”टू मच डेमोक्रेसी” वाला वर्ष और अंत में रुकावट के लिए एक खेद!

टू मच डेमोक्रेसी में सवाल के हिसाब से जवाब नहीं दिये जाते बल्कि जवाब के हिसाब से सवाल किए जाते हैं। असल में टू मच डेमोक्रेसी में सरकारों का काम ही ये होता है और सरकारें इस काम को पूरी शिद्दत के साथ करती है। यहां तक कि विश्व महामारी में भी वो अपने इस एजेंडा से टस से मस नहीं होती।

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शाहजहांपुर में बैरिकेड तोड़ने वाले अपने लोग, मैंने उन्हें RSS-BJP का नहीं कहा: YY

किसान आंदोलन की पहली प्रेस कान्‍फ्रेंस में किसान नेताओं ने माना कि सरकार की वार्ताओं के कारण युवा किसानों का धैर्य जवाब दे रहा है और आंदोलन के भीतर कोशिश की जा रही है कि किसी भी अवांछित घटना से बचा जाय

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हाथी अभी बाकी है: आंदोलन की पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में 26 जनवरी को किसान गणतंत्र परेड का एलान

संयुक्‍त किसान मोर्चा ने प्रेस क्‍लब ऑफ इंडिया में एक प्रेस वार्ता कर के गणतंत्र दिवस पर समानांतर परेड करने का एलान कर दिया और अब तक आंदोलन में शहीद हुए 50 से ज्‍यादा किसानों की मौत के लिए केंद्र की मोदी सरकार को दोषी ठहराया है।

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AIKSCC ने भाजपा शासित राज्य सरकारों द्वारा किसानों पर दमन की निंदा की, आंदोलन और तेज़ होगा

एआईकेएससीसी के वर्किंग ग्रुप ने कहा है कि भारत सरकार द्वारा तीन कानूनों के रद्द करने की जगह किसानों से विकल्प सुझाने की अपील एक असंभव प्रस्ताव है, क्योंकि इन कानूनों को केन्द्र ने ही अलोकतांत्रिक ढंग से किसानों पर थोपा था।

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बैरिकेड तोड़ रेवाड़ी पहुंचे किसानों में नेतृत्व से असंतोष, ‘असामाजिक तत्व’ कहे जाने पर रोष

दिल्‍ली कूच करने को लेकर तनाव 30 दिसंबर से ही पैदा होना शुरू हुआ जब किसानों ने योगेंद्र यादव से दिल्‍ली कूच करने के बाबत बात की और उन्‍होंने इनकार कर दिया।

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कृषि मंत्री का बयान, कि ”प्रधानमंत्री दबाव में नहीं आते”, वार्ता को विफल करने के लिए दिया गया है: AIKSCC

एआईकेएससीसी ने कहा है कि रक्षा मंत्री का आज यह पुनः बयान देना कि सरकारी खरीद पर किसानों को विश्वास करना चाहिए, लिखित कानून के विपरीत है। कानून में साफ लिखा है कि सरकार एग्री बिजनेस को बढ़ावा देगी और रेट आनलाइन व्यापार से तय होंगे। इसका अर्थ है कि एग्री बिजनेस को अच्छा रेट मिलेगा, किसानों को नहीं।

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किसानों से शुरू होकर यह आन्दोलन सिर्फ़ किसानों का नहीं रह गया है!

यह आवश्यक है कि आन्दोलन लम्बे समय तक डटा रहे और चुनावों पर भी वांछित प्रभाव डाले. अपने तात्कालिक हितों और उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए भी आन्दोलन को राजनैतिक तौर पर कुशल और सचेत होना पड़ेगा. इसके लिए यह भी आवश्यक है कि फ़ासीवाद और सम्प्रदायवाद की विरोधी जनपक्षधर शक्तियाँ भी किसान आंदोलन से सीख लें और राजनैतिक सूझ-बूझ का परिचय दें.

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प्रधानमंत्री जी! लोकतांत्रिक सरकार की गाड़ी बिना रिवर्स गियर के चलाने की कोशिश मत करिए!

आदरणीय मोदी जी बोले तो अवश्य किंतु उनके लंबे भाषण में प्रधानमंत्री को तलाश पाना कठिन था। कभी वे किसी कॉरपोरेट घराने के कठोर मालिक की तरह नजर आते जो अपने श्रमिकों की हड़ताल से नाराज है; कभी वे सत्ता को साधने में लगे किसी ऐसे राजनेता की भांति दिखाई देते तो कभी वे उग्र दक्षिणपंथ में विश्वास करने वाले आरएसएस के प्रशिक्षित और समर्पित कार्यकर्त्ता के रूप में दिखते।

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किसान आंदोलन: सरकार की आयी चिट्ठी, बुधवार को एक तरफ होगी ट्रैक्टर रैली दूसरी तरफ बातचीत

आखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्‍वय समिति ने सरकार की ओर से आये पत्र को दोहरेपन की संज्ञा दी है। समिति का कहना है कि सरकार ने पत्र में अस्‍पष्‍ट भाषा का जिस तरह से प्रयोग किया है उससे ऐसा लगता है कि वह किसानों के मुद्दे पर बात करने से कतरा रही है।

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हर वर्दी के नीचे एक किसान है, इसलिए दमन से बाज़ आये सरकार: छत्तीसगढ़ किसान सभा

छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा सहित छत्तीसगढ़ किसान आंदोलन के सभी घटक संगठनों ने प्रदेश के सूरजपुर, कोरबा, मरवाही, रायपुर, धमतरी, सरगुजा, राजनांदगांव, गरियाबंद, बलौदाबाजार सहित 15 से अधिक जिलों में विरोध प्रदर्शन किया।

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