बीसवीं सदी के प्रथम दशक में खड़ी बोली और ब्रज का संघर्ष जोरों पर था। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने नये विषयों, नई शैली और भाषा योजना द्वारा नवयुग का शंखनाद किया। वे गद्य में तो खड़ी बोली के पक्षपाती थे, परन्तु पद्य रचना में ब्रज माधुरी का मोह छोड़ नहीं सके। एक जगह उन्होंने स्वयं स्वीकार किया है, चाहने पर भी उनसे खड़ी बोली में सरस कविता नहीं बनती लेकिन भारतेन्दु युग में श्रीधर पाठक ने अंग्रेजी की अनूदित रचनाओं द्वारा काव्य रचना के लिए खड़ी बोली का द्वार खोल दिया। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, गुप्त, अयोध्या सिंह उपाध्याय, पं. रामचरित उपाध्याय तथा लोचनप्रसाद पाण्डेय ने उन्हीं का अनुगमन किया।
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