पंजाब चुनाव में गायब होता कॉरपोरेट वर्चस्व का मुद्दा

आंदोलन का मुख्य जोर कॉर्पोरेट जगत को कृषि क्षेत्र पर नियंत्रण करने से रोकना था। उस समय लगभग सभी राजनीतिक दल इस बात पर सहमत थे कि इन तीन कृषि कानूनों के अंतर्गत कॉरपोरेट्स का कृषि पर पूर्ण अधिकार हो जायेगा। अपने पंजाब दौरे के दौरान राहुल गांधी को यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ा कि मोदी सरकार कठपुतली सरकार थी और कॉरपोरेट्स के हितों की सेवा कर रही थी। दुख की बात है कि कृषि और अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में कॉर्पोरेट वर्चस्व को रोकने के मुद्दे का उल्लेख किसी भी राजनीतिक दल ने अपने चुनाव प्रचार या चुनावी घोषणापत्र में भी नहीं किया है।

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संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम संदेश

प्रधानमंत्री जी, आपने किसानों से अपील की है कि अब हम घर वापस चले जाएं। हम आपको यकीन दिलाना चाहते हैं कि हमें सड़क पर बैठने का शौक नहीं है। हम भी चाहते हैं कि जल्द से जल्द इन बाकी मुद्दों का निपटारा कर हम अपने घर, परिवार और खेती बाड़ी में वापस लौटे। अगर आप भी यही चाहते हैं तो सरकार उपरोक्त छह मुद्दों पर अविलंब संयुक्त किसान मोर्चा के साथ वार्ता शुरू करे। तब तक संयुक्त किसान मोर्चा अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के मुताबिक इस आंदोलन को जारी रखेगा।

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आंदोलन में 675 से अधिक किसानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाने दिया जाएगा: संयुक्त किसान मोर्चा

26 नवंबर को पहली वर्षगांठ के अवसर पर बड़ी संख्या में किसानों को मोर्चा स्थलों पर पहुंचने का काम तेजी पकड़ रहा है और यह लगातार गति भी पकड़ रहा है। इसी तरह लखनऊ किसान महापंचायत को सफल बनाने के लिए भी जोरदार लामबंदी चल रही है।

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PM के निर्णय का स्वागत, बिजली विधेयक और लाभकारी मूल्य की कानूनी गारंटी का मुद्दा बाकी है: SKM

संयुक्त किसान मोर्चा प्रधानमंत्री को यह भी याद दिलाना चाहता है कि किसानों का यह आंदोलन न केवल तीन काले कानूनों को निरस्त करने के लिए है, बल्कि सभी कृषि उत्पादों और सभी किसानों के लिए लाभकारी मूल्य की कानूनी गारंटी के लिए भी है। किसानों की यह अहम मांग अभी बाकी है।

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हर्फ़-ओ-हिकायत: तीनकठिया नील की खेती और नये अंग्रेजों के तीन कृषि कानून

नील की तीनकठिया खेती करने वाले किसानों का प्लांटरों के साथ अनुबंध ठीक वैसा ही था जैसा तीन कृषि कानूनों के तहत कंपनी या पैन कार्डधारक किसी व्यक्ति से हुआ अनुबंध। इसीलिए संयुक्‍त किसान मोर्चा और तमाम किसान नेताओं को सरकार की मंशा पर संदेह है।

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स्थायी समिति की संस्तुति की रोशनी में ‘भाजपा हराओ’ का नारा कहीं गलत तो नहीं साबित हो गया?

किसान आंदोलन को अब यह भी महसूस करना होगा कि सरकार के अड़ियल रवैये के पीछे उसके सामने मौजूद यह तथ्य भी रहे होंगे कि कम या अधिक पूंजीपतियों की झूठन से अन्य राजनीतिक दलों के हाथ भी गंदे हैं।

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सौ दिन छूते किसान आंदोलन के बीच तीन कृषि कानूनों को फिर से समझने की एक कोशिश

यह एक संवैधानिक प्रश्न भी है। कारण है कि कृषि राज्य और केंद्र दोनों का विषय है और यह समवर्ती सूची में आता है। एपीएमसी कानून को पारित करना राज्यों का अधिकार है। इसलिए यह कानून तो असंवैधानिक भी हो सकता है।

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दिशा रवि की गिरफ्तारी निंदनीय, सर छोटूराम की याद में कल कई कार्यक्रम: SKM

केंद्र द्वारा लाये गए तीन कृषि कानून किसानों के लिए न सिर्फ MSP के लिए एक बड़ा खतरा है बल्कि इसके बजाय खुले बाजारों के सहारे खेती को ज्यादा जोखिम भरा बनाते हैं। ऐसी स्थिति में, किसानों द्वारा सततपोषणीय कृषि प्रथाओं को अपनाने की संभावना कम है। यह व्यवहार्यता और स्थिरता के बीच अंतर-संबंध है जिसे दिशा रवि जैसे कार्यकर्ताओं ने किसानों के समर्थन में विस्तार में समझा है।

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कृषि कानूनों की वापसी के लिए IPF कार्यकर्ताओं ने PM को भेजा ज्ञापन

केन्द्र की मोदी सरकार इन कानूनों के बारे में लगातार देश को गुमराह कर रही है कि इनमें काला क्या है। जबकि सभी लोग बखूबी जानते है कि ये कानून देशी विदेशी कारपोरेट घरानों के लाभ के लिए ही बनाए गए है और इनसे हमारी देश की आर्थिक सम्प्रभुता तहस नहस हो जायेगी और खेती किसानी बर्बाद हो जायेगी।

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आज बिजलीकर्मियों की देशव्यापी हड़ताल, 10 फरवरी तक चलेगा जन जागृति अभियान : AIKSCC

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने 3 फरवरी को बिजली कर्मियों और इंजीनियरों द्वारा बिजली क्षेत्र के निजीकरण,लेबर कोड लागू किये जाने , उपभोक्ताओं की लूट और किसानों की सब्सिडी खत्म किए जाने के खिलाफ की जा रही एक दिवसीय हड़ताल का समर्थन करते हुए सरकार से बिजली संशोधन बिल वापस लेने की मांग की है।

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