सामाजिक न्याय और दलित भागीदारी की बात करने वाले दल क्या ब्राह्मण वोटों की लालसा त्याग पाएंगे?

अगर ब्राह्मणों को मुसलमानों से कोई समस्या होती तब मुसलमानों से दूरी बनाने के बाद अखिलेश यादव को ब्राह्मणों ने वोट दिया होता जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ। जाहिर सी बात है अखिलेश यादव ब्राह्मणों का मूड समझने में चूक गए। ब्राह्मण समुदाय को मुसलमान विरोधी साबित करने की एक असफल कोशिश अखिलेश यादव ने की है।

Read More

सामाजिक न्याय का गला घोंट देगा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी का फैसला

यह आदेश सामाजिक न्याय का गला घोंटने वाला साबित होगा। इसका असर उन छात्र-छात्राओं पर भी पड़ेगा जो अनारक्षित श्रेणी से आते हैं, लेकिन शहरी छात्रों से थोड़ा सा पीछे होते हैं।

Read More

राग दरबारी: मुसलमान ही नहीं, कई जातियों को बीजेपी ने अछूत बना दिया है

सवाल यह नहीं है कि लोकतांत्रिक पद्धति में मुसलमानों की हैसियत खत्म हो गयी है या नहीं हो पायी है। सवाल यह है कि मुसलमानों की हैसियत कितनी रह गयी है? और इसका जवाब यह है कि मुसलमानों की हैसियत पिछले सात वर्षों में बिहार व उत्तर प्रदेश के यादवों, हरियाणा के जाटों, महाराष्ट्र के महारों और उत्तर प्रदेश के जाटवों से थोड़ी ज्यादा ही बुरी है।

Read More

क्‍या अब मूल्यहीन राजनीति के विकल्प के बारे में नहीं सोचना चाहिए?

क्या चुनावी राजनीति में दलों द्वारा सत्ता के बदलाव से समाज की नैतिक न्यूनतम जरूरतें पूरी होती या हो सकती हैं? हो सकती हैं अगर चुनाव सिर्फ सत्ता हासिल करने मात्र का जरिया न हों। जनता के प्रति उत्तरदायित्व निर्वहन के लिए हों। इसलिए उन वास्तविक तत्वों को समझना जरूरी है जिनके आधार पर नैतिक न्यूनतम के लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है।

Read More

लालू यादव से मोहब्बत के लिए चाहिए वो नजर जिसमें सामाजिक न्याय की आस हो!

वे ऐसी शख्सियत हैं जिसने करोड़ों लोगों की जिंदगी को कई तरह से प्रभावित किया है- सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह से। बहुसंख्य अल्पसंख्यकों, पिछड़ों व दलितों में उनकी छवि मसीहा की है तो सवर्णों, थिंक टैंक, मीडिया, इंटेलीजेंसिया में वह आंबेडकर के बाद भारतीय समाज के सबसे बड़े खलनायक हैं। आज उसी लालू यादव की 74वीं वर्षगांठ है।

Read More

राग दरबारी: अर्नब को मीडिया सहित तमाम लोकतांत्रिक संस्थानों ने बरी क्यों कर दिया है?

हमें यह भी याद रखने की जरूरत है कि अर्नब गोस्वामी के निजी मोबाइल का कोई भी चैट अभी तक सामने नहीं आया है। जब वे चैट बाहर आएंगे तब पता नहीं उसमें और कितने लोगों से कितनी तरह की सूचनाओं के आदान-प्रदान का पता चलेगा!

Read More

राग दरबारी: मुद्दों के दौर में सामाजिक न्याय की दिशाहीन राजनीति

क्या कारण है कि जिस राम मनोहर लोहिया के नाम पर वे राजनीति चला रहे हैं उनके बताये सप्तक्रांति के एक भी बिन्दु पर अखिलेश या तेजस्वी ने आंदोलन की बात तो छोड़ ही दीजिए, प्रदर्शन तक नहीं किया है। या फिर मायावती ने डॉ. आंबेडकर के बताये रास्ते पर कोई आंदोलन किया हो।

Read More

जातिवाद, ब्राह्मणवाद और साम्प्रदायिकता के खिलाफ सामाजिक न्याय का एक किसान-बहुजन योद्धा

चौधरी चरण सिंह को जनसामान्य ‘किसान मसीहा’ और भारत के पांचवें प्रधानमन्त्री के तौर पर तो जानता है लेकिन कुछ मामलों में उनके व्यक्तित्व को उनके मूल विचारों और कृतित्व से उलट ही जानता और समझता आया है।

Read More

हिन्दी पट्टी के किसान आंदोलनों को कैसे निगल गयी मंडल की राजनीति और उदारीकरण

औपनिवेशिक काल और आजादी के बाद के पांच दशकों तक इन दोनों प्रदेशों में किसान आंदोलन जिंदा रहे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों खासकर 1990 के बाद इन प्रदेशों में किसान आंदोलन के कोमा मे चले जाना एक पूरी प्रक्रिया का परिणाम है।

Read More

The Indian Express की खबरों में जाति की महीन कारीगरी और न्यूज़रूम में डायवर्सिटी की ज़रूरत

कायदे से जिस किसी ने भी इस खबर को लिखा है या लिखवाया है, उसे दोनों ही मामले में आरोपितों की जाति का या तो जिक्र करना चाहिए था या फिर किसी में नहीं करना चाहिए था।

Read More