शिमला के होटल पीटर हॉफ में मंगलवार को वर्ल्ड बैंक द्वारा हिमाचल प्रदेश सरकार को 200 मिलियन डॉलर का बड़ा कर्ज देने से पहले जन सुनवाई का आयोजन किया गया। इस जन सुनवाई में हिमाचल प्रदेश के दो सामाजिक संगठनों को भी आमंत्रित किया गया था। एक पर्यावरणवादी संगठन हिमधरा ने इस जनसुनवाई का बहिष्कार किया तो वहीं हिमाचल लोक जागृति संगठन ने इसमें शामिल होते हुए इसका विरोध किया।
हाइड्रो प्रोजेक्ट्स को हाइडल प्रोजेक्ट्स कहते हुए हिमाचल के युवाओं द्वारा पिछले एक साल से ‘नो मीन्स नो’ जनांदोलन जारी है। हिमलोक जागृति संगठन ने इस जनसुनवाई को नाटक करार देते हुए शिमला के प्रेस क्लब में प्रेस वार्ता की। उनका कहना था कि वह 2009 से किन्नौर में ‘हाइडल’ प्रोजेक्ट्स का विरोध कर रहे हैं, कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारों ने उनकी एक नहीं सुनी है।
इस जनसुनवाई में भाग लेने के लिए किन्नौर से दो दर्जन के करीब आंदोलनकारी आए थे लेकिन उनको मीटिंग में जाने नहीं दिया गया, केवल तीन-चार लोगों के प्रतिनिधिमंडल को इसमें भाग लेने दिया गया।
वार्ता में कहा गया, ‘’हमें सभी ने अंधेरे में रखा है। हाइड्रो प्रोजेक्ट्स किन्नौर जनजाति के अस्तित्व और वहां के पर्यावरण, विलुप्त होती प्रजातियों के लिए खतरा बन चुके हैं। लाखों की संख्या में रोड और पनविद्युत परियोजनाओं के लिए पेड़ काटे जा रहे हैं।‘’
वर्ल्ड बैंक के दस्तावेज के अनुसार हिमाचल प्रदेश सरकार को नवीकरणीय उर्जा के लिए पर्यावरण सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था योजना के तहत 200 मिलियन डॉलर का कर्ज दिया जाना है। सामाजिक संगठनों का कहना है कि इससे प्रदेश में पनविद्युत परियोजनाओं में और ज्यादा इजाफा होगा, जिसका खामियाजा हिमाचल के पर्यावरण और यहां की जनता को भुगतना होगा।
हिमाचल प्रदेश सरकार ने एशियन डेवेलपमेंट बैंक(एडीबी), वर्ल्ड बैंक, आइएमएफ, जर्मन, जापान के बैंकों सहित अन्य संस्थाओं से करीब 70 हजार करोड़ रुपये का कर्ज लिया हुआ है। वर्ल्ड बैंक ने हिमाचल प्रदेश की कृषि, बागवानी और रोड परियोजनाओं पर भारी कर्ज दिया हुआ है। कोरोना के दौरान ही वर्ल्ड बैंक से हिमाचल प्रदेश सरकार ने 2019 में शिमला में पानी की कमी को दूर करने के लिए 40 मिलियन डॉलर का कर्ज, सितंबर 2020 में रोड सुरक्षा के लिए 82 मिलियन डॉलर का कर्ज, 10 जिलों की 420 चयनित ग्राम पंचायतों में सिंचाई परियोजनाओं में सुधार और कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए 80 मिलियन डॉलर का कर्ज मार्च 2020 में लिया था। ये सारे कर्ज 15-15 साल के लिए मिले हैं। अभी 200 मिलियन डॉलर के लिए होने वाली जन सुनवाई से सामाजिक संगठनों की चिंता बढ़ती जा रही है।
वार्ता को संबोधित करते हुए किन्नौर के सुप्रसिद्ध समाजसेवी और लेखक भगत सिंह किन्नर ने राजनीतिक पार्टियों और सरकार से कड़े शब्दों में नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि वह हाइड्रो प्रोजेक्ट्स के होने वाले नुकसान की गंभीरता को नहीं समझ रहे हैं, आने वाले बीस सालों में किन्नौरा जनजाति का न इतिहास बचेगा, न संस्कृति बचेगी, उसका अस्तित्व ही नहीं बचेगा। और ये बड़ी-बड़ी परियोजनाएं देश की सीमा सुरक्षा के लिए भी बहुत बड़ा खतरा बन कर उभरेंगी। किन्नौर भारत-चीन सीमा पर स्थित है, ये परियोजनाएं बिल्कुल सीमा से सटी हुई हैं। आने वाले युद्धों और तनावों के दौरान अगर चीन इन परियोजनाओं के निशाना बनाता है तो किन्नौर और हिमाचल के लोग कहा जाएंगे। इस से पूरे देश की सुरक्षा खतरे में होगी। इसलिए इन परियोजनाओं के खिलाफ केवल किन्नौर नहीं, पूरे हिमाचल और देश के लोगों को आवाज उठानी चाहिए।
पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए वक्ताओं ने कहा कि जिस तरह से उपचुनावों के दौरान दर्जनों पंचायतों ने चुनाव बहिष्कार का प्रस्ताव पारित किया था और चार पंचायतों ने पूर्ण चुनाव बहिष्कार किया था, अगर ये परियोजनाएं नहीं रोकी जाएंगी तो आने वाले विधानसभा चुनावों में भी जनता मिलकर चुनाव का बहिष्कार करेगी। उन्होंने कहा कि जिस तरह से किन्नौर के साथ व्यवहार हो रहा है लगता ही नहीं है कि हम इस देश का हिस्सा हैं।
जियालाल नेगी, भगत सिंह किन्नर, महेश, उपेश, होशियार आदि ने अपने वक्तव्य में लिखा है कि ऊर्जा निदेशालय की और से आयोजित जन परामर्श नहीं बल्कि घटिया मजाक है। इसमें स्थानीय लोगों को शामिल नहीं किया गया। यदि वर्ल्ड बैंक शिमला में बैठ कर सामाजिक पर्यावरण रूपरेखा मजबूत करना चाहता है तो ये मंजूर नहीं हैं। इसके लिए पूरे हिमाचल में जमीनी स्तर पर सुनवाई होनी चाहिए।
उनका आरोप है कि पिछले साल जहां निगुलशेरी में लैंडस्लाइड से 28 लोगों की दुर्घटना में मौत हुई वह नाथपा झाकरी जल विद्युत परियोजना से प्रभावित इलाका है। उन्होंने कहा कि सतलुज नदी हमारे लिए पूजनीय है जिसको टनलों और बांधों में कैद कर दिया है। जनजातीय इलाकों से संबंधित कानूनों को ताक पर रख कर परियोजनाओं को मंजूरी देना हमें मंजूर नहीं है।