ग़सान कनाफ़ानी: फ़िलिस्तीन मुक्ति संघर्ष का राइटर और फाइटर

कनाफ़ानी ने जितना लिखा, उसका अभी तक कुछ अंश ही हासिल किया जा सका है। उन्होंने अनेक अखबारों में लिखा। अनेक नामों से लिखा। उनके लिए लेखन अपना नाम बनाने का नहीं, बल्कि फ़िलिस्तीन की आज़ादी के मक़सद को हासिल करने के लिए तर्क का औजार था, दुश्मन के ख़िलाफ़ मोर्चा था और लोगों को लामबंद करने की पुकार थी।

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इजरायली रंगभेद अफ्रीका से अधिक खतरनाक है: इरफान इंजीनियर

इजरायल फलस्‍तीन युद्ध 1948 से जारी है, जब यूरोपीय देशों ने इंग्लैंड के संरक्षण में इजरायल राष्ट्र की स्थापना की थी। सारी दुनिया से यहूदियों को बुलाकर फलस्‍तीन में बसाया गया और वहां के मूल निवासियों को अपना ही देश छोड़ने पर विवश किया गया।

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साहित्य में साम्राज्यवाद और विस्थापन की तलाश: संदर्भ इजरायल-फिलिस्तीन संकट

साम्राज्यवाद को दो पैमानों से पहचाना जा सकता है। पहला यह कि शोषक ताकतें किसी दूसरे देश पर कब्जा करके यानि उसे उपनिवेश बनाकर उस देश के उद्योगों को खत्म कर देती हैं और दूसरा उस देश की उपज और उत्पादन को जबरदस्ती हड़पती जाती हैं।

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इस्माइल शाम्मूत की पेंटिंग

इजराइल के ज़ुल्मों के खिलाफ फिलिस्तीन की खुशहाली के ख्वाब

प्रलेसं इकाई अध्यक्ष डॉ जाकिर हुसैन ने कहा कि इजरायल द्वारा बड़े पैमाने पर महिलाओं, बच्चों की हत्या की गई है। यूरोपीय देशों का दोगलापन सामने आया है। एक तरफ वे ग़जा में खैरात बांट रहे हैं दूसरी तरफ इजराइल को नित नए शास्त्र देकर फिलिस्तीनियों के कत्लेआम में मदद कर रहे हैं। भारत सदैव फिलिस्तीन की जनता के पक्ष में रहा है लेकिन वर्तमान सरकार इजराइल के साथ खड़ी है।

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फ़लस्तीन-इज़रायल: सात दशक पुराना एक अंतहीन टकराव और ताज़ा अध्याय

विशेषज्ञों का मानना है कि सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने इज़रायल का सिर्फ रस्मी विरोध किया है क्योंकि दोनों देश लगातार अपने संबंध को इज़रायल के साथ मजबूत कर रहे हैं। यूएई ने इज़रायल में अपना दूतावास भी बनाया है और दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध भी स्थापित हो चुके हैं। इसी का परिणाम है कि इज़रायल लगातार फ़लस्तीन को दबाने की कोशिश कर रहा है।

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महमूद दरवेश: कौन नहीं रो पड़ा था जिसकी मौत पर एक गैर-मुल्क में हुए कविता-पाठ में!

एक कवि के लिए इतना प्रेम, इतना जज़्बा, इतना आदर, इतना गहरा अपनापन – यह इस लेखक के लिए एक अद्वितीय दृश्य था। महमूद दरवेश का यश, उनका हुनर, उनका मर्म, तब तक विश्व-भर में प्रख्यात था, लेकिन एक गैर-राष्ट्र वाली कौम का एक राष्ट्र-कवि माने जाने वाले व्यक्ति के प्रति इतनी भावपूर्ण और कृतज्ञपूर्ण आवेग देखते ही बनता था।

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