किसान आंदोलन: सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा- या तो आप कानून लागू होने से रोको या हम स्टे लगाएं!

उच्चतम न्यायालय ने कृषि कानूनों को लेकर समिति की आवश्यकता को दोहराया और कहा कि अगर समिति ने सुझाव दिया तो वह इन कानूनों को लागू करने पर रोक लगा देगा.

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किसान आंदोलन: ‘मरेंगे या जीतेंगे’ तो ठीक, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले का क्या करेंगे?

वार्ता समाप्त होने के तुरंत बाद किसान नेता डॉ. सुनीलम ने जनपथ से फोन पर बातचीत में कहा कि इस वार्ता को भी सरकार ने ही विफल किया है, किसानों ने नहीं। अब सुप्रीम कोर्ट तय करेगा।

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किसानों पर पुलिस अत्याचार के खिलाफ पंजाब यूनिवर्सिटी के छात्रों की याचिका पर SC करेगी सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक पत्र याचिका दायर की गई है जिसमें कथित तौर पर पुलिस की ज्यादती और दिल्ली सीमाओं के पास प्रदर्शनकारी किसानों की अवैध हिरासत की जांच …

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कांग्रेस का सवाल: SC की टिप्पणी के बाद UP के CM क्या डॉ. कफ़ील के परिवार से माफी मांगेंगे?

शाहनवाज़ आलम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश शरद अरविंद बोबडे का यह कह कर याचिका खारिज करना कि इलाहाबाद ‘हाई कोर्ट ने अच्छा फैसला सुनाया था, उसमें हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता’ कुंठित व्यक्तित्व वाले मुख्यमंत्री की सुप्रीम बेइज़्ज़ती है।

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प्रशांत भूषण के हाथ से फिसला वह क्षण और ‘स्‍थायी भयावहता’ में तब्‍दील होते ‘तात्‍कालिक भय’!

बीतने वाले प्रत्येक क्षण के साथ नागरिकों को और ज़्यादा अकेला और निरीह महसूस कराया जा रहा है। जिन बची-खुची संस्थाओं की स्वायत्तता पर उनकी सांसें टिकी हुई हैं, उनकी भी ऊपर से मज़बूत दिखाई देने वाली ईंटें पीछे से दरकने लगी हैं।

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आर्टिकल 19: क्या आप जानते हैं कि भारत ने ‘लोकतंत्र’ के रूप में अपनी स्थिति लगभग खो दी है?

रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में मीडिया, नागरिक समाज और विपक्ष के लिए लगातार कम होती जा रही गुंजाइश के कारण भारत लोकतंत्र का दर्जा खोने की कगार पर है। रिपोर्ट की प्रस्तावना में ही लिखा है कि भारत ने लगातार गिरावट का रास्ता जारी रखा है।

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अदालत का फैसला अगर ‘न्याय’ से चूक जाए, तो आदमी क्या करे? कहां जाए?

जिस तरह भारतीय किसान की उम्मीद मानसून पर होती है हर साल, ठीक उसी तरह एक आम नागरिक की उम्मीद अदालत और देश की न्याय व्यवस्था से होती है। मानसून पर इन्सान का वश नहीं है, किन्तु अदालतें इन्सान यानी न्यायाधीशों के सहारे चलती हैं।

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आर्टिकल 19: सरकार को डिजिटल से दिक्‍कत है, मने टीवी चैनल अब अप्रासंगिक हो चुके हैं

टीवी चैनलों के प्रासंगिकता खो देने की बात हवा में नहीं है। खुद मोदी सरकार ने अदालत में सील ठप्पे के साथ ये हलफनामा दिया है कि ये सब तो हमारे काबू में हैं, लेकिन डिजिटल मीडिया वाले नहीं आ रहे। आप उन पर लगाम कसिए।

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‘सोशल डिस्टैंसिंग’ का सरकारी प्रयोग बंद करने सम्बंधी निर्देश के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

नवायन ने अदालत से दरखवास्त की है कि सरकारों को कहा जाए कि “सोशल डिस्टैंसिंग” की जगह वे “फिज़िकल डिस्टैंसिंग”, “इंडीविजुअल डिस्टैंसिंग”, “डिज़ीज़ डिस्टैंसिंग” या “सेफ़ डिस्टैंसिंग” का प्रयोग करें।

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