कुरुक्षेत्र : प्रथम शिक्षिका के जन्मदिवस पर सभा, प्रदर्शन और शिक्षा के निजीकरण पर चर्चा

सावित्रीबाई ज्योतिबा फुले ने जिन मनुवादी, रुढ़िवादी ताकतों के खिलाफ आजीवन संघर्ष किया आज वही ताकतें सत्ता में मौजूद हैं। आज देश में भाजपा की केंद्रीय व राज्य सरकारें शिक्षा का व्यापरीकरण, निजीकरण साम्प्रदायीकरण कर रही हैं। वैज्ञानिक शिक्षा की जगह पर रूढ़िवादी विषयों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहा है।

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क्या होता यदि फुले दम्पत्ति की मुलाकात मार्क्स से हुई होती?

आज फुले दम्पति होते तो वे अपने किसानों के साथ खड़े होते। वे ललकार रहे होते। उन्हें ‘गुलामगिरी’ से मुक्ति के पाठ पढ़ा रहे होते। उन्हें भीमा-कोरेगांव के किस्से सुना रहे होते।

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