देशभर में मजदूरों ने उठाई मोदी-सरकार के खिलाफ जोरदार आवाज़
नई दिल्ली : देश के लगभग सभी राज्यों में केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों व विभिन्न फेडरेशनों ने मोदी सरकार की मजदूर विरोधी – जन विरोधी नीतियों के खिलाफ शुक्रवार को विरोध प्रदर्शन किया. ज्ञात हो कि ये प्रदर्शन तब हो रहे हैं जब कोयला क्षेत्र के मजदूर सरकारी नीतियों के खिलाफ हड़ताल पर हैं, ऑर्डनेन्स फैक्ट्री के कर्मचारी आन्दोलन की तैयारी कर रहे हैं और करोड़ों की संख्या में बेरोज़गारी और भुखमरी की मार झेल रहे प्रवासी मजदूर रोजी-रोटी को लेकर परेशान हैं.
कलकत्ता के रानी राशमोनि रोड से ट्रेड यूनियन के नेताओं को प्रदर्शन शुरू होने से पहले ही पुलिस ने उठा लिया और लाल-बाज़ार थाना ले गई. चित्तरंजन में रेल कारखाना मजदूरों ने भी आज के प्रदर्शन में हिस्सा लिया. इलाहाबाद के सिविल लाइन्स पर ट्रेड यूनियनों ने पुलिस-बल की भारी तैनाती के बीच संयुक्त प्रदर्शन किया, जिसमें रेल कर्मचारियों ने भी भागीदारी की. बिहार के लगभग सभी जिलों में ज़ोरदार प्रदर्शन हुए – आशा, रसोइया व निर्माण मजदूरों ने इसमें प्रमुख भूमिका निभाई. पटना के डाकबंगला चौराहा पर प्रधानमन्त्री मोदी का पुतला फूंका गया और संयुक्त सभा की गई. तमिलनाडु के कई हिस्सों में मजदूरों ने आज के कार्यक्रम में हिस्सा लिया. आन्ध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में भी ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं को पुलिस द्वारा डीटेन किया गया. आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम, विशाखापत्तनम, येल्लेस्वरम, ईस्ट गोदावरी इत्यादि जिलों में विरोध प्रदर्शन हुए. गुजरात के वलसाड में ऐक्टू से जुड़े मजदूरों ने अच्छी संख्या में भागीदारी की. ऐक्टू से जुड़े मजदूर साथियों ने राजस्थान के उदयपुर, चित्तौड़, अजमेर, जयपुर, झुंझनु आदि जिलों में प्रदर्शन किया.
दिल्ली के विभिन्न जिलों में श्रम कार्यालयों पर प्रदर्शन किया गया व रफी मार्ग स्थित श्रम शक्ति भवन पर केन्द्रीय कार्यक्रम भी हुआ. कार्यक्रम को संबोधित करते हुए ऐक्टू के राष्ट्रीय महासचिव राजीव डिमरी ने कहा कि मोदी सरकार लॉक-डाउन के आड़ में मजदूरों के सारे अधिकार छीनने के साथ-साथ, जनता की संपत्ति को निजी हाथों में बेच रही है. रेल, कोयला, डिफेंस, बीमा जैसे महत्वपूर्ण सेक्टरों में निजी कंपनियों को लूट की छूट दी जा रही है. ऐक्टू उन सभी बहादुर मजदूरों को सलाम करता है, जिन्होंने कोयला क्षेत्र को अपनी एकता के बल पर पूरी तरह से बंद कर दिया.
मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ में प्रवासी मजदूरों को राशन के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है. लॉक-डाउन के चलते करोड़ों मजदूरों की नौकरियां चली गई और मालिकों द्वारा वेतन भी हड़प लिया गया. राजधानी दिल्ली तक में कई सरकारी विभागों के कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को पूरा वेतन नहीं मिला. कई मजदूर सड़क दुर्घटनाओं में मारे गए तो कइयों ने श्रमिक ट्रेनों में जान गवा दी, अब तो भुखमरी और गरीबी से परेशान कई मजदूर आत्महत्या करने तक को मजबूर हैं ! सफाई कर्मचारियों, स्कीम वर्कर्स और स्वास्थ्य कर्मचारियों को बिना ‘पीपीई’ के काम कराया जा रहा है. मोदी सरकार नफरत-हिंसा और राज्य दमन का सहारा लेकर मजदूरों की एकता को तोड़ने और उन्हें डराने की कोशिश कर रही है. हमे इसके खिलाफ पूरी ताकत से लड़ना होगा. प्रदर्शन के उपरान्त श्रम मंत्री संतोष गंगवार को ज्ञापन भी सौंपा गया. प्रमुख मांगों में सभी प्रवासी मजदूरों को 7500 रुपए प्रतिमाह भत्ता, निजीकरण – कॉर्पोरेटीकरण पर रोक आदि शामिल थे.
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