अलबर्ट आइंस्टीन हम सब के क्यों हैं?
हिंदी में अलबर्ट आइंस्टीन और उनके काम पर लिखी गयी दुर्लभ पुस्तकों में एक, जो इसी साल छपकर आयी है, उसका नाम हैः “सबके आइंस्टीन”।
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हिंदी में अलबर्ट आइंस्टीन और उनके काम पर लिखी गयी दुर्लभ पुस्तकों में एक, जो इसी साल छपकर आयी है, उसका नाम हैः “सबके आइंस्टीन”।
Read Moreहमारी सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक व्यवस्था में अगर इतनी बुनियादी इंसानियत होती तो इस लॉकडाउन में अनगिनत इंसानों और इंसानियत का दम वैसे नहीं घुटता जैसे इस वक़्त घुट रहा है।
Read Moreइस गीत को लता मंगेशकर और अमीरबाई कर्नाटकी ने मिलकर गाया था। लता तो अभी जीवित हैं लेकिन इस गीत ने पचपन साल बाद गुज़रे ज़माने की दिलकश गायिका कर्नाटकी को ज़िंदा कर दिया है। खास बात ये है कि उस वक्त की तरह इस गीत को ब्लैक एंड व्हाइट ही पेश किया गया है.
Read Moreदाराओं की फितरत है अपने आकाओं के लिए हत्याएं करना, बच्चों को जलाना, औरतों की हत्याओं का जश्न मनाना। मानवता का माखौल उड़ाना। “दारा” पूरे समाज को दारा बनाने के सपने देखता है लेकिन ये उसका दु:स्वप्न है। हम उन्हें विचारों से परास्त करेंगे।
Read Moreइस बार सारा मामला मनोवैज्ञानिक है। कुछ तो जेनुइन भी है। हर आदमी को डर लग गया है कि कहीं मेरी ही मौत न हो जाए। इसके चलते एक दिमागी लॉकडाउन रहेगा लंबे समय तक। खेल, मनोरंजन, पार्टियां, सिनेमाहॉल, यात्रा, पर्यटन, सब कुछ पोस्टपोन हो जाएगा। लॉकडाउन उठ भी गया तो लोग खुद ही इस पर लगाम लगाएंगे। सबसे बड़ा सवाल शिक्षा का है कि स्कूल कॉलेज कब खुलेंगे।
Read Moreजिन एप्लाइड मैथमेटीशियन को मैथ वाले कमतर मानते थे और कहा करते थे कि यह भी कोई मैथ जानते हैं जी! उनकी आज दुनिया भर में पूछ हो रही है. हर तरफ मैथेमेटिकल मॉडलिंग का शोर है. दुनिया विश्वयुद्ध के बाद पहली बार इस तरह से गणित के सामने दण्डवत हुई है.
Read Moreकोविड-19 लॉकडाउन ने बेंगलुरु के कई दिहाड़ी मज़दूरों की आय छीन ली है या उन्हें बेकार कर दिया है
Read Moreपालघर जिले के कवटेपाड़ा में रहने वाले अधिकांश आदिवासी परिवार निर्माण स्थलों पर दैनिक मज़दूरी करके जीवनयापन करते हैं। कोविड-19 लॉकडाउन के कारण यह काम बंद हो गया है, और अब उनके पैसे और राशन तेज़ी से ख़त्म होने लगे हैं
Read Moreयौन संतोष और आर्थिक फायदा – विवाह के ये दो अहम स्तंभ हैं. सैकड़ों सालों से ऐसा ही चला आ रहा है लेकिन अब स्थितियां अदृश्य रूप से बदल रही हैं. दरअसल, उत्पादन संबध बदल रहे हैं इसीलिए. तेजी से पसरते हुए मध्यवर्ग का एक तबका फ्री सेक्स के विचार को सैद्धांतिक तौर पर भले ही न माने लेकिन इसकी व्यावहारिकता से शायद ही परहेज करेगा.
Read Moreआनंद स्वरूप वर्मा आखिरकार नेपाल के बहुप्रतीक्षित संविधान को अंतिम रूप देने का काम 13सितंबर से शुरू हो गया। 2008 में निर्वाचित पहली संविधान सभा को ही यह कार्य …
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