मंगलेश डबराल का घोंसला और लोक संस्कृति की मृत चिड़िया

मंगलेश जी के पास पहाड़ी राग से लेकर मारवा और भीमपलासी सब कुछ था। उनके पास बिस्मिल्‍लाह खान की शहनाई थी। उनके पास पहाड़ी लोकगीत थे। वे ‘नुकीली चीजों’ की सांस्‍कृतिक काट जानते थे लेकिन उनका सारा संस्‍कृतिबोध धरा का धरा रह गया क्‍योंकि उन्‍होंने न तो अपने पिता की दी हुई पुरानी टॉर्च जलायी, न ही दूसरों ने उनसे आग मांगी। वे बस देखते रहे और रीत गए। उन्‍होंने वही किया जो दूसरों ने उनसे करवाया। कविताओं में वे शिकायत करते रहे और बाहर मुस्‍कुराते रहे, सड़कों पर तानाशाह के खिलाफ कविताएं पढ़ते रहे।

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‘हमें अर्थव्यवस्था, खुशहाली और आज़ादी में एक संतुलन बनाना पड़ेगा’: कोबाड गाँधी से बातचीत

जब तक हम जीवन में बुनियादी ज़रूरतों को पूरा नहीं करते हैं, तो खुशियां नहीं आ सकती हैं। हमारा लक्ष्य सामाजिक राजनीतिक बदलाव है तो ये तो रहेगा ही, लेकिन हमें व्यक्तिगत मूल्यों की भी बात करनी होगी। ख़ुशियां अमूर्त में नहीं होती हैं। उनका एक भौतिक आधार होता है। एक नया समाज बनाने के लिए और इन विचारों को विकसित करने की ज़रूरत है।

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देशान्तर: बोलीविया में वामपंथ की वापसी क्या सही मायनों में प्रगतिशील राजनीति की जीत है?

दुनिया के सामाजिक आन्दोलन अपनी ताकत बनाये रखने के लिए वामपंथी दलों के सिर्फ पिछलग्गू बन कर नहीं रह सकते। दक्षिणपंथी ताकतों ने न सिर्फ जनतांत्रिक अधिकारों और संगठनों को कमजोर किया है बल्कि एक जनतांत्रिक राजनीति की ज़मीन को बहुत हद तक सिकोड़ दिया है। वैसे में राजनैतिक विकल्पों के साथ साथ वैकल्पिक राजनीति की संभावनाओं को बचाने और बनाने की लड़ाई जारी रखनी होगी।

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देशान्तर: क्या कोरोना-काल के बाद वामपंथ और ग्रीन पॉलिटिक्स का उदय तय है? फ्रांस से संकेत…

राजनैतिक, आर्थिक और सामाजिक उथल पुथल होगा यह तो तय था, लेकिन फ़्रान्स के लोकप्रिय राष्ट्रपति इमनुएल मैक्रोन क्या इतनी जल्दी मुश्किलों में पड़ जाएंगे? ताज़ा संपन्न हुए लोकल स्तर के चुनावों के नतीजों में फ़्रांस के हरित, समाजवादी और साम्यवादी दलों की भारी जीत किस नयी राजनीति का आग़ाज़ कर रही है?

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हाशिये पर पड़े समझदारों के लिए कुछ सबक

हाशिया अभी-अभी कुछ ज्‍यादा चौड़ा हुआ है। अकसर केंद्र तक टहल मार आने वाले तमाम लोगों में से कई परिधि पर धकेल दिए गए हैं। मेरी चिंता उन्‍हें लेकर नहीं …

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