“पंजाब के मामलों के बारे में अपनी समझ को मजबूत करने” के उद्देश्य से अमनदीप संधू ने 2015 में एक यात्रा शुरू की थी- एक ऐसी पड़ताल जो तीन साल तक चली। इस सफ़र में उन्होंने एक ऐसी भूमि की खोज की, जो उनकी कल्पना और उनकी सुनी कहानियों की तरह बिलकुल भी नहीं थी। उन्होंने पाया कि वह जमीन जिसकी उन्होंने कल्पना की थी, यथार्थ से बहुत दूर थी। बकौल छायाकार सतपाल दानिश कुछ यों है कि ‘अगर तुम पंजाब को समझना चाहते हो, तो लाशें गिनते जाओ’! पंजाब पर उनकी किताब के शुरुआती पन्ने कुछ ऐसे ही खुलते हैं।
पंजाब ऐतिहासिक रूप से एक बहु-सांस्कृतिक केंद्र, मानवता का पक्षधर, शासन करने वाले और बसने वाले लोगों का घर, राजनीति का एक महत्वपूर्ण केंद्र, प्रसिद्ध साहित्यकारों और संगीतकारों की भूमि रहा है। पंजाब के बारे में यह पुस्तक आपको वह सब कुछ बताएगी जो आप जानना चाहते हैं। लेखक ने पंजाब के कई ऐसे अनकहे पहलुओं को शामिल किया है जिनके बारे में अधिकांश लोग अभी तक अनजान हैं।
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“पंजाब- जर्नीज़ थ्रू फॉल्ट लाइन्स” के लेखक अपने अन्वेषण और खोज की कहानियों को सोलह अध्यायों में वर्गीकृत करते हैं। इनमें से प्रत्येक खंड एक साफ आईने की तरह है, जिसके माध्यम से स्थायी समस्या और वर्तमान स्थिति को देखा जा सकता है और इसके ऐतिहासिक संदर्भ को भी समझा जा सकता है। इसका प्रत्येक खंड उस सहायक नदी की तरह है जो एक दूसरों में समाहित हो निरन्तर बहती है।
अमनदीप बताते हैं कि कैसे देश के विभाजन, हरित क्रांति, राज्य के विभाजन, ऑपरेशन ब्लू स्टार, उग्रवाद और अब नशीली दवाओं व प्रवासन के आख्यानों के माध्यम से पंजाब में जो कुछ हुआ है, वह विस्मयकारी है। किताब को पढ़ते हुए अनवरत एक उदासी और बेचैनी बनी रही- इस तरह कुछ कि हर वह जगह जो किताब में किसी घटना, किसी विवरण या किसी विचार को व्यक्त करने के लिए लिखी गयी है, वहां के लोग रोज अनुभव करते होंगे लेकिन यह जो परतें हैं वह हमारे सामने नहीं खुलतीं।
अपने अर्जित भाषा-शिल्प से इस पूरी कथा यात्रा को लेखक अपनी यादों से जुड़े हुए पंजाब को बहुत साहस और संजीदगी से सामने लाते हैं और हम पाठक उनकी इस यात्रा में उनकी अपनी जड़ों की पुनर्प्राप्ति की जद्दोहद में एक भावात्मक राग स्थापित कर पंजाब से जुड़ते हैं। यह न केवल हमारे भीतर संवेदना भरते हैं, बल्कि उनकी भावनाओं की भी अनुभूति कराते हैं। आप पढ़ते समय अमनदीप के साथ पंजाब के भीतर ही एक ऐसी भूमि की यात्रा कर रहे होते हैं जिसकी व्यथा-कथा अब भी अन्वेषित करना शेष है।
अमनदीप उन घटनाओं का जिक्र भर करते हुए उसके आधार पर जो वितान रचते हैं, जो वैचारिक दस्तावेज हमारे समक्ष प्रस्तुत करते हैं, वह आज के समय की आवश्यकता है। यह वास्तव में अगाध श्रम से लिखी गयी पुस्तक है। जैसे-जैसे आप इसके अध्यायों को पढ़ते जाएंगे, आपको पंजाब से भावनात्मक लगाव होता जाएगा। यह पुस्तक पंजाब के “कल, आज और कल” के बारे में है!
कहते हैं कि “पंजाब की छाप हमेशा अपने ही पदचिह्नों से बड़ी रही है।” पंजाब अपने वैभवपूर्ण इतिहास, विभिन्न शासकों के द्वारा शासित और विभाजन के त्रासदीपूर्ण प्रकोप को झेलने के लिए भी जाना जाता है। हम पंजाब को उसके भोजन, संगीत, भारत की अन्न की टोकरी और उसकी उद्यमी संस्कृति के लिए जानते हैं। अपने कठिन परिश्रम के माध्यम से संभावित अवसर को सफलतापूर्वक बदलने की अपनी अनोखी शैली के साथ पंजाब हमेशा भारत की प्रगति की कहानी में सबसे आगे रहा है। विकास की आधुनिक अवधरणा में एक पीड़ित और संपन्न “बाइनरी” के मध्य एक महत्वपूर्ण राज्य के रूप में चिह्नित कराना पंजाब के जीवट का परिचायक है।
लेखक इतिहास और वर्तमान के माध्यम से पंजाब की यात्रा करते हैं। वे राज्य के वास्तविक चेहरे को उजागर करते हैं और दिखाते हैं कि आज हमारे शासन की लोकप्रिय अवधारणा (यथा संसदीय लोकतंत्र/संघीय ढांचा) कैसे जमीनी हकीकत से विपरीत है। यह ऐसी ऐसी पुस्तक है जिसमे दुःख और त्रासदी है, लेकिन बहुत ही संयम और धैर्य के साथ।
एक ख़ास पहलू जो इस किताब को अलग महत्व देता है, वह है लेखक के स्पष्ट विचार। लेखक समावेशी है लेकिन वह कहीं भी गलत को गलत कहने से हिचकता नहीं।
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ड्रग्स, किसान आत्महत्या, दहेज, पंजाबी दलित, विभिन्न धार्मिक समस्याओं को यहां स्पष्टता के साथ उकेरा गया है। यह पुस्तक हमें पंजाब के किसानों, छात्रों, बेटियों की दुर्दशा से भी अवगत कराती है। पंजाब में दलितों की सामाजिक स्थिति का सवाल हो या स्वर्ण मंदिर का, जिसे अहमद शाह अब्दाली के बाद भारतीय सेना ने नुकसान पहुंचाया, अमनदीप बताते हैं कि यह शायद ही किसी से छुपा हो कि सिखों को जानबूझ कर ऐसे हालात की ओर धकेला गया जिससे हथियार उठाना उनकी मजबूरी बन जाय। अपने ही देश के भीतर युद्ध स्थिति का निर्माण कर देना और फिर उसे न स्वीकारना एक ऐसी बात है जो शायद हर उस देश के अपराध में गिनी जाएगी जो अपनी सीमाओं के भीतर यह युद्ध करता है।
हथियार आये कैसे? हरित क्रान्ति में क्रान्ति कहां थी? सीमा पर बसे लोगों को हम किस देश का नागरिक मानते हैं? इन समस्याओं को बने रहने देने में केंद्र या राज्य सरकारों का कितना योगदान है? ऐसे अनगिन प्रश्न इस किताब में हैं जो हमें पंजाब के साथ-साथ स्थानीय जगहों से जुड़े मसलों पर विचारने के लिए प्रेरित करते हैं।
अमनदीप संधू की यह किताब किस्तों में आपके समक्ष खुलती है। पन्ने दर पन्ने यह ख्याल आता रहा कि काश ऐसी किताब भारत के हर उस क्षेत्र के बारे में हो जिसकी अपनी संस्कृति और भाषा है, जिसका अपना भूगोल है, जिसका अपना सामाजिक-आर्थिक तंत्र है। मुझे यकीन है कि यह एक प्रामाणिक दस्तावेज के साथ क्लासिक के रूप में जाना जाएगा और एक मूल्यवान संग्रह के रूप में याद किया जाएगा।
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पंजाब: जर्नीज़ थ्रू फॉल्ट लाइन्स
लेखक: अमनदीप संधू
भाषा: अंग्रेजी
प्रकाशक: वेस्टलैंड
पृष्ठ: 580
मूल्य: 899 रुपये
आशुतोष कुमार ठाकुर बंगलुरु में रहते हैं। पेशे से मैनेजमेंट कंसलटेंट तथा कलिंगा लिटरेरी फेस्टिवल के सलाहकार हैं। इनसे ashutoshbthakur@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं।