काशी की गलियों से फुकेट तक: एक जननेता का वैश्विक सम्मान


“नेतृत्व साम्राज्य बनाने का नाम नहीं है, बल्कि लोगों को उनके हालात से ऊपर उठाने की शक्ति देना है।”

26 जुलाई 2025 को फुकेट, थाईलैंड में जब श्रुति नागवंशी को Radio City Business Titans Award से सम्मानित किया गया, तो वह सिर्फ एक पुरस्कार नहीं था — वह हर उस आवाज़ का सम्मान था जो हाशिए से उठकर समाज को बदल रही है। यह पुरस्कार उन्हें “मानव गरिमा और सामाजिक नेतृत्व को बढ़ावा देने में उत्कृष्टता” के लिए मिला और यह दिखाता है कि असली नेतृत्व नारे नहीं, बल्कि ज़मीन पर किए गए काम से पहचाना जाता है।

श्रुति नागवंशी की यात्रा काशी की तंग गलियों से शुरू हुई। एक ऐसी सामाजिक पृष्ठभूमि में जन्मी जहाँ पितृसत्ता और जातिवाद ने महिलाओं की भूमिका तय कर रखी थी, उन्होंने इन दीवारों को तोड़ते हुए जनमित्र न्यास (1999) और पीवीसीएचआर (1996) जैसी संस्थाओं की स्थापना की।

उनका नेतृत्व दूरस्थ दलित बस्तियों तक पैदल चलकर पहुँचना, मातृत्व स्वास्थ्य पर काम करना, और जातीय भेदभाव के खिलाफ संवैधानिक जागरूकता फैलाना रहा है। 2017 में CRY के साथ मिलकर वाराणसी की 50 बस्तियों में किए गए हस्तक्षेप ने शिशु और मातृ मृत्यु दर में भारी कमी लाई।



फुकेट में जब ग्लोबल आइकन सोफी चौधरी ने उन्हें मंच पर बुलाकर सम्मानित किया, तो वह केवल एक महिला की उपलब्धि नहीं थी — वह जनआंदोलन की जीत थी।

उनकी वापसी पर पीवीसीएचआर कार्यालय में ढोल-नगाड़ों से स्वागत, राजनीतिक वरिष्ठ दिलीप सोनकर द्वारा घर पर माल्यार्पण, और रेडियो सिटी वाराणसी में सम्मान समारोह — यह सब दर्शाता है कि समाज में बदलाव लाने वाली आवाज़ों को आज पहचान मिल रही है।

“यह सम्मान मेरा नहीं है,” श्रुति ने कहा, “यह हर उस स्त्री का है जिसने चुपचाप संघर्ष किया। यह हर उस बच्चे का है जिसने गरिमा का सपना देखा। यह हमारे साझा संघर्ष और समर्पण का सम्मान है।”



जैसे-जैसे भारत विकसित भारत 2047 की ओर बढ़ रहा है, हमें यह तय करना होगा कि हमारा विकास किसे साथ लेकर चल रहा है। क्या उसमें वो लड़कियाँ शामिल हैं जो कभी स्कूल नहीं जा पाईं? वो महिलाएँ जो पंचायतों में अब नेतृत्व कर रही हैं? श्रुति नागवंशी हमें याद दिलाती हैं कि विकास की कोई कीमत नहीं हो सकती अगर उसमें समानता और न्याय न हो।

प्रिय युवा साथियों, यह समय है विचार से कर्म की ओर बढ़ने का। अपने स्टार्टअप्स और आइडियाज को केवल लाभ से नहीं, सामाजिक उद्देश्य से जोड़िए। लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब नेतृत्व ज़मीन से उभरेगा, आसमान से नहीं उतरेगा।

श्रुति नागवंशी की कहानी हमें यह सिखाती है कि अगर इरादा मजबूत हो, तो काशी की गलियों से भी दुनिया को बदला जा सकता है। यह पुरस्कार केवल उनका नहीं है — यह हम सबका है, जो एक विविध, समावेशी और गरिमामय भारत का सपना देखते हैं।


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