प्रेस की स्वतंत्रता के सवाल से ज्यादा बड़ा है पत्रकारिता के वजूद का संकट!

प्रेस की स्वतंत्रता पर गहराते संकट की चर्चा तो हो रही है किंतु प्रेस के अस्तित्व पर जो संकट है उसे हम अनदेखा कर रहे हैं। अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के मुद्रण आधारित या इलेक्ट्रॉनिक साधनों का उपयोग करने वाले हर व्यक्ति या संस्थान को प्रेस की आदर्श परिभाषा में समाहित करना घोर अनुचित है विशेषकर तब जब वह पत्रकारिता की ओट में अपने व्यावसायिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और साम्प्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ा रहा हो।

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संवैधानिक मूल्यों पर चलता संवेदनशून्य राजनीति का बुलडोज़र

देश का संविधान अपने स्वरूप में पूरी तरह से “राष्ट्रवादी” है जिसके पालन में ही देश का भविष्य है। किसी भी राजनीतिक दल का समर्थक या विरोधी हुआ जा सकता है, लेकिन यह भी याद रखने की जरूरत है कि जनता से राजनीतिक पार्टियों का वजूद तय होता है, न कि राजनीतिक पार्टियों से जनता का अस्तित्व।

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सिख इतिहास की जटिलताओं को नजरअंदाज करता प्रधानमंत्री का उद्बोधन

प्रतीकवाद की राजनीति में निपुण प्रधानमंत्री किसान आंदोलन के बाद पंजाब में अपनी और भाजपा की अलोकप्रियता से अवश्य चिंतित होंगे और एक शासक के रूप में अपने अनिवार्य कर्त्तव्यों को सिख समुदाय के प्रति अनुपम सौगातों के रूप में प्रस्तुत करना उनकी विवशता रही होगी।

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मई दिवस: विरासत, नयी चुनौतियां और हमारी ऐतिहासिक जिम्मेदारी

ऐसे कठिन दौर में मई दिवस हमें रास्ता दिखाता है कि हम चट्टानी एकता कायम करें और अपने वजूद की हिफाज़त के लिए एक ठोस रणनीति बनाएं और संघर्ष करें।

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जलवायु परिवर्तन में इंसानी गतिविधियों की बढ़ी हुई भूमिका का नतीजा है इस बार की प्रचंड गर्मी

भारत के उत्तरी इलाकों के कुछ हिस्सों में पारा 46 डिग्री तक पहुंच सकता है। हीटवेव से जुड़ी चेतावनियां जारी की जा रही हैं। जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि साल के शुरुआती महीनों में ही इतनी प्रचंड गर्मी खासतौर पर खतरनाक है।

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मुसलमानों को कॉमन सिविल कोड का स्वागत क्यों करना चाहिए

हर बार की तरह इस बार भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तथा अन्य मुसलमानों की तथाकथित हिमायती तंज़ीमें आपको भड़काने, बहकाने और इस्लाम की दुहाई देने के लिए आपके पास आएंगी। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसके विरोध में अपील भी जारी कर दी है। अब बाक़ी की अपीलें आनी हैं लेकिन आपको इनकी अपीलों को नज़रअंदाज़ कर देना है। किसी के भड़काने और बहकाने में नहीं आना है

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प्रशांत किशोर के बॉक्स ऑफिस फॉर्मूले बनाम लोकतंत्र में स्वस्थ-सशक्त विपक्ष का प्रश्न

प्रशांत किशोर का रणनीतिक जादू मार्केटिंग और इवेंट मैनेजमेंट के उन घातक प्रयोगों में छिपा है जो ग्राहक को किसी अनावश्यक, कमतर और औसत प्रोडक्ट को बेहतर मानकर चुनने के लिए मानसिक रूप से तैयार करते हैं। हमने नरेन्द्र मोदी को गुजरात के विवादित मुख्यमंत्री से सर्वशक्तिमान, सर्वगुणसम्पन्न, महाबली मोदी में कायांतरित होते देखा है।

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चम्बल वीरान है, अब शिक्षा और सेहत में लूट का सामान है!

डकैतों की इन औलादों ने तरह-तरह के पेशे अपना लिए हैं। कुछ ने चिकित्सा के पेशे को चुना है तो कुछ वकील बन बैठे हैं। कुछ ने पैथोलोजिकल लैब खोल ली है तो कुछ ने शिक्षा के धंधे को अपना लिया है। राजनीति में भी इन्हें देखा जा सकता है। गरज़ यह कि जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं बचा है जहाँ यह नहीं पाए जाते हों या जहाँ इनका दबदबा न हो।

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महामारी से बचने के लिए वैश्विक संधि को मुनाफ़ाख़ोरों से कैसे बचाएं?

यदि प्रभावकारी वैश्विक संधि बनानी है जिससे कि महामारी प्रबंधन कुशलता से हो और आपदा जैसी स्थिति उत्पन्न ही न हो, तो इस पूरी प्रक्रिया में मानवाधिकार उल्लंघन करने वाले और मुनाफ़ाख़ोरी में लिप्त कम्पनी और व्यक्तियों के हस्तक्षेप पर रोक लगाना ज़रूरी है। पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के नेतृत्व ने ज़ोर दिया है कि इस संधि प्रक्रिया में सभी की ‘भागीदारी’ हो जो मुनाफ़ाख़ोरी करने वालों के लिए खुला निमंत्रण है।

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अबकी तलवार लहराती और आग लगाती भीड़ को देखकर मेरे राम निश्चित ही आहत हुए होंगे!

लगभग हर प्रदेश में- और आश्चर्यजनक रूप से कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी दलों द्वारा शासित प्रदेशों में भी- इन शोभायात्राओं का स्वरूप एक जैसा था- उकसाने, भड़काने और डराने वाला। इन शोभायात्राओं को मुस्लिम-बहुल इलाकों तथा मुस्लिम धर्मस्थलों के निकट से गुजरने की इजाजत निरपवाद रूप से लगभग हर जिले में दी गई।

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