जिनवर: गृह युद्ध से जूझते सीरिया में खिलता स्त्रीवादी युटोपिया का एक फूल


कभी आपने किसी ऐसी जगह की कल्पना की है, जहाँ औरतें खेतों में काम करती हैं, घरों एवं इमारतों का निर्माण करती हैं, स्कूलों में पढ़ाती हैं, बच्चों को संभालती हैं, जानवरों एवं पेड़ पौधों की देखभाल करती हैं, जहाँ अस्पताल भी हैं और सौदे सुलूफ के लिए दुकान भी? लेकिन सबसे बड़ी बात जहाँ औरतें ये सारे काम बिना मर्दों के दखलअंदाज़ी के कर पाती हैं, जहाँ वे आज़ाद हैं, बराबर हैं और सबके लिए एक समान जगह बनी हुई है? वे बेखौफ़ हैं, सुरक्षित हैं, आत्मनिर्भर हैं?

सुनने में ये जगह एक फेमिनिस्ट यूटोपिया की तरह लगती है लेकिन पितृसत्ता की धुरी के सहारे चलने वाली इस दुनिया में ऐसी एक जगह है जहाँ एक गाँव उसी सपने को लेकर जी रहा है जिसके ख़्वाब दुनिया भर की ना जाने कितनी औरतों की आँखों में हैं।

‘जिनवर’ उत्तरी सीरिया में स्थित एक गाँव है जिसे रोज़ावा (डेमोक्रेटिक फेडरेशन ऑफ नॉदर्न सीरिया) की कुछ कुर्दिश औरतों ने बसाया है। कबाज़ पर्वत के पास बसे इस गाँव का निर्माण 2016 से शुरू हुआ, जिसे दो साल बाद (अंतर्राष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन दिवस) आधिकारिक रूप से सीरिया की हर उस औरत के लिए खोल दिया गया, जो गृह युद्ध के कारण पीड़ित है। यहाँ मर्दों का प्रवेश निषेध है।

कुर्दिश भाषा में जिनवर का अर्थ है- ‘औरतों की ज़मीन।’ अभी तक यहाँ पर तीस घरों, एक स्कूल ‘अल-ओम अविश’, एक म्यूजियम, एक क्लिनिक का निर्माण किया जा चुका है। यहाँ एक जिनवर अकादमी स्थापित की गई है जहाँ औरतों को ‘जिनोलॉजी (JINEOLOGY)’ और उसकी विभिन्न शाखाओं के बारे में पढ़ाया जाता है और उसका प्रशिक्षण भी दिया जाता है।

क्या है जिनोलॉजी?

कुर्दिश भाषा में ‘जिन’ का अर्थ औरत या जीवन से है, जो ग्रीक भाषा के शब्द लोगोस से जुड़ कर जिनोलॉजी बनता है जिसका मतलब है औरत या जीवन का विज्ञान। जिनोलॉजी सबसे पहले 2012 में कुर्दिश औरतों के आंदोलन ने स्थापित किया था। इसे अब रोज़ावा की शिक्षा व्यवस्था के अनिवार्य अंग के रूप में शामिल कर लिया गया है।

जिनोलॉजी किसी भी तरह के शोषण की व्यवस्था को नकारते हुए एक समानता भरे समाज की स्थापना की बात करती है। उनका सिद्धांत किसी भी किस्म के एक समूह का दूसरे समूह पर उच्चता के हर दावे का धुर आलोचक है। उनका सिद्धांत विश्व एवं समाज के हर एक अंग यानी अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिकी, इतिहास, स्वास्थ्य, शिक्षा एवं राजनीति में समानता एवं स्वतंत्रता भरी व्यवस्था को परिभाषित करता है। उनका मकसद इतिहास से ग़ायब औरतों के जीवन का अध्ययन करना, प्रकृति पर आधारित पुरानी अर्थव्यवस्था को अपनाना, आधुनिक शिक्षा के जरिये इक्कीसवीं सदी की समस्याओं का समाधान ढूंढ़ना है।

ये अपने मूल में पितृसत्ता एवं पूंजीवादी व्यवस्था के खिलाफ है। उनका मानना है कि औरतों की आज़ादी से ही पूरी दुनिया की आज़ादी सुनिश्चित की जा सकेगी। जिनवर गाँव उनका एक ऐसा ही प्रोजेक्ट है जिसमें वे अपने सिद्धांतों को जमीनी हकीकत का रूप देने की कोशिश कर रहे हैं।

जिनवर में औरतों को ना सिर्फ जीवनयापन के लिए तैयार किया जाता है बल्कि आत्मरक्षा के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है। जिनोलॉजी का अपना एक अलग चिकित्सा विज्ञान है जिसमें महिलाओं को प्राकृतिक चिकित्सकीय औषधीय परंपराओं, जड़ी बूटियों के बारे में पढ़ाया जाता है, शोध किया जाता है। कला, साहित्य, पर्यावरण एवं इतिहास जिनवर के स्कूलों में खासतौर पर पढ़ाया जाता है। यहाँ शरण लेने वाली लगभग सभी महिलाएँ आइएसआइएस के हाथों जेनोसाइड, बलात्कार जैसी हिंसा झेल चुकी हैं, इसलिए जिनवर ने एक ऐसे कम्युनिटी सेंटर का निर्माण किया है जहाँ वे हिंसा के मनोवैज्ञानिक उपचारों के जरिये औरतों एवं बच्चों का पुनर्वास करते हैं।

वहाँ रहने वाली महिलाओं का कहना है कि वे उम्र भर ऐसी ही जगह रहना पसंद करेंगी जहाँ वे आज़ाद होकर सुरक्षित रह कर जी सकें। जिनवर की अर्थव्यवस्था सम्पूर्ण आत्मनिर्भरता पर आधारित है, जहाँ रहने वाली प्रत्येक महिला अपने जीवनयापन के लिए जरूरी हर चीज़ का उत्पादन एवं निर्माण स्वयं करती है।

जिनवर की तुलना केन्या के उमोज़ा नाम के मातृसत्तात्मक गाँव से भी की जा रही है जहाँ हिंसा की शिकार, विधवाएं, अरेंज मैरिज एवं बाल विवाह से भागने वाली लड़कियाँ, होमलेस सांबुरु औरतों ने नब्बे के दशक में बसाया था। सांबुरु मसाई जनजाति का ही भाग है जिसमें औरतों को जानवरों की तरह संपत्ति समझा जाता है, वे जेनिटल म्यूटिलेशन, ज़बरन शादी, बलात्कार एवं घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं।

उमोज़ा सांबुरु समाज की औरतों का अपना एक आत्मनिर्भर गाँव है

नब्बे के दशक में ब्रिटिश सैनिकों द्वारा बलात्कार की शिकार होने वाली लगभग 1400 सांबुरु औरतों ने अपने पतियों के छोड़ देने पर उमोज़ा गाँव को बसाया था। उसके बाद से वे तमाम औरतें उस गाँव मे रहने लगीं जिन्हें किसी ना किसी कारण (जैसे एसटीडी) उनके पतियों ने छोड़ दिया था, जो सांबुरु समाज की परंपराओं को नहीं मानती थीं और घर से भाग गयीं थीं। हालांकि सांबुरु समाज के मर्दों ने कई बार उमोज़ा को उजाड़ने की कोशिश की, यहाँ तक कि उमोज़ा के पड़ोस में केवल पुरुषों का एक गाँव भी बसाया लेकिन वे असफ़ल रहे। आज उमोज़ा की औरतें अपने गाँव के साथ साथ पड़ोसी गाँव की ज़मीन की भी मालिक हैं।

लेकिन जहाँ उमोज़ा सांबुरु समाज की औरतों का अपना एक आत्मनिर्भर गाँव है, वहीं जिनवर केवल महिलाओं की रिहाइश से बढ़कर एक आंदोलन है, एक विचारधारा है। उमोज़ा जहाँ मातृसत्तात्मक समाजिक व्यवस्था पर आधारित एक गाँव है वहीं जिनवर एक ऐसा फेमिनिस्ट समाज है जो इक्कीसवीं सदी में विश्व की सभी औरतों की आज़ादी के सपने का केंद्र बिंदु बनकर उभरा है।

जिनवर के बाद ऐसे कई फेमिनिस्ट समाजों की स्थापना की मांग की जा रही है, जो पारिस्थितिकी के अनुकूल हो और पूंजीवादी शोषण एवं उपभोग आधारित कुव्यवस्था के विपरीत मानवता आधारित विकास को प्रश्रय देती हो। इस लिहाज़ से देखें तो जिनवर जैसे गांव ही मानवता की अगली उम्मीद हैं।


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