सबके लिए स्वास्थ्य: विश्व स्वास्थ्य दिवस पर WHO के चार दशक पुराने घिसे-पिटे जुमले का सच

विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्लूएचओ का संकल्प “सबके लिए स्वास्थ्य” सुनने में अच्छा लगता है और महसूस होता है कि संस्थाएं हमारी सेहत के लिए वास्तव में बहुत चिंतित हैं लेकिन यथार्थ है कि वैश्वीकरण और स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के दौर में यह विशुद्ध छलावा है।

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तन मन जन: जन-स्वास्थ्य की कब्र पर खड़ी कॉरपोरेट स्वास्थ्य व्यवस्था और कोविड

मुनाफे के लालच में देश में गोबरछत्ते की तरह उगे पांच सितारा अस्पतालों की हकीकत को देश ने इस बार देख लिया। वैश्विक आपदा की इस विषम परिस्थिति में भी आखिरकार सरकारी अस्पतालों के चिकित्सक एवं चिकित्साकर्मियों ने ही अपनी जान जोखिम में डालकर पीड़ितों की सेवा की और हजारों जानें बचायीं।

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हिन्दी पट्टी के किसान आंदोलनों को कैसे निगल गयी मंडल की राजनीति और उदारीकरण

औपनिवेशिक काल और आजादी के बाद के पांच दशकों तक इन दोनों प्रदेशों में किसान आंदोलन जिंदा रहे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों खासकर 1990 के बाद इन प्रदेशों में किसान आंदोलन के कोमा मे चले जाना एक पूरी प्रक्रिया का परिणाम है।

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GDP के ऐतिहासिक पतन के बीच कृषि क्षेत्र में वृद्धि के क्या मायने हैं?

पिछले तीन दशकों में इस देश के किसानों ने लाखों की संख्या में आत्महत्या की है और दूसरी ओर देश के विकास में उद्योग और सेवा क्षेत्र का प्रतिशत बढ़ता गया है। चूँकि नब्बे के बाद मूलतः पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली देश में लागू करने की कोशिश की गई, इसलिए जब जब पूँजीवाद आर्थिक मंदी का शिकार हुआ है, तब उसके उत्पादन की श्रृंखला टूट गई है।

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तन मन जन: जब स्वास्थ्य व्यवस्था ही बीमार है तो कैसे हो इलाज?

जब देश की जनता प्रधानमंत्री जी के आह्वान पर ताली और थाली बजा रही थी तभी कोरोना वायरस देश में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा था। उनके अगले राष्ट्रीय प्रसारण …

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