पत्रकारिता @2021: निरंकुश सत्ताओं के बर्बर उत्पीड़न के बीच अदम्य साहस की गाथाएं

सीपीजे ने 1 दिसंबर 2021 तक ऐसी 19 हत्‍याओं को दर्ज किया है जिसमें पत्रकारों को उनके काम के बदले में मारा गया। इसमें शीर्ष स्‍थान भारत का रहा जहां चार पत्रकार अपने काम के चलते मारे गए। एक और की मौत एक प्रदर्शन कवर करने के दौरान हुई। कुल छह हत्‍याएं भारत में दर्ज की गयीं जिसके बाद पत्रकारिता के लिए चार सबसे खराब देशों में भारत का नाम भी शामिल हो गया।

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झूठ के वायरस से लड़ने के लिए स्वतंत्र पत्रकारिता को मज़बूत करें: मारिया रेसा

फिलीपींस की पत्रकार मारिया रेसा को इस साल रूस के दिमित्री मुरातोव के साथ “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रक्षार्थ प्रयासों” के लिए नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया है। अट्ठावन वर्षीय रेसा खोजी पत्रकारिता करने वाली एक वेबसाइट रैपलर की सह-संस्थापक हैं।

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दिमित्री मुरातोव को मिला नोबेल पुरस्कार और अन्ना पोलित्कोव्सकाया की अधूरी कहानी…

जनपथ के पाठकों के लिए 15 साल पुरानी अन्ना की लिखी यह अधूरी स्टोरी एक बार फिर प्रस्तुत है, जिसके एवज में उन्हें अपनी जन गंवानी पड़ी लेकिन पंद्रह साल बाद जिसका सिला उनके सम्पादक के लिए नोबेल पुरस्कार के रूप में सामने आया है।

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नोबेल पुरस्कार के लिए नामित हुए ऐक्टिविस्ट दम्पत्ति ने शुरू किया बेरोजगारी मुक्त काशी अभियान

नोबेल पीस प्राइज़ वॉच ने 2021 के नोबेल शांति पुरस्‍कारों के लिए जिन 50 व्‍यक्तियों के नाम शॉर्टलिस्‍ट कर के नोबेल कमेटी को भेजे हैं उनमें दो नाम भारत से भी हैं और दोनों ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस से हैं- डॉ. लेनिन रघुवंशी और श्रुति नागवंशी

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छान घोंट के: अमन के लिए भूख-कुपोषण के खिलाफ जारी संघर्षों पर मुहर है इस बार का नोबेल

अभिजात्य समाज और उनके समर्थन में खड़ा शासन-प्रशासन भुखमरी और कुपोषण के खिलाफ लड़ने वाले लोगों के खिलाफ लगातार हमले करता है। इसी माहौल में क्राई के साथ मिलकर जनमित्र न्यास 50 गांवों में मुसहरों के बीच व्याप्त कुपोषण को समाप्त करने के लिए सतत काम कर रहा है। ऐसे काम के कुछ सुखद परिणाम भी मिलते हैं तो इसकी कीमत भी कभी-कभार चुकानी पड़ती है।

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