हाल ही में नेपाल सरकार ने अपना राजनैतिक और प्राशासनिक नक्शा सार्वजनिक किया जिसमें आधिकारिक तौर से कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेक को अपने नक्शे में शामिल कर के विश्व मानचित्र में नेपाल के नक्शे को बढ़ाकर दिखा दिया। दरअसल, कुछ महीने पहले भारत ने लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेक को अपने नक्शे में शामिल किया था जो कि अवैधानिक, गैर-न्यायिक और असंवैधानिक कदम था। इसने भारतीय कूटनैतिक अक्षमता को जगजाहिर कर दिया।
भारत और नेपाल की सीमा के निर्धारण का निर्णायक आधिकारिक दस्तावेज़ सुगौली सन्धि है जिससे यह स्पष्ट हो जाता है कि यह जमीन नेपाल से ताल्लुकात रखती है। भारत ने इस ज़मीन को अपने नक्शे में शामिल कर के बहुत बड़ी गलती कर दी क्योंकि संयुक्त राष्ट्र संघ, विश्व अदालत में भारत यह कभी साबित नहीं कर सकता है कि यह ज़मीन भारत से सम्बन्ध रखती है।
जब नेपाल राष्ट्र बना, तब भारत या हिन्दुस्तान भी नहीं बना था। पौराणिक काल में भी नेपाल देश का अलग अस्तित्व था। इसका प्रमाण स्कन्दपुराण का हिमवत्खण्ड है जहां भगवान शिव माता पार्वती को बताते हैं कि नेपाल देशो जननी जगज्ज्येष्ठो हिमालय: अर्थात् हे पार्वती, नेपाल देश जो है वह जगत का ज्येष्ठ देश है और यह देश स्वयं में हिमालय जैसा अटल और श्रेष्ठ है। मानव विकास का क्रम नेपाल से ही हुआ है, शालिग्राम इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
अगर इतिहास देखें तो नेपाल और भारत हमेशा दोस्त रहे हैं। चाहे श्रीराम हों या बुद्ध, दोनों के प्रसंग में नेपाल और भारत साथ हैं। नेपाल और भारत की संस्कृति, सभ्यता और धर्म में भी बहुत समानताएं हैं और सामान्य जनता के बीच आज भी बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं। पिछले कुछ दशकों मे हालांकि भारतीय कूटनीति नेपाल के ऊपर कुछ गलत तरीके से प्रयुक्त हो रही है। यह बात भारतीय जनता को भी जानना जरूरी है क्योंकि नेताओं की ग़लती की सजा दोनों देशों की मासूम जनता को नहीं मिलनी चाहिए और दोनों मुल्क की जनता के जो आपसी सम्बन्ध हैं वो सुमधुर ही रहने चाहिए।
अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए भारतीय स्वतन्त्रता की लड़ाई मे गांधीजी और भारतीय जनता को नेपाल ने सहयोग किया था। नेपाल से विश्वेश्वर प्रसाद कोइराला, जो कि बाद में नेपाल के प्रधानमंत्री बने, उनके साथ नेपाल के लोग भी अंग्रेज़ों के विरुद्ध सत्याग्रह की उस लड़ाई में भारत की ओर से लड़ने गये थे। जिस वक्त अंग्रेज़ भारत में राज कर रहे थे उस वक्त नेपाल के अन्दर कुमाऊँ, गढ़वाल, सिक्किम, असम के भूभाग सहित पूरब की ओर तीस्ता और पश्चिम की ओर कांगड़ा तक नेपाल का साम्राज्य फैला हुआ था। इसीलिए आज भी भारत के कई राज्यों मे नेपाली भाषियों का बाहुल्य है। अंग्रेज़ों ने बार-बार नेपाल पर हमला किया पर हर बार नेपालियों ने अंग्रेज़ों को पटकनी दी और नेपाल में ईस्ट इन्डिया कम्पनी कब्जा नहीं जमा सकी जिस कारण नेपाल कभी किसी के उपनिवेश या कब्जे में नहीं गया। इसीलिए नेपाल में स्वतन्त्रता दिवस मनाया ही नहीं जाता क्योंकि नेपाल प्राकृतिक रूप से ही एक सार्वभौम और स्वतन्त्र राष्ट्र है।
भारत के उत्तराखण्ड के देहरादून में नेपालियों की वीर गाथाओं का स्मारक है। तात्कालिक अंग्रेजों ने भी नेपाली गोरखा वीरों का सम्मान किया है और विश्व के बहुत देशों मे गोर्खालियों की वीरता के किस्से और स्मारक हैं। अंग्रेज पूरे नेपाल पर कब्ज़ा तो नहीं जमा सके पर नेपाल के कुछ भूभाग उन्होंने लूट लिए जिससे नेपाल की सियासत की लगभग आधी ज़मीन अंग्रेज ले गये। इसके बावजूद लिम्पियाधुरा, कालापानी और लिपुलेक के क्षेत्र नेपाल के ही हैं, यह प्रमाणित इसलिए होता है कि उस क्षेत्र में निर्वाचन करवाना, कर उठाना, सब नेपाल की ओर से ही होता रहा। बाद में जैसे-जैसे सुविधायुक्त ज़माना आता गया, धीरे-धीरे वहां से बस्ती भी उठती गयी और इसी का फायदा उठाकर भारत ने अपनी सेना को उस इलाके में भेजा जो कि नेपाल, भारत और चीन के बार्डर वाला नेपाल का हिस्सा है। भारत और नेपाल के दोस्ताना सम्बन्ध के चलते नेपाल ने सोचा, चलो मित्र राष्ट्र है, थोड़ी सी हमारी जमीन का अस्थायी प्रयोग करता है तो क्या हुआ। इस विषय पर कूटनैतिक वार्ता तब भी हुई थी। तब नेपाल के राजा महेन्द्र थे। भारतीय सेना को शरण के तौर पर रहने के लिए उस जमीन को दिया गया।
जब कुछ महीने पहले भारत ने उस ज़मीन को अपने नक्शे में शामिल किया, वहां से मामला बिगड़ गया और नेपाल व भारत के रिश्तों मे खटास आ गयी। नेपाल की कूटनैतिक पहल को जब भारत ने नजरअन्दाज कर दिया तो नेपाल ने भी अपनी ज़मीन को नक्शे मे शामिल कर लिया। कहने के लिए तो भारत, नेपाल को अपना मित्र राष्ट्र कहता है पर व्यवहार देखें तो वो पिछले कुछ दशकों मे बार-बार नेपाल का दिल दुखाये जा रहा है। वो चाहे बार-बार की नाकाबन्दी हो या नदियों पर की गयी असमान सन्धि, इस से भारत को मित्र मानना भी मुश्किल है। वर्तमान परिवेश में नेपाल और भारत का सम्बन्ध सिर्फ व्यापारिक है। मित्र तो वह होता है जो तकलीफों को कम करे पर भारत ने नेपाल की तकलीफ को सिर्फ बढ़ाने का काम किया है।
जहां नेपाल की सीमाएं भारत से जुड़ी हैं, वहां वहां भारत की ओर से घुसपैठ और अतिक्रमण आज भी जारी है। सीमा पर रखे गये जंगे पिल्लर को खिसकाना, सीमावर्ती नेपालियों को अपमानित करना, प्रताड़ित करना, यह सब काम भारतीय पक्ष की ओर से होता आ रहा है पर मंत्री और प्रधानमंत्री बनने के लोभ में नेपाल के कुछ मुट्ठी भर नेताओं ने इस बात पर चुप्पी साधे रखी। इस से नेपाल के राजनैतिक नेताओं की राष्ट्रभक्ति पर भी सन्देह करना मुनासिब है। नेपाल की जनता इस बात का विरोध तो करती है पर नेपाल पुलिस के बल के आगे नेपाली जनता भी यह अन्याय बेबस और लाचार हो कर सहने में बाध्य हो जाती है।
उधर भारतीय मीडिया जिस तरह से एकपक्षीय ढंग से इस मसले को उछाल कर नेपालियों को अपमानित कर रही है उससे एक बात तो यह भी सिद्ध होती है कि कोई ना कोई पक्ष तो है भारत में, जो नेपाल और भारत के सम्बन्धों को बिगाड़ना चाहता है। ऐसे आत्मघाती तत्वों से अगर भारत सजग रहे तो यह उसके लिए हितकर है। लाखों नेपाली लोग भारत में काम करते हैं, विभिन्न क्षेत्र में नेपाली लोग सम्मानित पेशे से जुड़े हुए हैं। महन्त, मठाधीश, मण्डलेश्वर के रूप में हैं। डैनी, उदित नारायण झा, मनीषा कोइराला इसके उदाहरण हैं। यह तो सबको मालूम है पर लाखों भारतीय नागरिक भी नेपाल मे मजदूरी कर रहे हैं और व्यापार कर रहे हैं। अगर हालात बिगड़ते हैं तो नेपाल का अकेला कुछ नहीं जाता, भारत को भी नुकसान झेलना होगा। भारतीय मीडिया में जिस तरीके से नेपाल और भारत की शक्तियों की तुलना कर के नेपाल को नीचा दिखाया जा रहा है, भारतीय मीडिया वाले यह बात क्यों नहीं समझते कि लड़ाई कभी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकती।
समग्र में भारत को चाहिए कि सुगौली सन्धि के अनुसार सारे बॉर्डर को सील करे और नेपाल व भारत के बीच आवागमन के लिए भी पासपोर्ट और वीज़ा अनिवार्य किया जाए क्योंकि खुली सीमा के चलते नेपाल और भारत दोनो देशों को सुरक्षा संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा भारत, नेपाल की ज़मीन पर अपना दावा छोड़े और शक्ति प्रदर्शन न करे जिससे नेपाल और भारत के रिश्ते भी बने रहें और नेपाल को भी कोई क्षति न पहुंचे। अगर भारत नेपाल को सच में अपना भाई मानता है तो वह अपने छोटे भाई को लूटने का काम ना करे। मदोन्मत्त भारतीय कूटनैतिक पक्ष को समय से सद्बुद्धि मिले और वो अपनी गलती को सुधारे, ऐसी प्रार्थना हम भगवान पशुपतिनाथ और भगवान मुक्तिनाथ से करते हैं।
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