दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन हो रहा है इस बात में किसी को कोई शक नहीं हो सकता. इसका असर भी हर तबके पर अलग किस्म से पड़ रहा है. जलवायु परिवर्तन के असर बहुस्तरीय होते हैं. क्या यह महज पर्यावरणीय मुद्दा न होकर सामाजिक न्याय से जुड़ा मसला भी है? क्या इसको सामाजिक-आर्थिक मसले के रूप में देखने के साथ राजनैतिक मुद्दे के रूप में देखा जा सकता है?
कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन मौसमी घटनाओं में अचानक और अत्यधिक रूप से आई बढ़ोतरी है जो कई संक्रामक बीमारियों के फैलने में सहायक होती है. पर्यावरण के मुद्दे पर हुए एक वेबिनार में जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर सुचित्रा सेन ने कहा, “जलवायु परिवर्तन पर असर डालने वाले कारकों में उन्हीं बीमारियों जैसी समानता है जो महामारी में तब्दील हो जाती हैं. वैश्विक आर्थिक परिदृश्य ऐसा हो चला है कि कोई भी महामारी या संक्रमण अब स्थानीय नहीं रहता, वैश्विक रूप अख्तियार कर लेता है.”
वैसे, यह तय है कि जलवायु परिवर्तन का असर गरीबों और अमीरों पर अलग अंदाज में होता है और आने वाली पीढ़ियों में यह और बढ़ेगा ही. उसी वेबिनार में प्रो. सेन ने कहा, “जलवायु परिवर्तन से निबटने के लिए तैयार की गई नीतियां खतरनाक तरीके गैर-बराबरी के नतीजे देंगी और इसमें गरीब और कमजोर लोग नीतियों के दायरे से बाहर हो जाएंगे.”
मानवजनित जलवायु परिवर्तन को स्पष्ट रूप से बढ़ते तापमान, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि, ग्लेशियरों के पिघलने, बाढ़, सूखे, हर साल चक्रवात आने की संख्या बढ़ने में देखा जा सकता है, पर जो स्पष्ट रूप से नहीं दिख रहा है वो यह है कि इन परिवर्तनों का समाज के कमजोर तबको पर क्या खास असर पड़ता है. चूंकि यह दिख नहीं रहा है इसलिए यह तबका नीतिगत विमर्शों के दायरे से बाहर है. इस संदर्भ में यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि आखिर आधी आबादी यानि महिलाओं के ऊपर जलवायु परिवर्तन का क्या असर है.
उत्तरी भारत में सिंधु-गंगा का का मैदान बेहद उपजाऊ है. इस इलाके में खेती में पुरुषों का वर्चस्व है. ब्रह्मपुत्र बेसिन के ऊपरी इलाकों में स्त्रियों की दशा के अलग आयाम हैं. पूर्वोत्तर के पहाड़ी इलाकों में कामकाज में महिलाओं की अधिक हिस्सेदारी है और मैदानी भारत की तुलना में पूर्वोत्तर के पहाड़ी इलाकों में महिला साक्षरता की दर भी अलग है.
प्रो. सेन ने अपने अध्ययन में बताया है कि ब्रह्मपुत्र नदी के नजदीक रहने वालों में गरीबी अधिक है और वे अधिक बाढ़, अपरदन और नदी की धारा बदलने का सामना करते हैं. उनका संपत्ति (भूमि) पर अधिकार भी पारिभाषित नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि कटाव का असर उधर अधिक होता है. दूसरी तरफ नदी से दूर बसे इलाकों में जमीन की मिल्कियत स्पष्ट रूप से चिह्नित होती है.
जलवायु परिवर्तन के सीधे लक्षणों में अमूमन तापमान और बारिश में बढ़ोतरी को ही शामिल किया जाता है, लेकिन नदी के बढ़ते जलस्तर, जब तब होने वाली बारिश और तूफान, मछली, परिंदों और जानवरों के नस्लों का खत्म होता जाना, भूमि की उर्वरा शक्ति घटना, यह ऐसी बातें है जिनका असर हमारी आधी आबादी पर अधिक पड़ रहा है.
मैदानी इलाकों में भी जहां खेती का नियंत्रण भले ही मर्दों के हाथ में हो लेकिन खेती के अधिकतर काम, बुआई, कटाई और दोनाई में महिलाओं की हिस्सेदारी अधिक होती है, जलवायु परिवर्तन का असर साफ दिख रहा है.