जिस नंदीग्राम को कैमरे में कैद कर इतना प्रलाप किया गया उस नंदीग्राम का सच का एक चेहरा मिनाक्षी मुखर्जी भी है जो रोज कोसों चलकर बिना किसी लाव-लश्कर के अपना प्रचार करती रही। मुख्यधारा का मीडिया व्यक्तिगत हमले का खेल खेलता रहा, नंदीग्राम में धार्मिक समीकरण तय करता रहा। इससे हटकर 28 साल की युवा प्रत्याशी मिनाक्षी जनसरोकारों से जुड़कर जनता के दुःखी नब्ज को टटोल कर रोजी-रोटी-रोजगार के सवालों को उठाती रही।
नंदीग्राम में वाम मोर्चे की प्रत्याशी मिनाक्षी मुखर्जी के सवालों को, उनके चुनाव लड़ने के तरीकों को भले ही मुख्यधारा की मीडिया ने जगह नहीं दी पर जमीन से जुड़ी मिनाक्षी और उसके सवालों ने नंदीग्राम से चुनाव लड़ रहे दो दिग्गजों को चिंता में डाल दिया।
नंदीग्राम में मतदान के बाद ही सही, पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े अखबार आनंद बाजार पत्रिका को लिखना पड़ा: “दो हेवीवेटो को चिंता में डाल गया तीसरा पक्ष”!
पश्चिम बंगाल में हो रहे विधानसभा चुनाव के पहले ही दिन से मुख्यधारा का मीडिया एक पक्ष को वहां स्थापित करने में जी जान से जुटा है, इसीलिए उसने इसे दो व्यक्तियों के बीच का चुनाव बना कर रख दिया है।
बंगाल में अनगिनत चेहरे ऐसे ही परिवर्तन के सपनों के साथ चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन मुख्यधारा के मीडिया ने इन्हें न दिखाकर गायब कर रखा है। सुखद और आशान्वित करने वाली बात यह है कि मिनाक्षी मुखर्जी और उस जैसे दूसरे इस लड़ाई को जनसरोकारों का चेहरा दे रहे हैं।