बेदखली का गणतंत्र: G-20 के लिए सुन्दरीकरण के नाम पर उजाड़ी जा रही दिल्ली


नये साल की कड़कड़ाती ठण्ड में तुगलकाबाद के निवासियों को पुरातत्व विभाग  द्वारा 11 जनवरी को एक नोटिस मिला। नोटिस के अनुसार  किले के आसपास  100 मीटर के क्षेत्र को संरक्षित घोषित करते हुए वहां के सारे निर्माण को प्रतिबंधित कर घर और दुकानों को अवैध घोषित करते हुए ध्वस्तीकरण/बेदखली के आर्डर की बात की गयी है। पंद्रह दिनों के भीतर ही तोड़ने की बात करते हुए कार्यवाही में अड़चन आने पर निवासियों पर खर्च का बोझ और अन्य कार्यवाही करने की घोषणा भी की गयी है। यह 15 दिन का समय 26 जनवरी को खत्म हो चुका है।

G-20 सम्‍मेलन की मेजबानी के लिए चल रही तैयारियों के सिलसि‍ले में दिल्‍ली के सुंदरीकरण को बढ़ावा देने और जनांदोलनों को रोकने के लिए प्रबंध जोर-शोर से हो रहे हैं (Indian Express, January 24 2023, ‘G20 Prep: Cops discuss way to keep delegates safe, Delhi protest-mukt’)। उसी समय इस शहर के निवासी दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए), पुरातत्व विभाग (एएसआइ), राष्‍ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) या कोर्ट ऑर्डर के खौफ में हैं। शहर के अलग-अलग इलाकों में लोग बुलडोजर का सामना करने की तैयारियां कर रहे हैं।

पिछले साल से डीडीए राजधानी के अलग-अलग इलाकों में घरों और दुकानों को अवैध कब्ज़े के नाम पर लगातार तोड़ रही है। अप्रैल 2022 में जहांगीरपुरी में डेमोलिशन सांप्रदायिक तनाव के चलते हुआ। मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्र में डेमोलिशन का दौर चलता आ रहा है। बाबरपुर, मौजपुर, मदनपुर खादर, शाहीन बाग जैसे इलाकों में बुलडोजर पहुंचा तो था लेकिन कुछ जगहों में जाति-धर्म के विभाजन को खारिज करते हुए एकताबंद तरीके से बुलडोजर का सामना किया गया। कालिंदी कुंज के लोगों पर पुलिस ने दंगे करवाने का आरोप लगाकर केस भी डाला जो आज तक चल रहा है (The Print, January 20 2023, ‘Delhi Court frames charges against AAP MLA Amanatullah, others for blocking MCD’s anti-encroachment drive’)।

2021 की गर्मी और लू के समय दिल्ली के दक्षिणी क्षेत्र में स्थित खोरी गांव के हज़ारों घरों को रौंदते हुए बुलडोजर चले। इस पर अंतर्राष्ट्रीय हलचल मचने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अतिक्रमण को रोके बिना पुनर्वास की बात शुरू तो की लेकिन आज तक सभी को तो छोड़िए आधी जनता को भी राहत नहीं मिली है। इसी तरह 2022 की मई में यमुना नदी के तट पर बसी ग्यासपुर बस्ती को भी तोड़ा गया (Outlook, January 22, 2023, ‘In Delhi, Parks But No Homes: The Human Cost Of Development’)। जहांगीरपुरी, ख़ोरी या ग्यासपुर के बाशिंदों को आज तक राहत नहीं मिली।

अगर थोड़ा और पीछे देखते हैं तो 2016 में बेधखल हुए कठपुतली कॉलोनी निवासी आज भी ट्रांजिट कैंप में रहने को बेबस और लाचार हैं जो कि घरों के लिए पैसे तक दे चुके हैं लेकिन आज तक उन्हें वादों के सिवा कुछ नहीं मिला। और तो और आज यहाँ लोग दारू, नशा, धोखाधड़ी, सूदखोरी के जंजाल में बुरी तरह फँस रहे हैं। वहीँ  पानी, बिजली और साफ़-सफाई जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की कमी से जूझ रहे हैं। किसी भी तरह के सवाल उठाने पर कैंप की बिजली दो-चार दिन तक के लिए काट दी जाती है। पुनर्वास के वादे पर आश्रित यह लोग आज इज्जत और अधिकार को भूल बेबसी और लाचारी में जी रहे हैं।

बरसात के पहले अगस्त में पूर्वी दिल्ली की एक कॉलोनी में रातोंरात खंभे पर एक नोटिस लगा। नोटिस के अनुसार 60-70 साल पुरानी रिहाइश को अवैध घोषित कर  तोड़ने  की बात कही गई थी। इस इलाके का नाम कस्तूरबा नगर है। लोगों ने एकजुट होकर  15 अगस्त के दिन “हर घर तिरंगा” नारे पर सवाल उठाते हुए पूछा कि जब घर ही नहीं होगा तो झंडा कहां लगेगा। दिसम्बर में हुए एमसीडी चुनाव में वोट देने से इंकार करते हुए कस्तूरबा नगर के लोगों ने अपने हक़ की बात की (Newslaundry, December 1 2022, ‘एमसीडी चुनाव: मतदान का बहिष्कार क्यों कर रहे कस्तूरबा नगर के दलित सिख?’)। आज भी जुझारूपन और हिम्मत के साथ यहां की जनता की लड़ाई डीडीए के खिलाफ जारी है।

लोकतंत्र का असली चेहरा खड़क गांव में देखा जहाँ बिना किसी नोटिस, कोर्ट आर्डर के बुलडोजर चढ़ा दिया गया। पिछले साल त्यौहारों के बीच 21 अक्टूबर को अचानक छतरपुर इलाके के खड़क सतबरी गांव को छावनी में तब्दील कर  डीडीए अफसरों की मौजूदगी में विरोध कर रही जनता को नजरबन्द कर घरों को तोड़ दिया गया था (Maktoob Media, October 28 2022, ’25 houses demolished in Delhi’s Muslim locality, Muslim women allege police brutality’)।  मुस्लिम बहुसंख्यक इलाके में दोनों मुस्लिम और हिंदुओं के 25 से 30 घरों को  तोड़कर सरकार ने अपनी तानाशाही का परिचय दिया है।

नई शिक्षा नीति 2020 में सुधार के नाम पर आये बदलावों ने ऑनलाइन शिक्षा के नाम पर मजदूर वर्ग को शिक्षा से दूर करने का काम किया है। कोरोना में भुखमरी की मार झेल रहे मेहनतकशों पर ऑनलाइन शिक्षा का खर्च वहन करने की ताकत नहीं थी। उस वक़्त निशुल्क खुले एक स्कूल ने वो जिम्मेदारी निभाई जो सरकार की होनी चाहिए थी। मयूर विहार फ्लाईओवर स्थित इस स्कूल पर बुलडोजर चलाकर उसका नामो-निशान मिटा दिया गया है (Indian Express, January 24 2023, ‘Part of makeshift school for kids in slums razed in Mayur Vihar’)। कानून के खोल में छुपकर लगभग 200  मजदूर वर्ग के बच्चों को शिक्षा से वंचित कर, बच्चों  के सपनों पर बुलडोजर चलाना इस व्यवस्था का विद्रूप रूप है।

सर्द रातों मे महरौली के निवासी  एक बार फिर डेमोलिशन का सामना कर रहे है। 12 दिसम्बर 2022 को एक नोटिस के ज़रिये डीडीए ने घर-अतिक्रमण का कोर्ट ऑर्डर दिया था (The Hindu, January 9 2023, ‘After DDA’s eviction notice, Mehrauli JJ dwellers in the line of fire’)। महरौली आर्कियोलॉजिकल पार्क को संरक्षित करने के नाम पर दशकों से रह रहे निवासियों को बेदखल किया जा रहा है। लोगों को  लंबे और महँगे क़ानूनी दाव-पेंच मे फंसाकर रखना एक पुरानी चाल है। इसी तरह तुग़लकाबाद के निवासियों को एएसआइ द्वारा मिला नोटिस लोगों की नींद उड़ा रहा है।

बीता साल “आवास की बात” MCD चुनाव प्रचार का एक अहम् अंग रहा। चुनाव के ठीक पहले प्रधानमंत्री ने कालकाजी में बनाये गए इन-सीटू रिहैबिलिटेशन प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया था। भूमिहीन कैंप के 575 निवासियों को 25 जनवरी तक इन फ्लैटों में शिफ्ट करना है (Indian Express, January 23 2023, ‘Not quite home sweet home: At DDA flats for slum dwellers, some problems’) जबकि आज प्रयोग  के पहले ही फ्लैट खस्ताहाल हैं। पाई-पाई जोड़कर 1,47,000 देकर भी फ्लैटों में प्रवेश करने के पहले ही दीवार, टाइल, पाइप आदि टूट चुके हैं और कोई भी घर रहने लायक स्थिति‍ में नहीं है। शहर में जिनके भी घर टूटे हैं उनको कालकाजी के इन्हीं फ्लैटों की चमकती तस्वीरें और खोखले वादे दिए जा रहे हैं।

अरावली का जंगल और पहाड़ी इस देश की राजधानी के पर्यावरण, मौसम और पानी के स्तर को बनाये रखते हैं। सदियों से बसे शहर के लोगों ने अरावली के साथ अटूट रिश्ता बनाया है। लोगों और प्रकृति का तालमेल लोगों के जीवन के लिए ज़रूरी है। अरावली बचाने के नाम पर एक तरफ गरीब जनता को खदेड़ा जा रहा है (Indian Express, January 23 2023, ‘103 slums, farmhouses in the way of protecting Delhi ridge’) तो दूसरी तरफ फार्महाउसों का निर्माण बिना रुके किया जा रहा है। ग्यासपुर बस्ती को हटाने का कारण जहरीले पानी में खेती को रोकने के लिए बताया था जबकि बस्ती हटाने के बाद डीडीए ने उसी जगह पर पेड़ पौधे लगाए थे। आज वहां पौधों के नाम पर सूखी टहनियां रह गईं हैं। इस व्यवस्था की पर्यावरण नीति जनता के लिए  सूखी टहनियों की तरह काम करती है जो बड़े जमींदारों और कंपनियों के लिए ईंधन है।

विकास के नाम पर दरकती दीवारों को जोशीमठ और झरौटा के घरों में देखा जा सकता है। टूरिज्म को बढ़ावा देने के नाम पर और हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर के लिए जो पहाड़ी सुरंगें बनाई जा रही हैं, इनके निशाँ पहाड़ों पर बसे निवासियों पर दिखाई दे रहे हैं। डेमोलिशन को चिन्हित करते हुए ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट बताती है कि डेमोलिशन सत्ता के हाथ एक हथियार बन चुका है। मध्य प्रदेश के पंचायत मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया ने खुलेआम धमकी दी की भाजपा मे आओ नहीं तो बुलडोजर तैयार है (Indian Express, January 18 2023, ‘MP minister to Congress leader: Join BJP or else CMs bulldozer is ready’)। लॉ एंड आर्डर को मेन्टेन करने के नाम पर लोगों के घरों को ढहाने को लोकतंत्र कहा जा रहा है।

आज चाहे वृंदावन हो या अयोध्या, दोनो धार्मिक शहरों में बुलडोजर का दौर है। अयोध्या मे तीर्थयात्रियों के बड़े मंदिर तक आवागमन को सुलभ बनाने के नाम पर आसपास के घर, दुकान और छोटे मंदिर तक तोड़ दिए गए हैं। वृंदावन में यही आलम पसरा हुआ है जहां छोटे कारोबारी, मंदिर के पुजारी और सदियों से बसे निवासी खून से मुख्यमंत्री योगी को खत लिख रहे हैं। महंगाई और बेरोजगारी की मार झेल रही जनता को खाई में धकेलना यह दर्शाता है कि यह अतिक्रमण की नीति गरीब जनता की आर्थिक कमर तोड़ रही है और बड़े पूंजीपति और धन्नासेठों के झोली भर रही है।

हाल ही मे केंद्रीय योजना पीएम आवास में भ्रष्टाचार से ग्रस्त पश्चिम बंगाल सरकार की खबर दिखाती है कि चाहे केन्द्र सरकार हो या राज्य, निजी हित और निजी संपत्ति जुटाने के लिए संसदीय दल और सत्तादारी सरकारें मौजूदा संस्थाओं का भरपूर इस्‍तेमाल करते हैं। इन्‍हीं संस्थाओं के माध्यम से लोगों के घर, दुकान, कारोबार, संसाधन आदि लूटकर कंपनियों को सौंपते हैं। इस शहर के बच्चों को स्कूलों मे गणतंत्र का मतलब देशभक्ति से जोड़कर दिखाया जाता है। बेदखली और अतिक्रमण के सामने इन्‍हीं शहरवासियों के बच्चे तानाशाह-तंत्र का मुंह देख रहे हैं और एक नयी सीख पा रहे हैं – लड़ने के बिना रास्ता नहीं है।


संगीता दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा हैं और डेमोलिशन के मुद्दे पर काम करती हैं


About संगीता गीत

View all posts by संगीता गीत →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *