बसु-रमण की धरती पर अंधश्रद्धा और वैज्ञानिक मिज़ाज पर कुछ बातें

पश्चिम के अकादमिक गढ़ों में बैठे उपनिवेशवाद के ये आलोचक और उत्तर-औपनिवेशिकता के ये सिद्धान्तकार निश्चित ही पश्चिमी समाजों को अधिक सभ्य, अधिक जनतांत्रिक और अधिक बहुसांस्कृतिक बनाने में योगदान कर रहे हैं, लेकिन पश्चिम के पास तो पहले से ही विज्ञान और आधुनिकता है, वह पहले ही आगे बढ़ चुका है। इस सब में हम पूरब वालों के लिए क्या है? गरीबी और अंधश्रद्धा के दलदल से हमें अपना रास्ता किस तरह निकालना है? अपने लिए हमें किस तरह के भविष्य की कल्पना करनी है?

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आइडेंटिटी और विकृत माडर्निटी से उपजे संकट के तीन ताज़ा उदाहरण

एक समाज के तौर पर या उसके प्रातिनिधिक सैंपल के तौर पर लालू के परिवार से ताकतवर, धनी और सामाजिक तौर पर सशक्त परिवार से बड़ा उदाहरण क्या होगा, प्रियंका वाड्रा से सशक्त व्यक्ति कौन होगा, लेकिन ये दोनों भी जब बढ़कर चुनाव करते हैं तो हिंदुत्व को गाली देने के तमाम आयामों के बावजूद मिसेज वाड्रा फिर से उसी हिंदुत्व की शरण जाती हैं, यहां तक कि ये भी कहती हैं कि वह 17 वर्ष की अवस्था से व्रत रख रही हैं और उन्हें किसी योगी आदित्यनाथ के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं। तेजस्वी यादव जब प्रेम-विवाह करते हैं तो एक उदाहरण तो पेश करते हैं युवाओं के सामने, अंतर्धार्मिक विवाह कर,लेकिन फिर ढाक के तीन पात। वह रेचल को न केवल हिंदू बनाते हैं, बल्कि यादव ही बनाते हैं।

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भारतीय आधुनिकता, स्वधर्म और लोक-संस्कृति के एक राजनीतिक मुहावरे की तलाश

इस कड़वे सच को स्वीकार करना होगा कि पिछले 25-30 साल की हार, खासतौर से राम जन्मभूमि के आंदोलन के बाद की हार, सिर्फ चुनाव की हार नहीं है, सत्ता की हार नहीं है, बल्कि संस्कृति की हार है। हम अपनी सांस्कृतिक राजनीति की कमजोरियों की वजह से हारे हैं।

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अज्ञेय को प्रचलित मुहावरों में समझना मुश्किल है, उन्हें फिर से समझने की कोशिश की जानी चाहिए!

आज जब दुनिया की राजनीति से शीतयुद्ध पूरी तरह खत्म हो गया है और मनुष्यता पर अन्य कई तरह के खतरे हावी हो रहे हैं, तब अज्ञेय अधिक साहस के साथ हमारे पक्ष में होंगे। वह हमें अपने भीतर झाँकने और खुद को समझने में सहयोग कर सकेंगे। अज्ञेय की खासियत यही है कि हर बार आप उन्हें एक ही रूप में अनुभव नहीं कर सकते।

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हिन्दी पट्टी के किसान आंदोलनों को कैसे निगल गयी मंडल की राजनीति और उदारीकरण

औपनिवेशिक काल और आजादी के बाद के पांच दशकों तक इन दोनों प्रदेशों में किसान आंदोलन जिंदा रहे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों खासकर 1990 के बाद इन प्रदेशों में किसान आंदोलन के कोमा मे चले जाना एक पूरी प्रक्रिया का परिणाम है।

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दक्षिणावर्त: फ्रैक्चर आधुनिकता के ट्विटर विमर्श

आखिर ट्विटर पर हो रहा जन-जागरण किसे संबोधित था? अंधविश्वासों में जकड़ी हिन्दू औरतें ट्विटर पर मिलती हैं क्या? अव्वल तो ये विरोध, ये हैश टैग क्रांति, ‘मिसप्‍लेस्‍ड’ थी, लेकिन यहां मेरा विषय यह है ही नहीं।

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