अवमानना के केस में भूषण पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाया 1 रुपये का जुर्माना

जस्टिस अरुण मिश्र की अध्‍यक्षता वाली बेंच ने बीते 25 अगस्‍त को इस मामले में फैसले को सुरक्षित रख लिया था। इस सुनवाई में जस्टिस मिश्र ने इस बात पर निराशा जतायी थी कि भूषण ने अपने ट्वीट को सही ठहराते हुए पूरक बयान जारी किया।

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आर्टिकल 19: प्रशांत भूषण ने नैतिकता की एक लंबी लकीर खींच दी है, जिसका नज़ीर बनना तय है

फैसला कुछ भी हो लेकिन प्रशांत भूषण हीरो बन चुके हैं। अगर सजा मिलती है तब भी और अदालत उन्हें सिर्फ फटकार लगाकर छोड़ने का फैसला करती है तब भी। भारत के न्यायिक इतिहास में अवमानना के मामले में अदालत से बाहर इतनी जोरदार बहस कभी नहीं हुई।

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SC ने प्रशांत भूषण को बयान पर दोबारा सोचने के लिए दी मोहलत, उन्होंने ठुकराया प्रस्ताव

वरिष्‍ठ अधिवक्‍ता प्रशांत भूषण को सुप्रीम कोर्ट द्वारा आपराधिक अवमानना का दोषी पाये जाने के बाद आज सज़ा पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा की खण्‍डपीठ ने भूषण को …

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गाहे-बगाहे: नफ़स न अंजुमने आरज़ू से बाहर खींच

अधिक ईमानदारी से कहा जाय तो प्रशांत भूषण ने उस कॉकस के मर्म पर चोट कर दी जिसे झेलना मुश्किल नहीं नामुमकिन है। और जब झेलना मुम्किन नहीं है तो सजा उन्हें मिलेगी। लेकिन प्रशांत भूषण भी कोई इंसान हैं। उन्होंने माफी मांगने से इंकार कर दिया।

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“चीफ जस्टिस का मतलब सुप्रीम कोर्ट नहीं होता”: प्रशांत भूषण का ऐतिहासिक और दस्‍तावेज़ी जवाब

लोकतंत्र के क्षरण पर प्रशांत भूषण का यह हलफ़नामा अपने आप में समकालीन राजनीति, समाज और न्‍यायपालिका पर एक गम्‍भीर टिप्‍पणी और दस्‍तावेज़ी प्रतिक्रिया है जिसे पूरा पढ़ा जाना चाहिए। जनपथ के पाठकों के लिए यह हलफ़नामा हम पूरा प्रकाशित कर रहे हैं।

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राग दरबारी: कितनी छोटी होगी लोकतंत्र में अवमानना की लकीर?

जब राजसत्ता के इशारे पर सारे निर्णय लिए जा रहे हैं तो लिखित कानून और उसे पालन करने वाले संस्थानों की क्या भूमिका रह जाएगी? हमारे संवैधानिक अधिकारों की गारंटी कौन करेगा जो हमें भारतीय कानून के तहत एक नागरिक के तौर पर मिले हुए हैं? उस नागरिक स्वतंत्रता का क्या होगा जिसकी दुहाई बार-बार दी जाती है?

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भारत में आपराधिक अवमानना की प्रासंगिकता: संदर्भ प्रशांत भूषण

आपराधिक अवमानना पर एक कानून की आवश्‍यकता की समीक्षा करने से आगे बढ़कर अवमानना के पैमाने का भी मूल्‍यांकन किये जाने की ज़रूरत है। यदि ऐसा कोई पैमाना वास्‍तव में होना ही चाहिए, तो वो यह हो कि क्‍या सवालिया टिप्‍पणी कोर्ट को उसका काम करने से रोके दे रही है। इसके अतिरिक्‍त, संस्‍थान की कैसी भी आलोचना को रोकने का साधन इसे नहीं बनने देना चाहिए।

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