खुल जाए शहर का ताला: अहमदाबाद और सूरत में प्रवासी मजदूरों पर आजीविका ब्यूरो का अध्ययन

यह अध्ययन दो प्रमुख भारतीय शहरों अहमदाबाद और सूरत में कोविड के महामारी का रूप लेने से पहले किया गया। प्रस्तुत है अध्ययन का सार

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अगर लॉकडाउन नहीं होता तो क्या ऋषि कपूर आज ज़िंदा होते? उनकी ट्विटर टाइमलाइन कुछ कहती है…

जनता कर्फ्यू से लेकर रामनवमी के बीच गुजरे 10 दिन के लॉकडाउन में हम देखते हैं कि काफी तेज़ी से ऋषि कपूर की मानसिक स्थिति बदल रही है। एक जद्दोजेहद दिखलायी देती है, विचार प्रक्रिया अस्पष्ट है और सबके कल्याण के लिए वे बंदिशाें को और मज़बूत करने के हक में भी हैें।

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सुलतान क्या होता है, ये आपने कभी सोचा है? महमूद गज़नी को अल-बिरूनी उर्फ़ इरफ़ान का जवाब

प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के लिखे डिस्कवरी आफ इंडिया पर बने दूरदर्शन के सीरियल भारत एक खाेज में इरफ़ान खान जिन छह अध्यायों में हमें नज़र आते हैं, उनमें एक एपिसोड महमूद गज़नी पर है। इसमें वे दार्शनिक अल-बिरूनी के किरदार में हैं।

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किसी ने पीठ पर ठोंक कर कहा था, “आपका स्टेशन आ रहा है, प्लीज़ उतर जाएं”!

कैंसर के इलाज के दौरान उन्होंने अजय ब्रह्मात्मज को एक चिट्ठी लिखी थी। उस चिट्ठी को दोबारा पढ़ा जाना चाहिए आज।

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वह शख्स जो अनंत को जानता थाः श्रीनिवासन रामानुजन पर प्रो. रवि सिन्हा का पूरा लेक्चर

यह लेक्चर दो हिस्सों में हैं। जनपथ के पाठकों के लिए हम पूरा लेक्चर दो हिस्सों के वीडियो में नीचे प्रकाशित कर रहे हैं।

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बांधाे न नाव इस ठांव बंधुः लॉकडाउन में चित्रकूट के निषादों की कहानी

कोविड-19 लॉकडाउन के कारण मध्य प्रदेश के चित्रकूट में रहने वाले निषाद नाविकों की आजीविका भी प्रभावित हुई है। इस समुदाय के बहुत से लोगों के पास राशन कार्ड तक नहीं है। सुषमा देवी, एक गर्भवती मां और विधवा, भी उन्हीं में से एक हैं

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काशी की इस सामुदायिक रसोई में पक रहा है सामाजिक और जातिगत सौहार्द का पकवान

आज रोज़ दो टाइम तीन तीन सौ खाने के पैकेट तैयार किए जा रहे हैं और गरीब, दलित, पिछड़ों के घर घर भेजे जा रहे हैं। आगे की योजना और दिलचस्प है। न्यास अब लॉकडाउन से पड़ने वाले मनोवैज्ञानिक प्रभाव पर काउंसलिंग का काम शुरू करने वाला है।

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