मुसलमानों को कॉमन सिविल कोड का स्वागत क्यों करना चाहिए


जो असमानता यानि वर्ण व्यवस्था के समर्थक और समानता के विरोधी हैं उन्होंने समान नागरिक संहिता बनाने की पहल की है। इसका छुपा मकसद मुसलमानों को भयभीत करना, उनका दानवीकरण करना, उनको चिढ़ाना और अपने अंधभक्‍तों को खुश करना है लेकिन उनके इस क़दम से मुसलमानों का नुकसान होने के बजाय फ़ायदा होने जा रहा है।

जिस तरह तुरंत तीन तलाक देने पर पाबंदी लगाने से मुस्लिम पुरुषों की उस प्रवृत्ति पर अंकुश लगा है जिसके तहत वे फ़ोन पर, व्हाटसअप और ईमेल पर तीन तलाक दे रहे थे, उससे मुस्लिम महिलाओं को छुटकारा मिला है। ग़ोश्त की दुकानों के लिए नियम बनाने से कसाइयों की दुकानों में टाइल्स लग गयी हैं और वहां फ्रिज आ गया है यानि अस्‍वास्‍थ्‍यकर ग़ोश्त से निजात मिली है और इससे भी मुसलमानों को फ़ायदा हुआ है।

अब रही समान नागरिक संहिता लागू करने की बात तो इससे मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक से पूरी तरह छुटकारा मिल जाएगा और वे भयमुक्त हो जाएंगी। यह मुस्लिम महिलाओं के लिए खुशकिस्मती की बात है कि मोदी सरकार खुद अपने धर्म की महिलाओं की उठायी मांगों पर खामोश है। इसकी मिसाल वृंदावन-बनारस की विधवाएं हैं जो 2015 से हर साल अपने भाई को रक्षाबंधन पर राखी भेजकर यह विनती कर रही हैं कि उनका भाई प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, सुलभ शौचालय के संस्थापक श्री बिंदेश्वरी पाठक द्वारा लिखित और बीजेपी के सांसद श्री जनार्दन सिगरीवाल द्वारा दिल्ली भेजे गए विधवा संरक्षण बिल को संसद में पास कर दे लेकिन उन पर उनके भाई की कृपादृष्टि नहीं पड़ रही है और वह मुस्लिम महिलाओं के लिए चिंतित हैं। इस समान नागरिक संहिता से मुस्लिम पुरुषों को चार शादियां करके चालीस बच्चे पैदा करने के झूठे प्रचार से भी छुटकारा मिल जाएगा। मुस्लिम महिलाओं को पति और पिता की जायदाद में बराबर का हिस्सा मिल जाएगा। एक तरफ़ अगर किसी परिवार के पति के अधिकारों में कटौती होगी तो उस परिवार के पिता और भाई की राहत में इज़ाफ़ा होगा क्योंकि उनकी बहन और बेटी के अधिकारों में बढ़ोतरी हो जाएगी। जो मुस्लिम पुरुष अपनी पत्‍नी को बिना तलाक दिये घर से बाहर निकालकर दूसरी शादी रचा लेते थे अब वह ऐसा नहीं कर पाएंगे। यदि दादा के जिंदा रहते उसके शादी-शुदा पुत्र की मृत्यु हो जाती है तो स्वार्थी रिश्तेदार उस मृतक पुत्र के बच्चों को पैतृक सम्पत्ति से वंचित कर देते थे। अब वह भी ऐसा नहीं कर पाएंगे और ऐसे मृतक के बच्चों को सम्पत्ति में अधिकार बना रहेगा। हिन्‍दुओं को आयकर में संयुक्त परिवार यानि अनडिवायडेड फेमिली का बड़ा लाभ मिलता है। समान नागरिक संहिता बनने के बाद वह लाभ मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों को भी मिलने लगेगा।

इसी तरह जो बीजेपी सरकारें दो बच्चों का क़ानून ला रही हैं उससे भी आपको लाभ मिलेगा। सीमित परिवार होने से आप अपने बच्चों की शिक्षा और स्वास्‍थ्‍य पर ज़्यादा खर्च कर पाएंगे। हां, इसमें आप यह मांग और जोड़ सकते हैं कि जिनके दो बच्चे हैं उनको सरकार स्थायी रोज़गार देने का अधिकार, भोजन, शिक्षा और सूचना के अधिकार के समान ही बनाए। इसलिए मुसलमान, समान नागकिर संहिता या दो बच्चों के कानून से बिल्कुल परेशान न हों बल्कि बजाय किसी के बहकावे में आकर विरोध करने के उसका स्वागत करें। आपकी समस्या बेरोज़गारी, महंगाई, बीमारी, आवास और सामाजिक सुरक्षा है इसलिए अगर आंदोलन करना भी पड़े तो अपनी इन समस्याओं के लिए आंदोलन करें।

हर बार की तरह इस बार भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड तथा अन्य मुसलमानों की तथाकथित हिमायती तंज़ीमें आपको भड़काने, बहकाने और इस्लाम की दुहाई देने के लिए आपके पास आएंगी। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसके विरोध में अपील भी जारी कर दी है। अब बाक़ी की अपीलें आनी हैं लेकिन आपको इनकी अपीलों को नज़रअंदाज़ कर देना है। किसी के भड़काने और बहकाने में नहीं आना है। वैसे भी मुस्लिम पर्सनल लॉ दीवानी कानून है। यहां शरियत का फ़ौजदारी कानून नहीं लागू है बल्कि समान फ़ौजदारी यानि कामन क्रिमिनल कोड कानून लागू है जिसकी वजह से यहां शरियत के हिसाब से चोरों के हाथ नहीं काटे जाते, क़ातिलों की गर्दनें नहीं काटी जातीं और बलात्कार के आरोप में मुजरिम को ज़मीन में गाड़कर पत्थरों से नहीं मारा जाता। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भारत में कभी शरियत के फ़ौजदारी कानून की मांग भी नहीं की है।

आप समान नागरिक संहिता का स्वागत करने के साथ ही साथ सरकार से यह मांग और करें कि वह समान सामाजिक संहिता भी लागू करें ताकि हिन्दू समाज में जातीय भेदभाव, दुश्मनी और असमानता समाप्त हो। सबको समाज में बराबर का सम्मान और अवसर प्राप्त हो। दलित और शूद्र, ठाकुर और वैश्य भी पुरोहित और शंकराचार्य के पद पर आसीन हो सकें।


लेखक सामाजिक-राजनीतिक विषयों के टिप्पणीकार हैं


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