंदगी की दास्तान अधिकांशतः अटकलों का एक ऐसा सिलसिला है जो उनके जीवन को तकरीबन मिथकीय बना देता है। माना जाता है कि 20वीं सदी के मुहाने पर उनका जन्म हुआ था। 1920 के दशक में उन्होंने अपने संगीत के सफर की शुरुआत की। उनकी एक बात अकसर सुनने को मिल जाती है, ‘‘मैं गाना कैसे रोक सकती हूं? मैं जब गाती हूं तो 14 साल की किशोरी बन जाती हूं।’’ स्वाहिली कला और संगीत की एक सदी को अपने में समोए किडूडे ने काफी यात्राएं की हैं और भारत, जापान, मध्य-पूर्व व अफ्रीका के विभिन्न हिस्सों में अपनी प्रस्तुतियां दी हैं। उन्होंने 2004 में तीन महीने तक जैंजि़बार के सांस्कृतिक क्लब तारब ऑर्केस्ट्रा के साथ यूरोप भर का दौरा किया। धमाकेदार प्रस्तुतियों और प्रशंसात्मक समीक्षाओं से भरे इस दौरे पर एक पत्रकार ने उनके बारे में लिखा, ‘‘अपने विनम्र स्वभाव, अतुलनीय मंचीय शख्सियत, आवाज़ की ताकत के चलते बी किडूडे जहां-जहां अपने ग्रुप के साथ गईं, उन्होने लोगों का दिल जीत लिया।’’
इसी पत्रकार ने लिखा था कि यूरोपीय दौरे के बीच एक अफवाह फैली कि बी किडूडे की मौत हो गई है। उसने लिखा, ‘‘स्टोन टाउन की संकरी गलियों से लेकर गाम्बो के बाज़ारों तक और समूचे गांवों में यही खबर चर्चा का विषय थी। पूरा जज़ीरा शोक की लहर में डूब चुका था। बाद में अधिकारियों ने बी किडूडे के यूरोपीय प्रायोजकों के सौजन्य से इस बात की पुष्टि भी कर डाली कि वे जीवित और स्वस्थ हैं, इसके बावजूद लंबे समय तक यह अफवाह बनी रही और फैलती रही।’’ जब बी किडूडे को पता चला कि जैंजि़बार के लोग उनके मरने का शोक मना रहे हैं, तो उन्होंने एक संदेश भिजवाया जो उनके असीमित आशावाद और अपनी कला के साथ मरते दम तक बने रहने की इच्छा का प्रतीक है, ‘‘मैं अब तक नहीं मरी हूं। लोग शायद इसलिए ऐसा कह रहे होंगे कि उन्होंने मुझे महीने भर से नहीं देखा। लेकिन हम अब भी सफर में हैं जो दो माह तक और जारी रहेगा। मैं बिल्कुल ठीक हूं, मुझे कोई दिक्कत नहीं। मैं अपनी पूरी ताकत से गाती हूं और जब तक जिंदा रहूंगी, ऐसे ही गाकर लोगों को सुख देती रहूंगी।’’
सच तो ये है कि बी किडूडे जैसी शख्सियत मरा नहीं करती। जीवन और मृत्यु के शाश्वत सत्य के बंधन में बंध कर वे हमारी आंखों से ओझल हो जाती हैं, लेकिन मरती नहीं। जिन्होंने इन्हें एक बार भी देखा, सुना है या बात की है, उनकी निजी और सामूहिक स्मृतियों में ऐसी शख्सियत हमेशा के लिए पैबस्त हो जाती हैं।
ये पंक्तियां लिखते वक्त मेरे सामने एक प्रमोशन कार्ड है जिसे किडूडे पर बनी एक फिल्म के निर्माताओं ने जारी किया है। फिल्म का नाम है ”ऐज़ ओल्ड ऐज़ माइ टंग- दी मिथ एंड लाइफ ऑफ बी किडूडे”! फिल्म के निर्माता किडूडे के बारे में अपने खयाल कुछ यूं रखते हैं: ‘‘अपने गृह देश जैंजि़बार में बी किडूडे एक जीती-जागती दन्तकथा हैं। अपनी लंबी यात्राओं के माध्यम से उन्होंने दुनिया भर के संगीत प्रेमियों का जी बहलाया है। सुल्तानों, राष्ट्राध्यक्षों और जहाजियों के बीच उनकी लोकप्रियता अद्भुत है। उन्होंने उम्र के बारे में और मुस्लिम समाज में एक महिला के बारे में हमारी धारणा को ही बदल दिया है। उनके छोटे से घर में उन्हें देखना और फिर शहर में धुआं उड़ाते मस्ती करते देखना दोनों अपने आप में अद्भुत अनुभव हैं।’’ पांच वक्त की नमाज़ी बी किडूडे अपनी रात्रि प्रस्तुतियों को खुदा के प्रति अपनी बंदगी के रूप में ही देखती हैं। (क्रमश:)

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