हिन्दू पुनर्जागरण से अधूरे नवजागरण तक भारतीय चित्रकला के राजनीतिक सफर की कहानी

भारतीय चित्रकला का सच’ एक ऐसी पुस्तक है जो समाजशास्त्रीय नजरिये से लिखी गयी है और जिसमें एकेडमिक्स के लटकों झटकों से दूर एक ऐसे कलाकार की दृष्टि का परिचय मिलता है जो भारत जैसे वर्ग विभाजित समाज में उत्पीड़ित बहुमत के साथ खड़ा है।

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शरद यादव राजनीति में जिस धारा का प्रतिनिधित्व करते थे वह अब विलुप्तप्राय है

संसदीय राजनीति में प्रवेश का प्रचंड का यह पहला मौका था। उन्होंने शरद जी से कहा कि वह सत्ता संचालन के कुछ ‘टिप्स’ दें और शरद जी ने उनसे अपने बहुत सारे अनुभव साझा किये।

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‘मातीगारी’: एक कालजयी उपन्यास जिसके पात्र से डर कर सरकार ने गिरफ़्तारी का वारंट जारी कर दिया!

न्गुगी वा थ्योंगो का कालजयी उपन्यास ‘मातीगारी’ अब मराठी भाषा में भी उपलब्ध हो गया है। अनुवाद नितीन सालुंखे ने और प्रकाशन मोहिनी कारंडे ने (मैत्री पब्लिकेशन, 267/3, आनंद नगर, मालवाडी रोड, हडपसर, पुणे 411 028) किया है। 2019 में हिन्दी पाठकों तक इसे गार्गी प्रकाशन ने पहुंचाया। हिन्दी अनुवाद राकेश वत्स का है।

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इमरजेंसी: सरकार की नाफ़रमानी करने पर किशोर कुमार को कैसे प्रताड़ित किया गया

4 मई 1976 को आकाशवाणी ने और 5 मई 1976 को दूरदर्शन ने किशोर कुमार के गानों के प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया। 20 मई 1976 को मंत्रालय के अधिकारियों ने पॉलीडोर से और 4 जून 1976 को एचएमवी रेकार्ड कंपनियों से संपर्क किया और यह पता लगाना चाहा कि किशोर कुमार के गाये गीतों के रेकार्ड्स की बिक्री को कैसे रोका जाय।

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इमरजेंसी: पचीसवीं वर्षगांठ मनाने के भाजपा के फैसले को स्वामी ने ‘हास्यास्पद’ क्यों लिखा था?

सुब्रमण्यम स्वामी ने अपने इस लेख में बताया है कि कैसे आरएसएस के नेता माधवराव मुले ने नवंबर 1976 के शुरुआती दिनों में उनसे कहा कि वह विदेश चले जाएं क्योंकि संगठन ने इंदिरा गांधी के सामने आत्मसमर्पण करने से संबंधित दस्तावेज तैयार कर लिया है। इस दस्तावेज़ पर जनवरी 1977 में हस्ताक्षर हो जाएगा और फिर ‘इंदिरा और संजय को तुष्ट करने के लिए तुम्हें बलि का बकरा बनाया जाएगा क्योंकि तुमने विदेशों में इनके खिलाफ काफी दुष्प्रचार किया है।’

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इमरजेंसी: साल भर जेल काट चुके प्रबीर आज भी निशाने पर हैं, जब आपातकाल नहीं है!

शाह आयोग का निष्कर्ष था कि पीएस भिंडर ने डीपी त्रिपाठी के भ्रम में प्रबीर पुरकायस्थ को गिरफ्तार कर लिया और अपने इस कृत्य को सही ठहराने के लिए झूठमूठ के आरोप लगाकर प्रबीर के खिलाफ मीसा के तहत वारंट जारी करा दिया। बेशक, प्रबीर भी आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थे लेकिन पुलिस उस दिन उन्हें नहीं बल्कि त्रिपाठी को पकड़ने गयी थी। चूंकि यह मामला सीधे-सीधे पीएम हाउस से जुड़ा था इसलिए किसी ने भिंडर की बातों को चुनौती नहीं दी।

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इमरजेंसी: जनतंत्र के साथ आधी रात हादसा हो गया और लोगों को पता ही नहीं चला…

राय ने आयोग को बताया कि काम समाप्त होने के बाद जब वह कमरे से बाहर निकल रहे थे तो उन्हें ओम मेहता (गृह राज्यमंत्री) से यह सुनकर बहुत हैरानी हुई कि अगले दिन न्यायालयों को बंद रखने और सभी अखबार के दफ्तरों को बिजली की सप्लाई काट देने का आदेश जारी किया जा चुका है।

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दो महीने से चल रहे किसान आंदोलन को समझने के लिए कुछ ज़रूरी बिन्दु

इस समय इस आंदोलन पर बहुत सारे विश्लेषण आ रहे हैं लेकिन उन्हीं विद्वानों के विश्लेषणों पर ध्यान दें जो पिछले कई दशकों से किसानों के हित की बात कर रहे हैं। कॉरपोरेट घरानों के शुभचिंतक विद्वानों के नजरिये को पढ़ते समय भी इन विश्लेषणों की रोशनी में ही उनकी परख करें।

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मेरी यादों में मंगलेश: पांच दशक तक फैले स्मृतियों के कैनवास से कुछ प्रसंग

एक दिन पहले ही मैंने फोन पर किसी का इंटरव्यू किया था और फोन का रिकॉर्डर ऑन था। दो दिन बाद मैंने देखा कि मेरी और मंगलेश की बातचीत भी रिकॉर्ड हो गयी है। उसे मैंने कई बार सुना- ‘‘आनंद अभी मैं मरने वाला नहीं हूं’’ और सहेज कर रख लिया।

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बहुत हो चुका ओली जी! अब विश्राम कीजिए…

पिछले तीन-चार दशकों के बाद पहली बार किसी ऐसी सरकार का गठन हुआ था जो बिना किसी बाधा के अपना कार्यकाल पूरा कर सकती थी। एक स्थायी और स्थिर सरकार ही विकास की गारंटी दे सकती है- इसे सभी लोग मानते हैं। यही वजह है कि व्यापक जनसमुदाय ने इस सरकार से बहुत उम्मीद की थी- बहुत ही ज्यादा।

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