बुलडोजर संस्कृति का राजनीतिक अर्थशास्त्र और असमानता की जटिल गुत्थी

जब असमानता को समझना इतना जटिल है तो उसे अपने सत्ता सुख के लिए बढ़ाना कहां से न्यायोचित है? यह देश ऐसा है जहां दो समुदायों के बीच द्वेष न हो इसलिए शिव ने हलाहल पान किया है। जिसे हम सुप्रीम सैक्रिफाइस कहते हैं वह महादेव ने किया। क्या हम उनके बलिदान को व्यर्थ जाने देंगे? मत भूलिए, इन्‍हीं सत्तानवीसों से मुक्ति के लिए कृष्ण ने इंद्र पूजा पर रोक लगायी और लोकतंत्र की स्थापना की थी। आप कृष्ण भक्त होकर कृष्ण का तिरस्कार मत कीजिए।

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कश्मीर: आतंकवादी हिंसा पर अंकुश लगाने में सरकार क्यों नाकामयाब हुई है?

कश्मीर का घटनाक्रम इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि इस मुद्दे का उपयोग कर भाजपा ने केंद्र और राज्यों के चुनावों में आशातीत सफलता हासिल की है और वह कश्मीर विषयक अपने फैसलों को नए भारत के नए तेवर को दर्शाने वाले कदमों के रूप में प्रचारित करती रही है- ऐसे कदम जो कठोर निर्णय लेने वाली मजबूत सरकार ही उठा सकती थी।

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सिलगेर : भूमकाल के बाद आदिवासियों का सबसे बड़ा प्रतिरोध आंदोलन

इस जनसंहार के बाद कांग्रेस पार्टी ने एक प्रतिनिधिमंडल सिलगेर भेजा, लेकिन उसकी रिपोर्ट आज तक सामने नहीं आई। भाजपा के जनप्रतिनिधियों ने भी वहां का दौरा किया और चुप्पी साध ली। जन आक्रोश के दबाव में सरकार को दंडाधिकारी जांच की भी घोषणा करनी पड़ी, लेकिन एक साल बाद भी उसकी जांच का कोई अता-पता नहीं है।

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बहुजन राजनीति के बेगमपुरा मॉडल की तलाश

बाबा साहेब द्वारा 1942 में स्थापित आल इंडिया शेड्यूल्ड कास्ट्स फेडरेशन के उद्देश्य और एजंडा को देखा जाय तो पाया जाता है कि डॉ. आंबेडकर ने इसे सत्ताधारी कांग्रेस और सोशलिस्ट पार्टियों के बीच संतुलन बनाने के लिए तीसरी पार्टी के रूप में स्थापित करने की बात कही थी। इसकी सदस्यता केवल दलित वर्गों तक सीमित थी क्योंकि उस समय दलित वर्ग के हितों को प्रोजेक्ट करने के लिए ऐसा करना जरूरी था।

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प्रेस की स्वतंत्रता के सवाल से ज्यादा बड़ा है पत्रकारिता के वजूद का संकट!

प्रेस की स्वतंत्रता पर गहराते संकट की चर्चा तो हो रही है किंतु प्रेस के अस्तित्व पर जो संकट है उसे हम अनदेखा कर रहे हैं। अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के मुद्रण आधारित या इलेक्ट्रॉनिक साधनों का उपयोग करने वाले हर व्यक्ति या संस्थान को प्रेस की आदर्श परिभाषा में समाहित करना घोर अनुचित है विशेषकर तब जब वह पत्रकारिता की ओट में अपने व्यावसायिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक और साम्प्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ा रहा हो।

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संवैधानिक मूल्यों पर चलता संवेदनशून्य राजनीति का बुलडोज़र

देश का संविधान अपने स्वरूप में पूरी तरह से “राष्ट्रवादी” है जिसके पालन में ही देश का भविष्य है। किसी भी राजनीतिक दल का समर्थक या विरोधी हुआ जा सकता है, लेकिन यह भी याद रखने की जरूरत है कि जनता से राजनीतिक पार्टियों का वजूद तय होता है, न कि राजनीतिक पार्टियों से जनता का अस्तित्व।

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सिख इतिहास की जटिलताओं को नजरअंदाज करता प्रधानमंत्री का उद्बोधन

प्रतीकवाद की राजनीति में निपुण प्रधानमंत्री किसान आंदोलन के बाद पंजाब में अपनी और भाजपा की अलोकप्रियता से अवश्य चिंतित होंगे और एक शासक के रूप में अपने अनिवार्य कर्त्तव्यों को सिख समुदाय के प्रति अनुपम सौगातों के रूप में प्रस्तुत करना उनकी विवशता रही होगी।

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मई दिवस: विरासत, नयी चुनौतियां और हमारी ऐतिहासिक जिम्मेदारी

ऐसे कठिन दौर में मई दिवस हमें रास्ता दिखाता है कि हम चट्टानी एकता कायम करें और अपने वजूद की हिफाज़त के लिए एक ठोस रणनीति बनाएं और संघर्ष करें।

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जलवायु परिवर्तन में इंसानी गतिविधियों की बढ़ी हुई भूमिका का नतीजा है इस बार की प्रचंड गर्मी

भारत के उत्तरी इलाकों के कुछ हिस्सों में पारा 46 डिग्री तक पहुंच सकता है। हीटवेव से जुड़ी चेतावनियां जारी की जा रही हैं। जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि साल के शुरुआती महीनों में ही इतनी प्रचंड गर्मी खासतौर पर खतरनाक है।

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मुसलमानों को कॉमन सिविल कोड का स्वागत क्यों करना चाहिए

हर बार की तरह इस बार भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तथा अन्य मुसलमानों की तथाकथित हिमायती तंज़ीमें आपको भड़काने, बहकाने और इस्लाम की दुहाई देने के लिए आपके पास आएंगी। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसके विरोध में अपील भी जारी कर दी है। अब बाक़ी की अपीलें आनी हैं लेकिन आपको इनकी अपीलों को नज़रअंदाज़ कर देना है। किसी के भड़काने और बहकाने में नहीं आना है

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