दो महीने से चल रहे किसान आंदोलन को समझने के लिए कुछ ज़रूरी बिन्दु

इस समय इस आंदोलन पर बहुत सारे विश्लेषण आ रहे हैं लेकिन उन्हीं विद्वानों के विश्लेषणों पर ध्यान दें जो पिछले कई दशकों से किसानों के हित की बात कर रहे हैं। कॉरपोरेट घरानों के शुभचिंतक विद्वानों के नजरिये को पढ़ते समय भी इन विश्लेषणों की रोशनी में ही उनकी परख करें।

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“मोदीराज: नाम किसान विधेयक, फायदा पूंजीपतियों का”: कृषि कानूनों पर जनज्वार की जनता बुकलेट

पुस्तिका तैयार करने में जनता के अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार और पटियाला यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर बलविंदर सिंह तिवाना का विशेष सुझाव रहा है।

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किसान आंदोलन: सुप्रीम कोर्ट की बनायी कमेटी से भूपिंदर मान ने नाम वापस लिया

मान के पक्ष का असली पता 1 सितम्‍बर, 2020 को प्रधानमंत्री लिखे उनके एक पत्र से लगता है जिसमें उन्‍होंने कृषि कानूनों पर अपनी आपत्ति जतायी थी और तीन सुझाव दिए थे।

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AIPF के आह्वान पर पूरे UP में जलायी गईं नये कृषि कानूनों की प्रतियां

कार्यकर्ताओं ने कहा कि यह देश के आम नागरिकों की समझ से परे है कि देश की खेती किसानी को तबाह करने वाले कानूनों को रद्द करने और किसानों की फसल के वाजिब मूल्य के लिए कानूनी गारंटी सरकार दे, इस छोटी सी भी मांग मानने के लिए सरकार तैयार क्यों नहीं है।

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सुप्रीम कोर्ट की बनायी कमेटी के सारे सदस्य कृषि कानूनों का पहले ही समर्थन कर चुके हैं!

समिति वही राय देगी जो सरकार चाहती है। अब किसानों को आंदोलन खत्म करना होगा वर्ना लोग कहेंगे कि किसान सुप्रीम कोर्ट को भी नहीं मानते। कुछ दिन के अंतराल के बाद नया कानून फिर लागू हो जाएगा

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