शरद यादव राजनीति में जिस धारा का प्रतिनिधित्व करते थे वह अब विलुप्तप्राय है


समाजवादी नेता शरद यादव का कल रात निधन हो गया। वह एकमात्र ऐसे राजनेता थे जिनसे कुछ वर्ष पहले तक मेरी प्रायः मुलाकात होती थी या मिल न पाने की स्थिति में फोन पर बातचीत हो जाती थी। उनसे पहला संपर्क 1984-85 में किसी समय हुआ था जब उन्होंने अपने एक संदेशवाहक के जरिये मेरे पास ‘समकालीन तीसरी दुनिया’ का वार्षिक चंदा भिजवाया था और मिलने की इच्छा जतायी थी। उन दिनों वह प्रखर समाजवादी विचारों वाले युवा नेता के रूप में जाने जाते थे।

मेरी पहली मुलाकात उनसे के सी त्यागी के साथ हुई। (त्यागी से आज भी घनिष्ठ संबंध बना हुआ है लेकिन उनके राजनेता होने की वजह से नहीं बल्कि 1970 के दशक के ऐसे पुराने मित्र के नाते जिसने अपनी प्रतिबद्धता को भरसक बनाए रखा है)। शरद जी के साथ अक्सर उन समस्याओं पर बात होती जिनके प्रति मौजूदा राजनीतिज्ञों से लेकर मीडिया तक का उपेक्षा का भाव रहता था। बुर्जुआ राजनीति में एक प्रतिष्ठित हैसियत रखने के बावजूद उनके अंदर हाशिये पर पड़े लोगों के प्रति गहरी सहानुभूति का भाव था और संसद में जब भी अवसर मिला, उन्होंने उनके पक्ष में पूरी ताकत के साथ आवाज उठायी। जिस पीढ़ी का वह प्रतिनिधित्व करते थे उनमें यद्यपि ऐसे कई राजनेता थे लेकिन जितनी प्रतिबद्धता मैंने शरद जी में देखी वैसी अन्यत्र दुर्लभ थी।

प्रचंड और बाबूराम भट्टराई के साथ शरद यादव, केसी त्यागी, सुधींद्र भदौरिया और आनंद स्वरूप वर्मा

नेपाल के राजतंत्र विरोधी संघर्ष को उन्होंने भरपूर समर्थन दिया- यह जानते हुए कि उस संघर्ष का नेतृत्व माओवादी कर रहे हैं जिनकी नीतियों से उनकी सोच बिल्कुल मेल नहीं खाती थी। चूंकि वैचारिक रूप से समाजवादी अनुशासन में उनका विकास हुआ था, वह राजतंत्र के खिलाफ थे इसलिए अनेक मुद्दों पर तीव्र मतभेद के बावजूद नेपाल के माओवादी नेता प्रचंड को निरंतर उनका समर्थन मिलता रहा। यहां तक कि इस समर्थन के सवाल पर एक बार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से भी उनकी बहस हो गयी थी।

नेपाल में माओवादियों ने 1996 में राजतंत्र के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष की शुरुआत की थी जिसकी अंतिम परिणति 2008 में औपचारिक तौर पर राजतंत्र की समाप्ति के साथ हुई। वैसे, 2006 से ही राजतंत्र की उल्टी गिनती शुरू हो गयी थी जब माओवादियों के शीर्ष नेता प्रचंड और बाबूराम भट्टराई ने राजधानी काठमांडो में अपना मुख्यालय स्थापित कर लिया था। इन 10-12 वर्षों के दौरान नेपाल से जुड़े किसी भी मुद्दे पर विचार विमर्श के लिए शरद जी प्रायः मुझसे संपर्क करते थे और हमारी बातचीत होती थी।

2008 में प्रचंड ने जब प्रधानमंत्री पद की शपथ ली उस अवसर पर हम लोग (शरद यादव, केसी त्यागी, सुधींद्र भदौरिया, और मैं) साथ ही उस समारोह में शामिल होने काठमांडो पहुंचे थे और दो तीन दिन साथ साथ रहे थे। संसदीय राजनीति में प्रवेश का प्रचंड का यह पहला मौका था। उन्होंने शरद जी से कहा कि वह सत्ता संचालन के कुछ ‘टिप्स’ दें और शरद जी ने उनसे अपने बहुत सारे अनुभव साझा किये। बाद के वर्षों में उन्होंने मुझसे निजी बातचीत में इस बात पर हैरानी व्यक्त की कि कैसे नेपाल में वे कम्युनिस्ट विचलन के शिकार हो गये जिन्हें सबसे ज्यादा प्रतिबद्ध समझा जाता था।

शरद यादव राजनीति में जिस धारा का प्रतिनिधित्व करते थे वह अब विलुप्तप्राय हो गयी है। उनका जाना निश्चय ही एक अपूरणीय क्षति है। मेरी उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।

(यहां जो चित्र दिया गया है वह अगस्त 2008 का प्रचंड के प्रधानमंत्री बनने से एक दिन पहले का है। इसमें प्रचंड और बाबूराम भट्टराई के साथ जो लोग दिखायी दे रहे हैं वे हैं शरद यादव, केसी त्यागी, सुधींद्र भदौरिया और मैं)


(समकालीन तीसरी दुनिया के संस्थापक-संपादक और वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा की फ़ेसबुक दीवार से साभार)


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