पॉलिटिकली Incorrect: बिजली और आयुध कर्मचारियों की फौरी जीत के आगे लटका शून्य

क्या ठेका कर्मचारियों के लिए हड़ताल का आह्वान कभी हुआ? क्या सबको समान सामाजिक सुरक्षा की बात यूनियनों के एजेंडे में कभी शामिल हुई? व्यवस्था परिवर्तन कभी मुद्दा बना? कर्मचारी यूनियनें इस पर ख़ामोश क्‍यों हैं?

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तन मन जन: कोरोना-काल में बढ़ता प्रदूषण जानलेवा तबाही की दस्तक है!

दिल्ली के अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने भी कहा है कि प्रदूषण यदि जरा भी बढ़ा तो फेफड़ों और श्वसन सम्बन्धी बीमारियों में बेतहाशा वृद्धि होगी और यह लोगों के लिए जानलेवा होगा।

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गाहे-बगाहे: या इलाही ये मुहल्ला क्या है!

उत्तर भारत का यह खास धार्मिक परिदृश्य है और हजारों की संख्या में ऐसे ही मंदिरों से ऐसे ही भजन प्रतिदिन छह-आठ घंटे बजाये जाते हैं। जबरन। और कोई भी ऐतराज करे तो दंगा करने के लिए तैयार बैठे धर्मप्राण।

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देशान्तर: विश्व सामाजिक मंच की पुनर्कल्पना मुमकिन है, असंभव नहीं!

इस दौर में फोरम के समक्ष कई महत्वपूर्ण चुनौतियां हैं, जिसके ऊपर इसकी अंतरराष्‍ट्रीय परिषद् में बहसें जारी हैं। इस मुद्दे को लेकर मंच की परिषद् ने गत 6 महीनों में कई छोटी समितियां बनायी हैं और साथ ही दुनिया भर के जन आंदोलनों के साथ जून, सितम्बर और अक्टूबर में गोष्ठियां की हैं।

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दक्षिणावर्त: भाभी जी हाथरस में हैं, सत्य कहां है?

ये सारी जानकारी हम तक बुद्धू बक्सा पहुंचा रहा है। इस बीच एसआइटी की जांच अपनी गति से चल रही है जबकि प्रशासन अपनी मंथर गति के सहारे अपने छूटे कस-बल को पेंचदार बना रहा है।

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पंचतत्व: गंगाजल को गया तक ले जाना बिहार सरकार का विकट दृष्टिदोष है

खुद गंगा अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है. अगर गर्मियों में उससे 50 एमसीएम पानी निकाल लिया जाएगा तो खुद इसके परितंत्र पर क्या असर पड़ेगा, इसका क्या कोई अध्ययन बिहार सरकार ने कराया है?

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आर्टिकल 19: ये TRP का घोटाला नहीं, दुर्गंध पर एकाधिकार की लड़ाई है!

टीआरपी मामला ही नहीं है। खेल ये है कि हिंदुत्व के एजेंडाधारी चैनलों और एंकरों को अर्णब गोस्वामी ने एक झटके में पैदल कर दिया है, तो टीवी के पर्दे की खिसियानी बिल्लियां और बागड़बिल्ले नैतिकता का खंभा नोच रहे हैं।

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तिर्यक आसन: ‘हिन्दू खतरे में’ का लिंक और आहत देव का प्रसाद

उनकी एक दुकान है- मेंस सलोन। दुकान के बाहर नवढ़ों को वे ‘’हिंदू खतरे में है’’ का लिंक देते हैं। दुकान के अंदर मुसलमान कारीगरों से बाल-दाढ़ी बनवाते हैं। फेशिअल, ब्लीच कराते हैं। मसाज भी कराते हैं।

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छान घोंट के: जवाबदेही मांगने वाली सिविल सोसाइटी की FCRA पर चुप्पी और कार्टेल-संस्कृति

दुनिया के किसी भी देश में परिवर्तनकारी और दीर्घकालीन बदलाव का क्रांतिकारी आन्दोलन केवल विदेशी अंशदान से कभी नहीं खड़ा हुआ है। यह अलग बात है कि जनवादी निर्वात के खात्मे में विदेशी अंशदान का काफी योगदान रहता है।

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बात बोलेगी: इंस्पेक्टर मातादीन की वापसी उर्फ़ इंस्पेक्टर मातादीन रिटर्न्स

अगर लोग किसी दैवीय आपदा के कारण उत्पन्न हुए संकटकाल में अपने नोट बदलने के लिए बैंको की लाइन में खड़े हों और सरकार के खिलाफ कुछ बात मन में भी सोच रहे हों, तो ये जाकर उसकी गर्दन दबोच सकते हैं। इन्हें मतलब तत्काल या निकट भविष्य में होने वाले किसी भी क्राइम, विरोध और अभिव्यक्ति के खतरे को भाँप लेने की जबर्दस्त शक्ति मिल गयी है।

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