बात बोलेगी: आप पहले पैदा हो गए हैं, केवल इसलिए आगे किसी और के पैदा होने का अधिकार छीन लेंगे?

जनसंख्या नियंत्रण के विचार मात्र को भी इसी कसौटी पर परखने की ज़रूरत है कि क्या इस देश में पहले जन्म ले चुके लोगों को मात्र पहले आ जाने की वजह से ये अधिकार हासिल हैं कि भावी पीढ़ियों को आने ही न दिया जाए?

Read More

तन मन जन: पब्लिक हेल्थ और जनसंख्या नियंत्रण की विभाजक राजनीति

चुनाव से पहले भारत में जहां भी आबादी नियंत्रण की बात उठती है तो साफ तौर पर समझा जा सकता है कि उनकी चिंता के पीछे जनसंख्या से ज्यादा धर्म, नस्लवाद, जेनोफोबिया या कट्टरता है। उनकी नजर में केवल कोई एक सम्प्रदाय है जिसकी आबादी को नियंत्रित करने की जरूरत है।

Read More

हर्फ़-ओ-हिकायत: तीनकठिया नील की खेती और नये अंग्रेजों के तीन कृषि कानून

नील की तीनकठिया खेती करने वाले किसानों का प्लांटरों के साथ अनुबंध ठीक वैसा ही था जैसा तीन कृषि कानूनों के तहत कंपनी या पैन कार्डधारक किसी व्यक्ति से हुआ अनुबंध। इसीलिए संयुक्‍त किसान मोर्चा और तमाम किसान नेताओं को सरकार की मंशा पर संदेह है।

Read More

पंचतत्व: देखन में कॉटन लगे, घाव करे गंभीर!

आखिर कान साफ करने के लिए इस्तेमाल होने वाले इस छुटकी-सी डंडी और उस पर चिपकी छटांक भर रुई से समंदर कैसे गंदा होता होगा?

Read More

बात बोलेगी: जिन्हें कहीं नहीं जाना, उन्हें यहीं पहुंचना था…!

अब केवल दो काम ही दिये जा रहे हैं मंत्रियों को। एक सुबह उठते ही मोदी जी के ट्वीट को रीट्वीट करना। आइटी सेल से आयी किसी पोस्ट को री-पोस्ट करना। थैंक यू अभियान में घर बैठे-बैठे हिस्सा लेना और वक़्त पर राहुल गांधी पर ‘बार्क’ करना।

Read More

बाबासाहब के नाम पर स्मारक बना देने से दलितों की हालत सुधर जाएगी?

क्या यह स्मारक वाकई चुनाव से पहले दलितों को लुभाने का कोई चारा है या फिर भाजपा सरकार में दलितों की स्थिति सुधरी है? दलितों के खिलाफ होने वाले जुल्म तो कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं।

Read More

पंचतत्व: वन्यजीव और इंसानों का संघर्ष जैसा ‘कड़वी हवा’ में है, उसके मुकाबले ‘शेरनी’ झालमुड़ी है!

शेरनी ने एक अच्छे विषय के साथ वही कर दिया है जैसा पर्यावरण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर हमारे अफसरान कर गुजरते हैं। मानव-जीव संघर्ष की गहराई को उकेरने के लिए हमें बेशक ‘कड़वी हवा’ जैसी फिल्म का रुख करना चाहिए, जो कई परतों में समस्या को उघाड़ती है।

Read More

हर्फ़-ओ-हिकायत: दलित चिंतकों का सवर्णवादी आदर्श बनाम कांशीराम की राजनीतिक विरासत

कांशीराम ने 1978 में ये भांप लिया था कि पहले से ही दमित समाज को संघर्ष की नहीं सत्ता की जरूरत है और सत्ता से ही सामाजिक परिवर्तन होगा। यही भाव कांशीराम से मायावती में अक्षरश: स्थानांतरित हुआ। इतिहास इसका गवाह है।

Read More

बात बोलेगी: एक दूजे की प्रार्थनाओं और प्रतीक्षाओं में शामिल हम सब…

सब एक-दूसरे का किस-किस तरह से इंतज़ार करते हैं यह बात शायद सामूहिक स्मृति से भुलायी जा चुकी थी। इसे इस महामारी ने फिर से साकार कर दिया है। यहां पूरा देश और समाज एक दूसरे के इंतज़ार में है। अगर ठीक से इस इंतज़ार की ध्वनियाँ सुनी जाएं तो असल में सारे लोग एक-दूसरे की बेहतरी के इंतज़ार में हैं। कोई केवल अपने लिए प्रार्थना नहीं कर रहा है, बल्कि उसकी प्रार्थना में सबके लिए कुछ न कुछ मांगा जा रहा है।

Read More

तन मन जन: कोरोना की तीसरी लहर के लिए कितना तैयार हैं हम?

सवाल है कि इस महामारी से जूझते हुए लगभग डेढ़ वर्ष के तजुर्बे के बाद भी क्या हम देश की जनता को यह आश्वासन दे सकते हैं कि हमारी सरकार एवं यहां की चिकित्सा व्यवस्था महामारी से जनता को बचाने एवं निबटने में सक्षम है?

Read More