क्या आप विलास सोनवणे को जानते हैं? कल दिल्ली में उनका एक व्याख्यान था। विषय था ”धर्मांतरण की राजनीति”। विलास पुराने एक्टिविस्ट हैं, कोई चार दशक पहले तक मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में हुआ करते थे। बाद में इन्होंने लाल किताबों के दायरे से बाहर निकलकर समाज में काम करना शुरू किया। लोकशासन आंदोलन से जुड़े। आजकल उसके कार्यकारी अध्यक्ष हैं। जाति और सांप्रदायिकता की राजनीति पर गहरे अनुभव रखते हैं। कम्युनिस्टों, तरक्कीपसंदों और समाजवादियों को जाति के प्रश्न पर आड़े हाथों लेने में नहीं हिचकते। सांप्रदायिकता के इतिहास को बंकिम चंद्र चटर्जी के ”आनंद मठ” से गिनवाते हुए सावरकर तक लाते हैं और सांप्रदायिकता को ”वर्चुअल रियलिटी” ठहराते हैं। खुलकर कहते हैं कि वे ”सेकुलर” नहीं हैं क्योंकि सेकुलरवाद, सांप्रदायिकता का ”रिएक्शन” है। श्रमण परंपरा की बात करते हैं। वर्गेतर सामाजिक संरचनाओं को खंगालने का आग्रह करते हैं। पीछे मुड़कर देखने को कहते हैं।
…तो इतवार को उनका आइटीओ पर एक व्याख्यान था। शरद पाटील स्मृति व्याख्यान। बाबा शिवमंगल सिद्धांतकर के नव सर्वहारा सांस्कृतिक मंच के सौजन्य से रखा गया यह कार्यक्रम सीपीएम के नेता और इतिहासविद् रहे शरद पाटील की स्मृति में था जिनका कार्यक्षेत्र मराठवाड़ा और विदर्भ के इलाके रहे हैं। खुद विलास सोनवणे भी जलगांव से आते हैं। जलगांव से मेरा परिचय बहुत नहीं है, सिवाय इसके कि मनमाड़ से पहले वह एक छोटा सा स्टेशन है जहां की एक छवि दिमाग में और कैमरे से खींची हुई अब भी मेरे पास सुरक्षित है जिसमें प्लेटफॉर्म पर मुफ्त में दिए जा रहे पानी के लिए लोग मार कर रहे थे। यह तस्वीर तीन साल पहले की है जब मैं मराठवाड़ा के कुछ जिलों में अकाल से उपजी स्थितियों को देखने के लिए गया था। नाम है जलगांव और जल का जबरदस्त संकट इस शहर में है। इसके अलावा मेरा एक और परिचय है इस शहर से, जो तकरीबन नया-नया है। वहां अपने एक युवा मित्र हैं जो जलगांव से पचास किलोमीटर दूर पाचोरा तहसील में रहते हैं। अज़हर खान नाम है। प्रागतिक विचार मंच नाम के एक संगठन से जुड़े हैं।
…तो कल जब मैं मेट्रो से विलास सोनवणे का व्याख्यान सुनने जा रहा था कि संयोग से अज़हर का फ़ोन आया। दरअसल, अज़हर से करीब महीने भर से हमारी बात चल रही थी एक कार्यक्रम के सिलसिले में। वे चाहते थे कि पाचोरा में ”कविता: 16 मई के बाद” के तहत एक कविता पाठ रखवाया जाए। मेरा अंदाज़ा था कि शायद उसी सिलसिले में उनका फोन आया होगा। मैंने फोन उठाया तो उनका पहला वाक्य था, ”यहां चार-पांच दिन से बहुत तनाव है और हम लोग बहुत परेशान हैं।” मैंने पूछा क्या हुआ, तो उन्होंने बताया कि बुधवार की रात से पाचोरा में माहौल बहुत खराब है। सांप्रदायिक तनाव है। मस्जिदों पर हमला किया गया है। युवाओं को मनमाने ढंग से पुलिस ने हिरासत में ले लिया है। सड़क पर उतर कर लोगों को मार-काट करने से रोकना पड़ा है। मैंने उनसे कुछ लिखकर भेजने को कहा तो उन्होंने असमर्थता जतायी क्योंकि वहां दिन-रात सांप्रदायिक सद्भाव के लिए काम करने में ही सबका वक्त जा रहा है। मैंने उन्हें बाद में विस्तार से फोन करने की बात कह के यह सूचना दी कि मैं विलास सोनवणे को सुनने जा रहा हूं। वे बोले, ”कामरेड विलास तो हमारे बहुत सम्माननीय हैं। आप समझिए हम उन्हीं के शागिर्द हैं। उनसे कहिएगा अज़हर से बात हुई थी।”
…तो मैं विलास सोनवणे को सुनने पहुंचा। कई नई बातें उनके व्याख्यान से समझ में आईं। मसलन, सांप्रदायिकता एक आभासी यथार्थ है और हमें इस मिथक को तोड़ने की जरूरत है कि मुसलमान ‘मोनोलिथ’ कौम हैं। उसी तरह सेकुलरवाद भी एक आभासी बात है और वे खुद सेकुलर नहीं हैं; कि इस देश के कम्युनिस्ट, प्रगतिशील और समाजवादी लोगों को जब पता चला कि उनकी बस छूट गई है (जाति की) तब जाकर उन्होंने आंबेडकर को थामा लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी; कि कम्युनिस्टों के भीतर इस देश में जाति को लेकर एक किस्म का अपराधबोध है। उन्होंने पहली बार बताया कि मुसलमानों को लेकर संघ और मार्क्सवादियों का रवैया एक है। संघ मानता है कि मुसलमान इस देश के नागरिक नहीं हैं क्योंकि उनके श्रद्धास्थल इस देश के बाहर हैं जबकि मार्क्सवादी कहते हैं कि ये बहुत गरीब और पिछड़े हैं इसलिए इन्हें यहीं रहने दिया जाए- यानी सेकुलर होना शहरी सवर्ण मध्वर्ग की दया और करुणा का पर्याय है। सांप्रदायिकता से कैसे लड़ें, इस पर उन्होंने कहा कि ये लड़ाई लंबी है। वे बोले कि कम्युनिस्ट आरएसएस के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। उन्होंने हमें एजेंडा दे दिया है और हम धरने पर बैठे हैं। यह नहीं होना चाहिए। उनके एजेंडे का मज़ाक उड़ाओ और अपने औज़ारों के लिए इस देश के इतिहास में झांंको, श्रमण परंपरा में जाओ ताकि वर्गेतर सामाजिक संरचनाओं और वर्ग संघर्ष के बीच के संबंध तलाश सको। उन्होंने उदाहरण के लिए महाराष्ट्र में किए कुछ अपने प्रयोग गिनवाए।
व्याख्यान से बाहर निकलकर कई प्रतिक्रियाएं सुनने को मिलीं। मसलन, जबरदस्त व्याख्यान था; इससे बढि़या तो आज तक मैंने सुना ही नहीं; वे तो सैमुअल हटिंगटन की तर्ज पर बात कर रहे थे; इनकी राजनीतिक लाइन क्या है, आदि-आदि। कार्यक्रम के अध्यक्ष आनंद प्रकाश ने तो यहां तक कह डाला कि बीते 45 साल में दिल्ली में उन्होंने ऐसी बातें सुनी ही नहीं हैं और वे आजीवन इस पल को याद रखेंगे। कुछ लोगों ने सोनवणे की सांप्रदायिकता पर ”वर्चुअल रियलिटी” की बात पकड़ ली थी। बहुत देर तक बाहर बातें होती रहीं कि आखिर वे कहना क्या चाह रहे थे। सिर्फ आरएसएस के एजेंडे का मज़ाक उड़ाने से क्या काम चल जाएगा? मेरे दिमाग में अज़हर का फोन घूम रहा था। मैं देर रात तक उसे फोन नहीं कर पाया। सवेरे मैंने उसे फोन लगाया।
अज़हर ने 23 मिनट बात की। जलगांव के पाचोरा में हुए तनाव पर मेरे पास कुछ स्थानीय अखबारों और पोर्टल्स की खबरों को छोड़कर सिर्फ उसी की बताई बातें हैं। कुछ देर पहले जब फोन काटा तो सिर्फ इसलिए कि अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष वहां पहुंचे हुए हैं और वह उनसे मिलने भीतर जा रहा था। मैंने सोचा कि जिस धरती पर सांप्रदायिकता को आभासी यथार्थ मानते हुए और उसका मज़ाक उड़ाते हुए इतिहास के तहखानों से तथ्यों को निकाल-निकाल कर उनके सहारे सोनवणे ने कुछ प्रयोग किए हैं, वहां हुआ एक ताज़ा प्रयोग सबके सामने रखा जाए क्योंकि यह खबर दिल्ली के किसी अखबार में नहीं आने वाली है।
जलगांव के पाचोरा में हुए दंगे के बारे में अज़हर ने जो कहा, उसे नीचे मैं अविकल दे रहा हूं:
”शहर में इतना घबराहट का माहौल है कि अच्छे-अच्छे लोग घर छोड़कर चले गए…मोहल्ले के मोहल्ले पर ताले लगे हुए हैं। परसों से हम लोग डीवायएसपी आदि से मिलकर मोहल्ला कमेटी की मीटिंगें ले रहे हैं ताकि शांतता बनी रह सके… पिछले पंद्रह दिन से जामा मस्जिद के इमाम साहब को चिढ़ाया जा रहा था और चिढ़ाने के बाद कुछ लोग भड़के लेकिन हमारे जैसे सेकुलर लोगों ने कहा कि इसकी शिकायत करवा दी जाएगी… फिर एक दिन उन लोगों ने उनकी दाढ़ी खींची… ताकि मुस्लिम कम्युनिटी और उत्तेजित हो। शनिवार के दिन मुस्लिम नौजवानों ने बहुत हल्ला मचाया। पुलिस ने कहा कि मौलाना को नाम नहीं पता है और हम अज्ञात के खिलाफ गुनाह दाखिल कर चुके हैं। तीन-चार दिन के बाद वो आदमी मिला, उसे कोर्ट में पेश किया गया और उसे छोड़ दिया गया। उसका संगठन तो नहीं पता लेकिन उसके पीछे बजरंग दल है। 19 तारीख को यहां प्रवीण तोगडि़या आए थे। बजरंग दल के लोग प्रचार कर रहे हैं कि मुस्लिम सब्जी बेचने वालों से लोग सब्जी न खरीदें।
बुध के रोज़ कृष्णापुरी के चार लड़कों ने तौफ़ीक नाम के एक लड़के को मारा। कृष्णापुरी बजरंग दल का इलाका है। फिर अज्ञात लोगों के खिलाफ फरियाद दाखिल की गई। फिर इन्हीं लड़कों ने मुल्लावाड़ा के इलाके में शाहरुख बागवान की नाक तोड़ दी और अशफ़ाक बागवान के लड़के की नाक पर ब्लेड मार दिया। वहीं दो लड़के पकड़ में आ गए। हम लोगों ने उन दोनों गैर-मुसलमान लड़कों को उस मॉब से बचा लिया क्योंकि मॉब को कंट्रोल करना जरूरी था। इसके बाद डीवायएसपी वहां आ गए और हम लोगों ने शांतता बनाए रखने का आवाहन किया। साढ़े नौ बजे के करीब मग़रिब की नमाज़ के बाद की बात है… जामा मस्जिद एक गैर-मुस्लिम इलाके में है। वहां कुछ देशमुख परिवार रहते हैं। वहीं के एक बुजुर्ग हैं जो बच्चे को लाने के लिए जामा मस्जिद गए थे। वहीं दो लड़कों ने उनके सिर पर हमला कर के घायल कर दिया। उन्होंने शिकायत करने से इनकार कर दिया… उनका कहना था कि अगर मैं शिकायत करवाने जाऊंगा तो शहर का माहौल खराब हो जाएगा। उसी रात जामा मस्जिद में घुसकर नुकसान पहुंचाने की उन लोगों ने कोशिश की। कुरान शरीफ़ और अरबी की किताबों के साथ उन्होंने मिसफॉर्चुनेट किया… फिर हमने वो फैलने नहीं दिया। फिर मैं और नगर सेवक नसीर बागवान ने उसे उठाकर थैली में पैक कर के कोने में रख दिया… क्योंकि उससे जज्बात भड़क जाते। ये सारी बातें बुधवार की रात की है।
फिर मुल्लावाड़े के पास से तीन-चार लड़के मुंह पर कपड़ा बांधकर मुस्लिम कम्युनिटी को गालियां देते हुए गुजरे। हमने डीवायएसपी को कहा कि इतना शांत करने के बाद भी अगर कुछ लोग गाली-गलौज कर रहे हैं तो साफ है कि ये मुसलमानों को भड़काने की साजिश है। इसके बाद दोबारा ऐसी घटना हुई। ये बात सुबह की है। मुल्लावाड़े में एक शर्मा परिवार रहता है जिनकी कोल्ड ड्रिंक की दुकान है। वे अपने बाप-दादों के जमाने से रह रहे हैं। वहीं एक लड़का कृष्णापुरी से आया। वहां गाड़ी लगाकर वो लड़का मुस्लिम लड़कों को भड़काने के लिए गाली-गलौज करने लगा। तब शर्मा ने कहा कि भाई सुबह-सुबह ये क्या लगा रखा है, जा यहां से… इसके बाद उसने शर्मा के सर में मार दिया… उसको तीन-चार टांके आ गए… इधर कृष्णापुरी में उन लोगों ने प्रचार कर दिया कि मुल्लावाड़े में शर्मा कोल्ड ड्रिंक पर मुसलमानों ने हमला कर दिया। जैसे ही ये प्रचार हुआ, उन्होंने सबसे पहले जामा मस्जिद पर हमला किया। एंपलीफायर तोड़ दिए, नए पंखे आए थे उन्हें ले गए। अंदर जब हम एसपी के साथ इनवेस्टिगेट कर रहे थे तो पेट्रोल बम के सैंपल भी मिले।
कृष्णापुरी नदी के इस साइड में है और मुस्लिम कब्रिस्तान और मस्जिद उस साइड में है। ये हिवरा नदी है। वे लोग हिवरा नदी से चढ़कर कब्रिस्तान में गए, मज़ारों को तोड़ा, दरगाह को तोड़ा, उस पर एक हरा गलेब होता है उसे जलाया, गैलरी में तोड़ फोड़ की। फिर एक और बहुत बड़ा इलाका है बाहिरपुरा का जो मस्जिद के आगे से शुरू हो जाता है। वहां भी हल्ला मचा तो पता चला कि नूर मस्जिद पर हमला हुआ है। मस्जिद में पेट्रोल बम के सैंपल मिले। जब हमने बोतलें उठायीं तो उसमें बत्ती लगी हुई थी और पेट्रोल की महक थी। फिर अचानक से क्या हुआ कि पिंजारवाड़ा एक पिछड़ा इलाका है, वहां मुस्लिम लड़कों को पता चला तो उन्होंने रंगार गली पर पथराव शुरू कर दिया। बात फैल गई शहर में कि मस्जिदों पर हमला हो रहा है। फिर मुस्लिम लड़कों ने पटवारी की इंडिका कार जला दी, दो मोटरसाइकिलें जला दीं, सुशीला बेन टीपड़ीवाल कर के एक लेडी हैं, उनकी बिल्डिंग पर पथराव किया। जब ये चल रहा था उस वक्त बाजार के इलाके में पांच मुस्लिम व्यापारियों की फल की दुकान लूट ली गई। एक मिलन फ्रूट है, एक अब्दुल कादिर है, उसकी सौ पेटियां लूट ले गए, नकद ले गए। एक संतरावाला था। उसका संतरा ये कर दिया। नूर मस्जिद के पास एक सलीम खाटिक है। उसकी पोल्ट्री की गाड़ी को जला दिया गया। यहां श्रीराम चौक में दो मुसलमान परिवार हैं। एक उस्मान खाटिक, जिसके घर में घुसकर तोड़फोड़ की गई। उसके घर के सामने एक पिंजारी रहती है। उसके घर से पैसे लूट ले गए।
एक अच्छी बात ये रही कि इतने उत्तेजित होने के बावजूद मुस्लिम कम्युनिटी के लोग समझ गए थे कि ये भड़काने की साजिश है। समझदार लोगों ने मिलकर भड़कने नहीं दिया। मुल्लावाड़ा में 99 फीसदी मुस्लिम हैं और वहां चार मंदिर हैं, उनमें से एक पर भी कोई पत्थर नहीं फेंका गया। इस तरीके का ये पूरा पैटर्न है। असली दोषी भाग गए हैं। लोग उठाए गए हैं। पुलिस उन्हें खोज रही है। हमने पुलिस से कहा है कि आप लोगों को आश्वस्त कीजिए कि आप बेगुनाहों को नहीं उठाएंगे। एडीशनल एसपी का मानना है कि इसके पीछे कोई संगठन काम कर रहा है जो मुसलमानों को भड़काने के लिए पिछले 15-20 दिन से कार्यरत थे। कॉम्बिंग के दिन 32 मुस्लिम लड़के उठाए थे और 11 गैर-मुस्लिम उठाए गए थे। बेगुनाह भी उठाए हैं। छह जुवेनाइल भी थे। हमने इनको बाहर निकलवाया। 41 लोगों को पुलिस रिमांड में लिया गया है। जब हम लोगों की एसपी से बात हुई थी तो कहा गया था कि कुल 1200 लोगों को उठाया जाएगा, 600 लोग प्रत्येक दोनों समुदायों से उठाए जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ है।
पाचोरा में ऐसा एक बार 1985 में हुआ था लेकिन उस वक्त धार्मिंक स्थलों को टारगेट नहीं किया गया था। लोगों को अफसोस है कि पहली बार ऐसा हुआ है क्योंकि पथराव में एक भी जख्मी नहीं हुआ है। यानी पहली बार मस्जिदों को टारगेट करने के लिए ये फैलाया गया है। ये लोग जलगांव तक तनाव फैलाना चाहते हैं। जलगांव में ऐसे मामले देखने में आ रहे हैं जिसमें लड़के-लड़कियों को टारगेट किया जा रहा है। दो महीने पहले हमारे यहां पाचोरा में लव जिहाद पर बजरंग दल के लोगों ने परचे बांटे थे। उसके फोटो मेरे पास हैं। चूंकि ये बच्चे कॉलेजों के बाहर के थे इसलिए कोई ऐक्शन नहीं लिया गया है। इस तरह पूरा माहौल बनाने की कोशिश चल रही है।”
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खून या ‘वर्चुअल रियलिटी’? (फोटो साभार oneindia.com) |
अज़हर ने चलते-चलते बताया कि उन्होंने विलास सोनवणे को फोन किया था लेकिन उन्होंने उठाया नहीं। उन्होंने मुझसे आग्रह किया कि मेरी अगर बात हो तो मैं उन्हें यह ख़बर कर दूं कि शहर का माहौल ठीक नहीं है। मैं सोच रहा हूं कि उन्हें बताने का क्या कोई खास अर्थ होगा। वैसे भी उन्हें इसकी ख़बर तो लग ही गई होगी या लग ही जाएगी। अभी तक उनका कहा मैं पचा नहीं पाया हूं। सांप्रदायिकता अगर ”वर्चुअल रियलिटी” है तो पाचोरा की घटना को एक ”सेकुलर” होने के नाते कैसे देखा जाए और उस पर किस तरह प्रतिक्रिया दी जाए। विलास सोनवणे के सुझाए नुस्खे के मुताबिक क्या हम इतिहास की ओर देखें? श्रमण परंपरा की ओर लौटें? या फिर अज़हर के सुनाए विवरण को नज़रंदाज़ कर दें क्योंकि विलास कहते हैं कि ”आरएसएस एजेंडा देता है और धरने पर कम्युनिस्ट बैठ जाते हैं”?