जेट्टी पर ज़िंदगी: मलिम में मालिक और मछलियों के बीच खट रहे प्रवासी आदिवासियों की व्यथा-कथा

लॉकडाउन में समूचे देश की तरह मलिम जेट्टी की दुनिया भी उजड़ गयी थी। मज़दूर जैसे-तैसे घर पहुँचे थे। लॉकडाउन की बात निकलने पर मजदूरों के बीच एक उदासी छा जाती है। कोई उस दौर को नहीं याद करना चाहता है…

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सुंदरबन से धीरे-धीरे गायब क्यों हो रहे हैं छात्र?

यहां के गांवों में स्कूली शिक्षा के सामने बाधाओं का अंबार लगा हुआ है। बार-बार आते तूफ़ान, बढ़ता खारापन, जो खेती और मछली पकड़ने को नुकसान पहुंचाता है, और लॉकडाउन- सभी ने छात्रों के स्कूल छोड़ने की दर, कम उम्र में शादियां और छात्रों के बीच रोज़गार की तलाश को बढ़ा दिया है

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पढ़ने-खेलने की उम्र में मजदूरी करने को अभिशप्त हैं कोरोना-काल की लाखों अभागी संतानें!

पिछले दो दशक में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में बाल मजदूरों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। दुनिया भर में बाल मजदूरों की संख्या 152 मिलियन से 160 मिलियन पर पहुँच चुकी है।

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असाधारण, अप्रत्याशित, अभूतपूर्व: एक नज़र में 2020 का पूरा बहीखाता

एक ऐसा वर्ष जो चार जीवित पीढ़ियों ने अपने जीते जी नहीं देखा! एक ऐसा वर्ष जिसकी न हमने कल्पना की, न आगे करेंगे। 2020- असामान्य, अप्रत्याशित और अभूतपूर्व साल, जिसे हम भूलना चाहेंगे पर भुला नहीं पाएंगे। एक परिक्रमा पूरे वर्ष की घटनाओं के आईने में।

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बिहार: बनमनखी चीनी मिल के भव्य खंडहरों में छुपी है रोज़गार के चुनावी वादों की कड़वाहट

विडम्‍बना है कि जिस राज्‍य में कुछ दशक पहले तक सिर्फ चीनी से कई लाख लोगों को रोजगार मिलता था, आज वही रोजगार चुनावी वायदों और घोषणाओं में ढूंढा जा रहा है।

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बात बोलेगी: महापलायन की ‘चांदसी’ तक़रीरों के बीच फिर से खाली होते गाँव

लॉकडाउन की लंबी अवधि को पार करते हुए, अनलॉक की भी एक लंबी अवधि पूरी करने के बाद, आज सच्चाई ये है कि गाँव लौटे 100 में से 95 लोग शहरों और महानगरों की ओर लौट चुके हैं। उन्हें कोई मलाल नहीं है कि शहरों और महानगरों ने कैसी बेरुखी दिखलायी।

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कर्नाटक और गुजरात सरकारों का प्रवासी मजदूरों को रोक लेना संविधान की अवमानना है

विदेश से आना तो फिर भी इस अखंड राष्ट्रवादी सरकार ने आसान कर दिया है लेकिन अपने ही देश में अपने ही घर लौटना सबसे ज़्यादा मुश्किल बना दिया गया है।

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