Gun Island : बन्दूकी सौदागर के बहाने श्राप जैसे कुछ सपने और फंतासी की उड़ान

हमारे आज में जो कुछ हो रहा है उसके कारण हमारे अतीत में कहीं मौजूद होते हैं। उन्दे ओरीगो इन्दे सालूस, मतलब आरम्भ से ही आती है मुक्ति। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखक श्री अमिताभ घोष का उपन्यास ‘बन्दूक़ द्वीप’ जो Gun island का हिन्दी अनुवाद है को हम पढ़ें तो निष्कर्ष के रूप में यह दो बातें हमारे सामने आती हैं।

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सामाजिक परिवर्तन के लिए सांस्कृतिक आंदोलन की जरूरत पर हमेशा जोर देते थे लालबहादुर वर्मा

जब वर्मा सर इलाहाबाद से दिल्ली आये, थोड़े समय बाद ही उन्हें डेंगू हो गया। उस समय मैं दिल्ली में उनके घर पर ही था। उन्होंने मुझे भी अस्पताल में बुला लिया मिलने पर सबसे पहला वाक्य यह कहा- यह भी एक दुनिया है।

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आम की डाल पर बैठकर बोलने वाली घुघुती और मजदूर दिवस

रोजगार की तलाश में शहरों की ओर गये मजदूर महामारी के डर से, लॉकडाउन से, शहरों की कठिनाइयों से वापस अपने घरों की ओर लौटने को मजबूर हो रहे हैं। यह दुख ऐसा है कि शायद हमारे लोकगीतों में भी न समा पाये।

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वापस लौटने के लिए गांव ही न बचे तो?

गांव का शोषण, बदहाली और उपेक्षा यूं ही बदस्तूर जारी रहा तो क्या वह दिन दूर है जब हम दिल्ली, मुंबई के प्रवासी बन कर जीवन बिताने को मजबूर लोग वापस गांव की ओर लौटना चाहें और कहीं कोई गांव ही ना बचा हो तो?

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डर लगता है कि मेरा वैचारिक बदलाव आपको पसंद नहीं आएगा: शिक्षक के नाम एक विद्यार्थी का पत्र

मेरी भी इच्छा थी कि यदि मैं लिख दूंगा तो यह बातें आप तक भी पहुंच जायेंगी। सर, मेरी इच्छा रहती है कि मैं आपको अपना लिखा हुआ पढ़कर सुनाऊं और आप कहें कि ”तुम्हारी चिट्ठी सुनने का सुख मिला।”

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सुनील दत्त और नरगिस का प्रेम यदि आज के यूपी में होता तो…

किश्वर देसाई द्वारा लिखी गई किताब ‘द ट्रू लव स्टोरी ऑफ नरगिस’ के मुताबिक राज कपूर से अलग होने के बाद वो आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगी थीं। आज वैलेंटाइन डे के दिन राज कपूर और नरगिस की प्रेम कहानी के बारे में जानना मौजू होगा।

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इस सिन्‍ड्रेला को अपनी रिहाई के लिए किसी शहज़ादे का इंतजार नहीं है!

ज्यादातर हिन्दी फिल्मों में हम यही देखते रहे हैं कि प्यार हुआ, प्यार की राह में तमाम रुकावटें आयीं, फिर उनको पार करके शादी हुई या प्रेमी जोड़े मिल गये। यह फिल्म इस मायने में अलग है कि यह सवाल करती है क्‍या प्‍यार ही पर्याप्‍त है। यह एक लम्बी छलांग है हिन्दी फिल्मों की इस परम्परा में, जो प्रेमी जोडे के बीच समानता और प्रतिष्‍ठा का नया आयाम खोलती है।

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अख़बारनामा: वैश्वीकरण के दौर में भारतीय पत्रकारिता का एक जायज़ा

आज जो साम्प्रदायिकता का ज़हर हमारे समाज की जड़ों में गहरे तक उतरता जा रहा है तो यह केवल आज घटित हो गई कोई परिघटना नहीं है। इसकी भूमिका तभी से बननी शुरू हो गई थी जब उदारीकरण की नीतियों के माध्यम से हमारा देश अमेरिकी साम्राज्यवाद के जाल में फंसने लगा था। इस बारे में आलोक श्रीवास्तव जी की यह पुस्तक आंखें खोलने वाली है।

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