पंचतत्व: वन्यजीव और इंसानों का संघर्ष जैसा ‘कड़वी हवा’ में है, उसके मुकाबले ‘शेरनी’ झालमुड़ी है!

शेरनी ने एक अच्छे विषय के साथ वही कर दिया है जैसा पर्यावरण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर हमारे अफसरान कर गुजरते हैं। मानव-जीव संघर्ष की गहराई को उकेरने के लिए हमें बेशक ‘कड़वी हवा’ जैसी फिल्म का रुख करना चाहिए, जो कई परतों में समस्या को उघाड़ती है।

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बात बोलेगी: आदिम शिकारियों के कानूनी जंगल में ‘मादा’ जद्दोजहद के दो चेहरे

मूल कथा भले ही एक शेरनी (टी-12) के इर्द-गिर्द बुनी गयी है, लेकिन यह दो मादाओं (स्त्रीलिंग) की बराबर जद्दोजहद भी है जिसमें उन्हें ही खेत होना है। एक महिला के लिए हमारा समाज, हमारी राजनीति, हमारी नौकरशाही ठीक वही रवैया अपनाती है जो एक शेरनी के लिए शिकारी अपनाता है, यह बात बिना किसी उपदेश के इस फिल्म में सतह पर आ जाती है।

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शेरनी: जंगल से निकाल कर जानवरों को म्यूज़ियम में कैद कर दिए जाने की कहानी

फ़िल्म की कहानी और इसके बीच स्थानीय राजनीति, अफ़सरशाही, प्रशासनिक नाकामी, पर्यावरण का दोहन और अवैध शिकार जैसे खलनायक शेरनी को बचाने का प्रयास करती फ़िल्म की ‘शेरनी’ विद्या बालन को बार-बार रोकते हैं और अंत में इसमें सफल भी हो जाते हैं।

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