एजाज़ अहमद के बौद्धिक अवदान पर एक ढंग की श्रद्धांजलि नहीं लिख सके हम…

एक पँक्ति में एजाज अहमद का परिचय यह है कि वो हमारे समय के अग्रणी मार्क्सवादी विचारकों में एक थे। उनकी किताब ‘इन थियरी…’ को साहित्य के सैद्धान्तिक विमर्शों की एक जरूरी किताब माना जाता है। मार्क्सवादी विचारकों से प्रभावित हम जैसे नौजवानों के लिए एजाज अहमद एक रोलमॉडल की तरह थे।

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ज़िंदाँनों में सब बराबर हैं: जेल में फादर स्‍टेन स्‍वामी की लिखी एक कविता

फादर स्टेन की मूल कविता ‘प्रिज़न लाइफ- अ ग्रेट लेवलर’ का हिन्दी अनुवाद राजेंदर सिंह नेगी ने किया है और यहाँ उनके फ़ेसबुक से साभार प्रकाशित है

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स्मृतिशेष: हिंदीपट्टी के युवाओं में वाम-इतिहासबोध रोपने वाले एक अभिभावक का जाना

दिल्ली के बौद्धिक सर्किल ने लाल बहादुर जी को उस तरह से सपोर्ट नहीं किया जैसा उन्हें करना चाहिए था। शायद दिल्ली की अंग्रेजी दुनिया में ऐसे लोगों को ज्यादा सर नहीं चढ़ाया जाता जो गैर-अंग्रेजी फलक से क्रांतिकारी चेतना का विश्वविद्यालयी दुनिया से बाहर विस्तार चाहते हैं।

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अदब के आसमां में चमक के पलट गया एक और चाँद, नहीं रहे शम्‍सुर्रहमान फ़ारूक़ी

समकालीन पीढ़ी उन्‍हें उनके 2006 में आए उपन्‍यास ‘कई चांद थे सरे आसमां’ से बेहतर जानती थी। आज से कोई पंद्रह साल पहले उन्‍होंने दास्‍तानगोई को भारतीय सांस्‍कृतिक परिदृश्‍य में दोबारा जिंदा करने का काम किया था।

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श्रद्धांजलि: यह वह नंबर नहीं है जिस पर तुम सुनाते थे अपनी तकलीफ़…

हिन्दी के मानिंद कवि और वरिष्ठ संपादक मंगलेश डबराल का आज शाम दिल्ली के एम्स में निधन हो गया। वे 72 वर्ष के थे और कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे। जनपथ उन्हें अपनी श्रद्धांजलि देते हुए उन्हीं की लिखी एक कविता को पुनः प्रकाशित कर रहा है।

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कोरोना के बाद क्या ‘विश्वग्राम’ की परिकल्पना यथावत बनी रहेगी? ललित सुरजन का अनुत्तरित सवाल

उनका आखिरी संपादकीय 9 अप्रैल, 2020 को कोरोना पर आया था। इस संपादकीय में उन्‍होंने कोरोना के बाद बनने वाली दुनिया को लेकर कुछ गंभीर सवाल उठाये थे। ये सवाल अब भी अनुत्‍तरित हैं। जनपथ अपने समय के इस महान संपादक प्रकाशक को श्रद्धांजलि देते हुए उनके सम्‍मान में उनका 9 अप्रैल को छपा संपादकीय पुनर्प्रकाशित कर रहा है।

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छान घोंट के: स्‍वामी अग्निवेश को काशी से आखिरी सलाम

2014 में जब कैलाश सत्यार्थी को नोबेल शांति पुरस्कार मिला, तो स्वामी जी ने बिहार से मुझे फ़ोन कर के करीब दो घंटे लम्बी बात की। मैंने स्वामी जी से कहा कि “आप विस्तारवादी देशो के खिलाफ हैं, इसलिए आपको Right Livelihood award मिला जबकि कैलाश जी को नोबेल।”

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धर्म, न्याय और बन्धुत्व की बात करने वाले एक वैदिक समाजवादी का जाना

धर्म के नाम पर सांप्रदायिकता और असहिष्णुता के खिलाफ लड़ाई में भी वे अग्रिम पंक्ति में डटे रहे. खासकर बहुसंख्यकवादी “हिंदुत्व” विचारधारा के खिलाफ उनका मानना था कि हिन्दुत्व की विचारधारा हिंदू धर्म का अपहरण करना चाहती है.

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प्रणव मुखर्जी को याद करने के कुछ और भी कारण हैं!

प्रधानमंत्री की सुरक्षा में लगी सभी गाड़ियां स्टार्ट कर दी गयी थीं, सब एलर्ट थे लेकिन जब धीरूभाई अंबानी राजीव गांधी के कमरे में दाखिल हुए तो बाहर निकलने में उन्हें 42 मिनट का वक्त लग गया। कहा जाता है कि यही वह मीटिंग थी जिसमें अंबानी ने राजीव गांधी को ‘सेट’ किया था, जिसकी व्यूह रचना प्रणव मुखर्जी ने की थी।

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उत्तराखंड के आंदोलनकारी लेखक त्रेपन सिंह चौहान का निधन, उपपा ने दी श्रद्धांजलि

त्रेपन के निधन से हमने एक सच्चा, ईमानदार, संघर्षशील, जीवट साथी खो दिया है किन्तु उनकी जीवटता और साहित्य राज्य का मार्गदर्शन करते रहेंगे।

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