गांधी ने कहा था- अखबारवाले बीमारी के वाहक बनते जा रहे हैं!

काम के अतिशय बोझ के चलते उन्हें देर रात तक या फिर सुबह से ही काम करना पड़ता था। वे अकसर चलती ट्रेन में लिखते थे। जब उनका एक हाथ लिखने से थक जाता तो वे दूसरे हाथ से लिखने लगते। तमाम व्यस्तताओं के बीच भी वे रोजाना तीन से चार लेख लिखते थे।

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महात्मा गांधी के नाम एक विद्यार्थी का पत्र

बापू! आज के समय की बात यह है कि कोई पीछे हटना ही नहीं चाहता, लोग पीछे हटना एक प्रकार से स्वयं के लिए अपमान समझते हैं; कहीं न तो कहीं दूसरों के सुख-दु:ख की उपेक्षा करते हुए हार-जीत सर्वोपरि बनते जा रही है।

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भगत सिंह की फांसी और महात्मा गांधी की जिम्मेदारी का सवाल

भगत सिंह के कार्यों को सही ठहराने की जिम्मेदारी कम से कम गांधी की नहीं थी। और साफ कहूं तो गांधी पर भगत सिंह को बचाने की कोई नैतिक जिम्मेदारी भी नहीं थी। न ही भगत सिंह ने गांधी की जानकारी में या गांधी से पूछकर अपनी राजनीतिक हिंसा की कार्यवाहियां की थीं। तो गांधी पर भगत सिंह को बचाने का नैतिक उत्तरदायित्व कहां से आ जाता है?

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महात्मा गांधी: मसीहा और सुपरमैन में फर्क होता है

जब तक महात्मा गांधी के अनुयायियों का राज रहा, तब तक उनकी मूर्ति पूजा होती रही। अब जब दूसरे किस्म के लोगों के हाथ में सत्ता आई है तो उन्होंने वे तमाम चमत्कारी बातें गांधी जी से हटा दीं। ऐसे में बहुत से सामान्य लोग जो मसीहा की पूजा भी सुपरमैन की तरह करना चाहते हैं उनके लिए महात्मा गांधी एक बूढ़े, निरीह, लुंज पुंज, वृद्ध बन कर रह गए।

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दांडी मार्च के 91 वर्ष: जन आंदोलन से आततायी सत्ताओं को झुकाया जा सकता है

आज की युवा पीढ़ी के दिमाग से इस घटना और इसके महत्व को बताने के लिए 91 साल पहले हुई उस ऐतिहासिक यात्रा के केंद्र पर उन स्मृतियों को सहेजने के लिए एक स्मारक बनाया गया है।

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पत्रकारों की गिरफ़्तारी: गांधी जी की हत्या के संदर्भ में कुलदीप नय्यर की Scoop से कुछ सबक

अगली सुबह सम्पादक ने मुझे तलब किया— डाँट-फटकार के लिए नहीं, बल्कि यह समझाने के लिए कि वस्तुपरकता पत्रकारिता के मूल सिद्धान्तों में से एक है। इसीलिए, मुझे अच्छी या बुरी जैसी भी घटनाएँ हों, उनकी खबर बनाने की जिम्मेदारी उठानी चाहिए और अपनी भावनाओं को अपने फैसलों पर हावी नहीं होने देना चाहिए। मुझे एहसास हुआ कि सम्पादक महोदय का कहना सही था।

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इस आंदोलन का ‘महात्मा गांधी’ कौन है?

किसान आंदोलन को तय करना होगा कि उसकी अगली यात्रा में कितने और कौन लोग मार्च करने वाले हैं! उन्हें चुनने का काम काम कौन करने वाला है?

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महात्मा गाँधी की ‘नयी तालीम’ के आईने में नयी शिक्षा नीति 2020

गाँधी की नयी तालीम क संदर्भ में तुलनात्मक ढंग से अगर इस नीति की समीक्षा की जाए, तो यह एक प्रकार से पहले से चली आ रही शिक्षा नीतियों में एक अपडेट नोटिफिकेशन की तरह आया है। शिक्षा एवं शिक्षण संबंधी संरचना के अलावे इसमें ऐसा कुछ भी नया या रचनात्मक नहीं है

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गाँधी स्मृति: कितनी दूर, कितनी पास?

मेरे मित्र एवं प्रसिद्ध बुद्धिजीवी अपूर्वानन्द इस प्रश्न को अपनी कई सभाओं में उठा चुके हैं। उनका यह भी कहना है कि दिल्ली के तमाम स्कूलों में उन्होंने यह जानने की कोशिश की और उन्होंने यही पाया कि लगभग 99 फीसदी छात्रों ने इस स्थान के बारे में ठीक से सुना नहीं है, वहां जाने की बात तो दूर रही।

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महात्मा गाँधी को प्रतीकात्मक ही नहीं बल्कि धरातल पर उतारना है ज़रूरी: मेधा पाटकर

मेधा का मानना है कि सबका-साथ-सबका-विकास का सपना साकार करने के लिए, सबके सतत विकास के लिए एवं न्यायपूर्ण मानवीय व्यवस्था के लिए, महात्मा गाँधी का सुझाया हुआ सहकारिता (cooperative) का रास्ता ही आज के परिप्रेक्ष्य में सही रास्ता है.

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