देशान्तर: बोलीविया में वामपंथ की वापसी क्या सही मायनों में प्रगतिशील राजनीति की जीत है?


बोलीविया में 18 अक्टूबर के राष्ट्रीय चुनावों में पूर्व राष्ट्रपति इवो मोरालेस की पार्टी मूवमेंट टुवर्ड्स सोशलिज्म (MAS) के उम्मीदवार लुइस आर्स की भारी जीत हुई है। इस जीत के साथ ही दक्षिण अमेरिकी देशों में वामपंथी ताकतों को बल मिलेगा और इक्वाडोर और चिली के आगामी चुनावों में भी इसके असर दिखेंगे। नयी MAS सरकार के समक्ष कई चुनौतियां हैं। एक तरफ आर्थिक मंदी है, तो दूसरी तरफ इवो मोरालेस सरकार के आखिरी कार्यकाल में हुए कुछ विवादास्पद निर्णयों को सुधारने की चुनौती है तो है ही, साथ में देश में मौजूदा ध्रुवीकरण को ख़त्म करने के लिए कदम उठाने होंगे। इस हफ्ते देशांतर में बात करते हैं बोलीविया में बदलते राजनैतिक माहौल की और इस जीत से प्रगतिशील जन आन्दोलनों के लिए उभरते सवालों को लेकर।

संपादक

2019 के चुनाव और दक्षिणपंथी ताकतों का बोलीविया पर कब्ज़ा

2019 अक्टूबर के राष्ट्रपति चुनावों में इवो मोरालेस अपने चौथे काल के उम्मीदवार बने। उन्हें 47.1% और उनके विपक्षी उम्मीदवार कार्लोस मेसा को 36.5% वोट प्राप्त हुए। संविधान के प्रावधानों के मुताबिक उनकी जीत हुई थी और दूसरे राउंड के चुनाव की जरूरत नहीं थी, लेकिन दक्षिणपंथी ताकतों और USA समर्थित मीडिया और अन्य ताकतों द्वारा प्रायोजित मध्यवर्गीय प्रदर्शनों और आर्गेनाईजेशन ऑफ़ अमेरिकन स्टेट्स (OAS) के विवादास्पद फैसले के बाद चुनावों के नतीजे को नहीं माना गया। नतीजतन, यह बात स्थापित की गयी की इवो मोरालेस की सरकार ने चुनावों में धांधली की।

बाद में हालांकि ये दावे खारिज़ हुए, फिर भी बढ़ते प्रदर्शनों और सेना के दबाव के भीतर मोरालेस ने 10 नवम्बर 2019 को इस्तीफ़ा दिया और देश छोड़कर मेक्सिको चले गए। उनके पीछे, उनके पार्टी के ही उपराष्ट्रपति, संसद के सभापति और कई अन्य लोगों ने इस्तीफा दिया। संवैधानिक प्रक्रियाओं की अवहेलना करते हुए मिलिट्री और दक्षिणपंथी ताकतों ने गैरकानूनी तरीके से जॉनीन आनेज को राष्ट्रपति घोषित किया, जिन्हें राष्ट्रपति चुनावों में सिर्फ 4% वोट मिले थे।

TOPSHOT – Bolivian opposition protestors set on fire the electoral offices in Sucre on October 21, 2019. – Mesa, the main rival of Bolivia’s President Evo Morales, refuses to recognize election result in Bolivia on October 21, 2019. Meanwhile, election monitors from the Organization of American States expressed “deep concern and surprise at the drastic and hard-to-explain change in the trend of the preliminary results revealed after the closing of the polls,” in Bolivia’s presidential election, as incumbent Evo Morales closed in on victory. (Photo by JOSE LUIS RODRIGUEZ / AFP) (Photo by JOSE LUIS RODRIGUEZ/AFP via Getty Images)

इस घटना के बाद से मोरालेस के समर्थकों और उनके विरोधियों के बीच में हिंसक झड़पें होती रहीं। सरकार ने आर्मी और सुरक्षा एजेंसियों को खुली छूट दी और उसमें कई लोगों की मौतें हुईं, गिरफ़तारियां हुईं और MAS के बहुत सारे नेताओं को भूमिगत होना पड़ा या जेल जाना पड़ा। मानवाधिकारों के उल्लंघन के साथ साथ बोलने की स्वतंत्रता, विरोधियों को कुचलने की हरेक कोशिश, राज्य की हिंसा, मीडिया के अधिकारों पर हमला और चुने हुए सांसदों को संसद की प्रक्रियाओं में शामिल न होने और उनकी अनुपस्थति में कई उदारवादी कानूनों और कॉन्ट्रेक्टों को मान्यता देने जैसे कई कदम उठाये गए। उनकी सरकार कोविड से निपटने में पूर्ण रूप से न सिर्फ विफल रही बल्कि उभरती आर्थिक मंदी के कारण काफी अलोकप्रिय भी। वैसे में जब जॉनीन आनेज ने जनवरी 2020 में होने वाले चुनावों को तीन बार टाला, तो देशव्यापी जनप्रदर्शन शुरू हुए। बढ़ते घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दबाव की बीच उन्होंने आखिरकर 18 अक्टूबर 2020 को राष्ट्रपति चुनावों की घोषणा की। 

पिछले एक साल में बोलीविया में घोर ध्रुवीकरण तो हुआ ही, साथ ही साथ अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप के कारण वामपंथी और दक्षिणपंथी ताकतें लामबंद हो गयीं। इस कारण MAS के विरोधी पक्ष के कई उम्मीदवारों ने कार्लोस मेसा के पक्ष में अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली। इनके बावजूद 55.1% वोटों के साथ लुइस आर्स की जीत कई मायनों में ऐतिहासिक है। मोरालेस के पूर्व वित्त मंत्री रहे लुइस और उनके उपराष्ट्रपति डेविड चोकेउहंका, पूर्व रक्षा मंत्री के समक्ष बड़ी चुनौती है। यह पहला मौका है जब MAS ने इवो मोरालेस की अनुपस्थिति में चुनावों में जीत हासिल की है और इसलिए यह चुनौती भी है की उनकी की हुई गलतियों और उनकी गहरी छाप से नयी सरकार कैसे और कब निकल पाएगी। इस जीत के पीछे मौजूदा सरकार के प्रति घोर रोष, असंतोष तो है ही साथ ही साथ MAS की लोकप्रियता भी है क्योंकि 2006-2019 के शासन के दौरान कई ऐतिहासिक फैसले लिए गए और देश ने अप्रत्याशित रूप से आर्थिक और राजनैतिक विकास किया।    

MAS और मोरालेस का उदय 

10 October 1967: Soldiers pose with the body of Che Guevara in a stable in the town of Vallegrande, Bolivia. (Photograph by Bettmann/Contributor)

दक्षिण अमेरिका के अन्य देशों की तरह बोलीविया में भी USA का लगातार हस्तक्षेप रहा है। वह चाहे 1960 के मध्य में वामपंथी सरकारों को हटाना रहा हो या बाद में 1971 में वहां की समाजवादी सरकार का तख्तापलट। सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशकों में भी कई बार सरकारों का बदलना या मिलिट्री का हस्तक्षेप एक आम बात रही है दक्षिण अमेरिका के कई देशों में और बोलीविया उससे इतर नहीं रहा। याद रहे कि इन्हीं के बीच चे गुएवारा की हत्या बोलीविया में 9 अक्टूबर 1967 को हुई थी जिसमें सीआइए का बड़ा हाथ रहा। 

आर्थिक तौर पर भी अमेरिका और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का बड़ा हस्तक्षेप रहा है दक्षिण अमेरिकी देशों में। बोलीविया मूलतः कृषि आधारित देश है लेकिन भारी मात्रा में टिन, चाँदी, लिथियम, प्राकृतिक गैस और कई प्राकृतिक सम्पदाओं से भी संपन्न है। स्पेनिश साम्राज्यवाद के कारण यहां की आबादी मिश्रित है लेकिन सवा करोड़ की आबादी वाले इस देश में इंडिजेनस/देशज/मूलनिवासी (भारत में जिन्हें हम आदिवासी कहते हैं) लोगों की बहुतायत है जो सत्ता और पूंजी से वंचित हैं, दमित हैं। बोलीविया कोका की खेती के लिए मशहूर है और देशज लोगों के जीवनयापन का यह मुख्य स्रोत है क्योंकि कोका के पत्तों से कोकेन बनता है, जिसका बहुत बड़ा बाज़ार USA है और ड्रग माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर अमेरिकी सरकार का हस्तक्षेप यहां लगातार रहा है। बोलिवियन सरकार इसी दबाव में कोका की खेती को नष्ट करने की मुहीम समय समय पर चलाती रही है।

एवो मोरालेस इन्हीं कोका खेतिहरों के यूनियन से निकले नेता हैं, जिसकी पृष्ठभूमि में अमेरिका विरोध और देशज लोगों की अस्मिता और अधिकार निहित हैं। कोका खेतिहरों ने अन्य मजदूर यूनियनों के साथ मिलकर 1990 के शुरूआती दौर में हो रहे नवउदारवादी आर्थिक सुधारों के खिलाफ मोर्चा खोला और 1998 में MAS का गठन आन्दोलनों के समन्वय के राजनैतिक फ्रंट के तौर पर किया। MAS राजनैतिक फ्रंट था और चुनावों में लोकल और राष्ट्रीय स्तर पर भाग लेता था, लेकिन निर्णय की प्रक्रिया आन्दोलनों की समिति में निहित थी। यह अपने आप में आन्दोलनों, राजनैतिक दलों और सत्ता की राजनीति के लिए अनूठा प्रयोग था।

इसी दौर में दुनिया भर में उभरे वैश्वीकरण के खिलाफ हो रहे प्रदर्शनों की कड़ी में इन्होंने कोचाबम्बा में पानी के निजीकरण के खिलाफ (जनवरी 1999 – अप्रैल 2000) मोर्चा खोला और जीत हासिल की। इनके बावजूद 2002 के राष्ट्रपति चुनावों में MAS को कोई ख़ास सफलता नहीं मिली, लेकिन राष्ट्रपति गोंजालो सांचेज़ के दूसरे कार्यकाल (2002 – 2005) के दौरान गैस निष्कासन, बाँध विरोधी आन्दोलनों, मुक्त व्यापार समझौतों के खिलाफ हुए संघर्षों ने MAS को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित कर दिया और जब जनवरी 2006 में चुनाव हुए तो एक राष्ट्रव्यापी क्रन्तिकारी एजेंडे पर एवो मोरालेस राष्ट्रपति चुन कर आये। वह बोलिविया के पहले इंडिजेनस राष्ट्रपति बने और उस जीत के साथ ही दक्षिण अमेरिका के कद्दावर वामपंथी नेताओं की श्रेणी में शामिल हुए। ह्यूगो चावेज़ और लूला के साथ दक्षिण अमेरिका में गुलाबी लहर (वामपंथी उदय) के प्रतीक बने। 

बहुजनों का गणराज्य बोलीविया और मदर अर्थ राइट्स

सत्ता संभालने के तुरंत बाद बोलीविया में व्याप्‍त ध्रुवीकरण और जनतांत्रिक प्रक्रियाओं पर दक्षिणपंथी कब्जे को ख़त्म करने के लिए उन्होंने कई प्रयास किये, जिसमें सत्ता में लोगों की भागीदारी और ख़ासकर देशज लोगों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए मुख्य मुद्दों पर जनमत संग्रह, प्राकृतिक गैसों का राष्ट्रीयकरण, रोजगार और स्वास्थ्य सम्बन्धी सुधार, GMO बीजों, बड़े बांधों और बायोफ्यूल पर रोक आदि शामिल है। देश में मौजूदा देशज और मध्यवर्गीय खाई को पाटने के लिए और सबको विश्वास में लेकर 2006 से 2009 तक एक लम्बी प्रक्रिया के बाद एक नए संविधान की रचना की। इसके मुताबिक पहली बार बोलीविया को बहुजनों का गणराज्य घोषित किया गया और माना गया कि यह एक नहीं, कई देशों का समूह है। उस हिसाब से कई जातियों और मूलों वाले देश में बोलीविया ने सामंजस्यता स्थापित करने का एक नया उदहारण प्रस्तुत किया। बढ़ते पर्यावरण संकटों को देखते हुए उन्होंने धरती माता के हक़ / राइट्स ऑफ़ मदर अर्थ की संकल्पना पेश की और विकासशील देशों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हो रहे पर्यावरण समझौतों पर भी गोलबंद किया। इवो मोरालेस इस तरह से सिर्फ दक्षिण अमेरिका ही नहीं, दुनिया में एक नयी राजनीति के वाहक बने। 

इस कारण जब नए संविधान के प्रावधानों के मुताबिक 2009 में राष्ट्रपति चुनाव हुए तो भारी मतों से मोरालेस चुन कर आये और संसद के दोनों सदनों में पूर्ण बहुमत भी मिला। इस तरह धीरे धीरे उन्होंने पूरे देश की राजनीति और संस्थाओं पर मजबूत पकड़ बनाई, जो आगे चल कर न्यायपालिका, मीडिया और राज्य की अन्य संस्थाओं पर भी बनता गया। 2010-11 के बाद से कहें तो इवो मोरालेस एक कद्दावर नेता बन कर उभरे जिन्हें कोई चुनौती नहीं दे सकता था।

आशाओं के परे राजनैतिक समझौते

इस दौरान ही राजनैतिक व्यवहारिकता के नाम पर विचारों से समझौतों का दौर भी शुरू होता है। वह चाहे देशज इलाकों और राष्ट्रीय पार्क से गुजरने वाले टिपनिस हाइवे या बड़े बांधों के निर्माण की मंजूरी हो, बायोफ्यूल और बड़ी व्यावसायिक खेती से जुड़े फैसले हों या फिर जैव संशोधित बीजों को अनुमति। तमाम विरोधों को नज़रअंदाज़ करते हुए उन्होंने कई उदारवादी नीतियों को लागू किया। इन सब के बावजूद लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ, बोलीविया में आर्थिक विकास की तेज रफ़्तार रही और गरीबी और बेरोजगारी की दर कम हुई।

एक तरफ जहां उनकी लोकप्रियता बढ़ी वहीँ उनके पुराने सहयोगियों, मीडिया और प्रगतिशील दायरों में उनके कार्यकलाप के कारण असंतोष भी। इसका नतीजा यह हुआ की जब एवो मोरालेस ने नए संविधान के अनुसार दो बार राष्ट्रपति बनने की सीमा को बदलने के लिए रेफेरेंडम किया तो उसे जनता ने नकार दिया, हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने एक विवादास्पद फैसले में संविधान के उस प्रावधान को रद्द करते हुए मोरालेस को चौथी बार चुनाव लड़ने के लिए अनुमति दे दी। 


A portrait of Túpac Katari on display at the ruins of Tiwanaku during Evo Morales’s ceremonial inauguration on January 22, 2015. This portrait is made out of corn husks, beans, carrots, and potatoes. (Photo by Benjamin Dangl)

इस तरह से मोरालेस का कार्यकाल कई विवादों से घिरा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वामपंथी विचारकों और पक्षों में उनकी छवि आज भी बरक़रार है, लेकिन बोलीविया के आन्दोलनों और उनके पुराने सहयोगी मोरालेस को देश में प्रगतिशील आन्दोलनों की शक्ति को काम करने के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं, वह चाहे पाब्लो सोलन (पूर्व बोलीवीआई UN राजदूत) हों या फिर ऑस्कर ओलिवेरा (ट्रेड यूनियन नेता और कोचाबम्बा आंदोलन के अग्रणी)। इनका मानना है की न सिर्फ मोरालेस ने सत्ता का केन्द्रीकरण किया बल्कि एक जनतांत्रिक निर्णय की प्रक्रिया को भी ख़त्म किया। जहां पहले पार्टी के ऊपर आन्दोलनों का नियंत्रण था वहीँ धीरे धीरे आन्दोलनों के मुख्य लोगों का सरकार में शामिल होने के कारण न सिर्फ आन्दोलनों की शक्ति कम हुई बल्कि उनकी राज्य के ऊपर निर्भरता भी बढ़ी।

इस कारण से जब मोरालेस ने अपने विरोधियों से हाथ मिला कर कृषि व्यावसायीकरण सम्बन्धी कानून पारित किये तो विरोध करने वाली प्रगतिशील ताकतें कमजोर पड़ीं। वहीँ उन्होंने धीरे धीरे असहमति जताने वाले पुराने सहयोगियों को भी दरकिनार किया और कई को प्रताड़ना और दमन भी झेलना पड़ा। आखिर में जब उन्होंने खुद की सरकार के द्वारा तय किये गए राष्ट्रपति की समय सीमा के विरुद्ध संविधान को दुबारा बदलने की कोशिश की तो उन्होंने पुराने वामपंथ की सत्तालोभ की प्रवृति ही दिखाई। इन सबके लिए उनकी तीखी आलोचना भी हुई, लेकिन जहां कोई दूसरा प्रगतिशील विकल्प नहीं हो वैसे में MAS की यह जीत दक्षिणपंथी ताकतों के खिलाफ जीत तो मानी जाएगा, लेकिन क्या यह सही मायने में प्रगतिशील ताकतों की जीत है?    

वैकल्पिक राजनीति की चुनौतियां

इस जीत से दक्षिण अमेरिका में वामपंथी ताकतों के पुनरुद्धार की कड़ी को मजबूती मिलेगी। मेक्सिको, पनामा, अर्जेंटीना, डोमिनिकन रिपब्लिक, निकारागुआ, उरुग्वे, वेनेज़ुएला, के बाद अब बोलीविया में वामपंथी दलों की सरकार, कोविड काल के बाद कहीं न कहीं वामपंथी ताकतों के लिए उत्साह का विषय है। चिली, इक्वाडोर, ब्राज़ील में होने वाले चुनावों में भी दक्षिणपंथी सरकारों की हार साफ़ दिख रही है, लेकिन क्या प्रगतिशील आन्दोलनों की राजनीति के लिए यह काफी है?

यह सवाल निहायत जरूरी है क्योंकि इन सभी देशों में 2000 के शुरुआती दशक में वहां की वामपंथी सरकारों ने- वह चाहे ब्राज़ील के लूला हों, वेनेज़ुएला के मादूरो या इक्वाडोर के रफाएल कोरिया- राजनैतिक और आर्थिक व्यवहारिकता और मजबूरियों के नाम पर न सिर्फ नवउदारवादी नीतियों और निजी पूजी के साथ हाथ मिलाया बल्कि कई बार प्रगतिशील पर्यावरणीय मुद्दों को भी पीछे धकेलते दिखे हैं।

वैसे में यह लाजिमी है कि दुनिया के सामाजिक आन्दोलन अपनी ताकत बनाये रखने के लिए वामपंथी दलों के सिर्फ पिछलग्गू बन कर नहीं रह सकते। दक्षिणपंथी ताकतों ने न सिर्फ जनतांत्रिक अधिकारों और संगठनों को कमजोर किया है बल्कि एक जनतांत्रिक राजनीति की ज़मीन को बहुत हद तक सिकोड़ दिया है। वैसे में राजनैतिक विकल्पों के साथ साथ वैकल्पिक राजनीति की संभावनाओं को बचाने और बनाने की लड़ाई जारी रखनी होगी। यह काम सत्ताधारी वर्ग से हाथ मिला कर नहीं हो सकता, भले ही वह प्रगतिशील या लोकप्रिय ही क्यों ना हो। इसलिए जरूरी है कि जनता और जनतांत्रिक जन आन्दोलनों की शक्ति विकसित करने का संघर्ष तेज़ किया जाय ताकि चुनी हुई सरकारों के ऊपर लगाम कस सके और उन्हें उत्तरदायी बनाया जा सके।   


मधुरेश कुमार जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्‍वय (NAPM) के राष्ट्रीय समन्वयक हैं और मैसेचूसेट्स-ऐमर्स्ट विश्वविद्यालय के प्रतिरोध अध्ययन केंद्र में फ़ेलो हैं


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मधुरेश कुमार जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समनवय के राष्ट्रीय समन्वयक हैं और मैसेचूसेट्स-ऐमर्स्ट विश्वविद्यालय के प्रतिरोध अध्ययन केंद्र में फ़ेलो हैं (https://www.umass.edu/resistancestudies/node/799)

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