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| नरेश ज्ञवाली | 
अमरीकी साम्राज्यवाद के छतरीनुमा कंकाल के भीतर खुद को सुरक्षित रख न्याय के पक्षधरों की धज्जियां उड़ाने को बेताब इज़रायली तानाशाह बेन्जामिन नेतन्याहु के युद्ध अपराधों की छानबीन तथा निर्दोष फिलिस्तीनी जनता की जीवन रक्षा की मांग करते हुए नेपाल की राजधानी काठमांडो में पत्रकार, लेखक, कलाकार तथा साहित्यकारों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के भवन के आगे धरना दिया और फिलिस्तीनी जनता के पक्ष में हस्ताक्षर संकलन करते हुए इज़रायल और अमरीकी नीतियों का जमकर विरोध किया।
हमलों को रोकने तथा इज़रायली युद्ध अपराधों की छानबीन को लेकर विश्व भर में करीब पांच दर्जन राष्ट्रों में विरोध प्रदर्शन किए गए जा चुके हैं। नेपाल में इज़रायली पक्ष के मानवता विरोधी हमले के विरोध का एक मुख्य कारण यह भी था कि खुद को स्वतन्त्र और मानवता की रक्षा के लिए खडा संस्थान बताने वाला संयुक्त राष्ट्र संघ अमरीकी नीतियों का पैरोकार बनने के बजाय खुद को फिलिस्तीनी जनता के पक्ष में खड़ा करे। कई मामलों में देखा गया है कि अमरीकी सरकार के कुछ कहते ही संयुक्त राष्ट्र संघ विभिन्न देशो में मानवता और युद्ध अपराध के विषयों की छानबीन करने में बढ़-चढ़ कर सामने आता है जबकि वहां वैसी घटना हुई ही नहीं होती है। लेकिन जहां मानवता विरोधी अपराध हुए होते हैं वह अमरीकी दबाव में वह अपनी भूमिका सिकोड़ कर बैठा रहता है। 
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| काठमांडो में संयुक्त राष्ट्र भवन के बाहर प्रदर्शन करते लेखक, पत्रकार और कलाकार | 
नेपाल में विरोध प्रदर्शन का आयोजन करने में ”समकालीन तीसरी दुनिया” के नेपाल प्रतिनिधि नरेश ज्ञवाली, प्रगतिशील साहित्यिक पत्रिका ”पाण्डुलिपि” के सम्पादक दिपक सापकोटा और कवि मणी काफ्ले की भूमिका प्रमुख रही। इसी विषय पर हस्ताक्षर संकलन का आयोजन करने में नेपाल के जाने-माने साहित्यकार तथा ”समकालीन तीसरी दुनिया” के शीघ्र प्रकाश्य नेपाली प्रगतिवादी साहित्य विशेषांक के सलाहकार खगेन्द्र संग्रौला ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। हस्ताक्षर संकलन में नेपाल के लगभग सभी साहित्यकारों तथा कलाकारों ने भाग लिया। वरिष्ठ कवि श्यामल, वरिष्ठ नाट्यकर्मी सुनील पोखरेल, आख्यानकार नारायण ढकाल, नरेन्द्रजंग पीटर आदि ने हस्ताक्षर किया।   
गाज़ा क्षेत्र में इज़रायली पक्ष द्धारा किए जा रहे युद्ध अपराध के विरोध में नेपाल की जानी-मानी कवियत्री निभा शाह ने एक कविता भी लिखी है जिसका हिंदी में अनुवाद नीचे प्रस्तुत है।    
फिलिस्तीन की अनारकली
निभा शाह 
(अनुवाद: नरेश ज्ञवाली) 
चीटियां बिल बनाकर 
प्रमाणित करती हैं
यह मेरी मिट्टी है कहकर।
पंछी घोंसले बनाकर
प्रमाणित करते हैं
यह मेरा पेड़ है कहकर।
मैं मेरी मिट्टी को 
यह मेरा देश है कहकर
प्रमाणित क्यों नहीं कर सकती?
यह प्रश्न है
फिलिस्तीन की
अनारकली का। 
जो इज़रायल की मज़ारों में
दबती, दबती जा रही है 
साम्राज्यवादी ईंटों से
और चीख रही है
शलिम ! शलिम !! शलिम !!!
सभी शलिम मौन हैं
मस्जिद-मजलिस के भीतर,
संसद के भीतर, 
संयुक्त राष्ट्र संघ के भीतर,
हंसिये-हथौड़ेनुमा आकृति के भीतर।
और अनारकली
चीख–चीख कर पुकार रही है
शलिम ! शलिम !! शलिम !!!
शलिम तो डुप्लीकेट प्रमाणित हो रहे हैं।
और फिलिस्तीन की 
अनारकली
इज़रायल की मज़ार के नीचे
धंसते-धंसते
ज़मीनी आग बनती जा रही है।
(काठमांडो से)
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